लिटिल रेड राइडिंग हूड
एक बार की बात है, हरे-भरे जंगलों और चहचहाते पक्षियों से घिरे एक विचित्र से छोटे से गाँव में, लिटिल रेड राइडिंग हूड नाम की एक खुशमिजाज़ लड़की रहती थी। उसका नाम इसलिए रखा गया क्योंकि वह हमेशा एक खूबसूरत लाल लबादा और हुड पहनती थी, जो उसे उसकी प्यारी दादी ने उपहार में दिया था।
एक धूप भरी सुबह, लिटिल रेड राइडिंग हूड की माँ ने कहा, "प्यारी, कृपया अपनी दादी के लिए यह उपहारों की टोकरी ले जाओ। उनकी तबीयत ठीक नहीं है, और ये उपहार निश्चित रूप से उन्हें खुश कर देंगे।"
लिटिल रेड राइडिंग हूड, जो हमेशा मदद करने के लिए उत्सुक रहती थी, ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "बेशक, माँ! मैं जंगल से होकर सीधे दादी के घर जाऊँगी।"
उसकी माँ ने उसे सावधान किया, "याद रखना, रास्ते पर ही रहना और अजनबियों से बात नहीं करना!"
एक इशारे के साथ, लिटिल रेड राइडिंग हूड एक मधुर धुन गुनगुनाते हुए जंगल में चली गई। जंगल प्रकृति की आवाज़ों से जीवंत था, और रास्ता सूरज की रोशनी से चमक रहा था।
रास्ते में उसे एक धूर्त भेड़िया मिला। “तुम कहाँ जा रही हो, छोटी बच्ची?” भेड़िये ने चालाकी भरी मुस्कान के साथ पूछा।
“मेरी दादी के घर, मिस्टर वुल्फ। वह मिल के ठीक पीछे, नदी के किनारे रहती है,” लिटिल रेड राइडिंग हूड ने मासूमियत से जवाब दिया।
भेड़िये ने अपने दिमाग में एक योजना बनाते हुए कहा, “तुम उसके लिए कुछ फूल क्यों नहीं तोड़ते? मुझे यकीन है कि उसे वे बहुत पसंद आएंगे।”
“यह एक बढ़िया विचार है!” लिटिल रेड राइडिंग हूड ने कहा, जो फूल चुनने के लिए रास्ते से भटक रहा था।
इस बीच, भेड़िया दादी के घर की ओर भागा और उसे अकेला पाकर उसे पूरा निगल गया! फिर उसने उसके कपड़े पहने और उसके बिस्तर पर लेट गया, लिटिल रेड राइडिंग हूड का इंतज़ार करते हुए।
जब वह आखिरकार पहुँची, तो लिटिल रेड राइडिंग हूड हैरान रह गया। “दादी, आपकी आँखें कितनी बड़ी हैं!”
“मेरी प्यारी, तुम्हें देखकर और भी अच्छा लगा,” भेड़िये ने दादी की आवाज़ की नकल करते हुए जवाब दिया।
“और तुम्हारे कान कितने बड़े हैं!”
“मेरी प्यारी, तुम्हारी बात सुनना बहुत अच्छा है।”
“और तुम्हारे कितने बड़े दाँत हैं!”
“तुम्हें खाने के लिए बहुत अच्छा है!” भेड़िया दहाड़ते हुए बिस्तर से कूद पड़ा।
तभी, शोर सुनकर एक बहादुर जंगलवासी घर में घुस आया। उसने जल्दी से भेड़िये से निपटा, लिटिल रेड राइडिंग हूड और उसकी दादी दोनों को बचा लिया, जो चमत्कारिक रूप से सुरक्षित थीं।
लिटिल रेड राइडिंग हूड ने अपनी दादी को कसकर गले लगाया और कहा, “मुझे बहुत खेद है, दादी। मुझे रास्ते पर ही रहना चाहिए था और अजनबियों से बात नहीं करनी चाहिए थी।”
उसकी दादी ने प्यार भरी मुस्कान के साथ जवाब दिया, “सब ठीक है, मेरी प्यारी। अब तुम सुरक्षित हो, और यही सबसे बड़ी बात है।”
उस दिन से, लिटिल रेड राइडिंग हूड हमेशा अपनी माँ की सलाह को याद रखती थी। वह फिर कभी रास्ते से नहीं भटकी, जंगल में अपने साहसिक कार्य का सबक हमेशा अपने साथ लेकर चलती रही।
और इस तरह, लिटिल रेड राइडिंग हूड की कहानी पीढ़ियों से चली आ रही एक कहानी बन गई, जो सतर्क रहने और हमारी देखभाल करने वालों की समझदारी को सुनने के महत्व की याद दिलाती है।
कहानी की सीख
"लिटिल रेड राइडिंग हूड" की सीख सुरक्षित रास्ते पर बने रहने और खतरों से विचलित न होने के महत्व पर जोर देती है।
Little Red Riding Hood
Once upon a time, in a quaint little village surrounded by lush forests and singing birds, there lived a cheerful girl named Little Red Riding Hood. She was named so because of the beautiful red cloak with a hood that she always wore, a gift from her loving grandmother.
One sunny morning, Little Red Riding Hood’s mother said, “Dear, please take this basket of goodies to your grandmother. She is not feeling well, and these treats will surely cheer her up.”
Little Red Riding Hood, always eager to help, replied with a smile, “Of course, Mother! I’ll go through the forest and straight to Grandma’s house.”
Her mother cautioned her, “Remember, stay on the path and don’t talk to strangers!”
With a nod, Little Red Riding Hood skipped into the forest, humming a merry tune. The woods were alive with the sounds of nature, and the path was dappled with sunlight.
Along the way, she met a sly wolf. “Where are you going, little girl?” the wolf asked with a cunning smile.
“To my grandmother’s house, Mr. Wolf. She lives just past the mill, by the stream,” replied Little Red Riding Hood innocently.
The wolf, with a plan forming in his mind, said, “Why don’t you pick some flowers for her? I’m sure she would love them.”
“That’s a wonderful idea!” exclaimed Little Red Riding Hood, wandering off the path to pick flowers.
Meanwhile, the wolf hurried to Grandma’s house and, finding her alone, swallowed her whole! He then dressed in her clothes and lay in her bed, waiting for Little Red Riding Hood.
When she finally arrived, Little Red Riding Hood was surprised. “Grandma, what big eyes you have!”
“All the better to see you with, my dear,” replied the wolf, trying to imitate Grandma’s voice.
“And what big ears you have!”
“All the better to hear you with, my dear.”
“And what big teeth you have!”
“All the better to eat you with!” roared the wolf, jumping out of bed.
Just then, a brave woodsman, hearing the commotion, burst into the house. He quickly dealt with the wolf, saving both Little Red Riding Hood and her grandmother, who was miraculously unharmed.
Little Red Riding Hood hugged her grandmother tightly, saying, “I’m so sorry, Grandma. I should have stayed on the path and not talked to strangers.”
Her grandmother replied with a loving smile, “It’s alright, my dear. You’re safe now, and that’s all that matters.”
From that day on, Little Red Riding Hood always remembered her mother’s advice. She never strayed from the path again, carrying the lesson of her adventure in the woods with her always.
And so, the tale of Little Red Riding Hood became a story passed down through generations, a reminder of the importance of being cautious and listening to the wisdom of those who care for us.
Moral Of the Story
The moral of “Little Red Riding Hood” emphasizes the importance of staying on the safe path and not getting distracted by dangers.
माता सीता का चंडी रूप
भगवान श्रीराम राजसभा में विराज रहे थे उसी समय विभीषण वहां पहुंचे। वे बहुत भयभीत और हड़बड़ी में लग रहे थे। सभा में प्रवेश करते ही वे कहने लगे- हे राम! मुझे बचाइए, कुंभकर्ण का बेटा मूलकासुर आफत ढा रहा है। अब लगता है, न लंका बचेगी और न मेरा राजपाट।
भगवान श्रीराम द्वारा ढांढस बंधाए जाने और पूरी बात बताए जाने पर विभीषण ने बताया कि कुंभकर्ण का एक बेटा मूल नक्षत्र में पैदा हुआ था इसलिए उस का नाम मूलकासुर रखा गया। इसे अशुभ जान कुंभकर्ण ने जंगल में फिंकवा दिया था। जंगल में मधुमक्खियों ने मूलकासुर को पाल लिया।
मूलकासुर जब बड़ा हुआ तो उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। अब उनके दिए वर और बल के घमंड में भयानक उत्पात मचा रखा है। जब जंगल में उसे पता चला कि आपने उसके खानदान का सफाया कर लंका जीत ली और राजपाट मुझे सौंप दिया है, तो वह क्रोधित है।
भगवन्, आपने जिस दिन मुझे राजपाट सौंपा उसके कुछ दिन बाद ही उसने पातालवासियों के साथ लंका पहुंचकर मुझ पर धावा बोल दिया। मैंने 6 महीने तक मुकाबला किया, पर ब्रह्माजी के वरदान ने उसे इतना ताकतवर बना दिया है कि मुझे भागना पड़ा तथा अपने बेटे, मंत्रियों तथा स्त्री के साथ किसी प्रकार सुरंग के जरिए भागकर यहां पहुंचा हूं।
उसने कहा कि 'पहले धोखेबाज भेदिया विभीषण को मारूंगा फिर पिता की हत्या करने वाले राम को भी मार डालूंगा। वह आपके पास भी आता ही होगा। समय कम है, लंका और अयोध्या दोनों खतरे में हैं। जो उचित समझते हों तुरंत कीजिए।'
भक्त की पुकार सुन श्रीरामजी हनुमान तथा लक्ष्मण सहित सेना को तैयार कर पुष्पक यान पर चढ़ झट लंका की ओर चल पड़े।
मूलकासुर को श्रीरामचन्द्र के आने की बात मालूम हुई, वह भी सेना लेकर लड़ने के लिए लंका के बाहर आ डटा। भयानक युद्ध छिड़ गया। 7 दिनों तक घोर युद्ध होता रहा। मूलकासुर भगवान श्रीराम की सेना पर अकेले ही भारी पड़ रहा था।
अयोध्या से सुमंत्र आदि सभी मंत्री भी आ पहुंचे। हनुमानजी संजीवनी लाकर वानरों, भालुओं तथा मानुषी सेना को जिलाते जा रहे थे। पर सब कुछ होते हुए भी युद्ध का नतीजा उनके पक्ष में जाता नहीं दिख रहा था। भगवान भी चिंता में थे।
विभीषण ने बताया कि इस समय मूलकासुर तंत्र-साधना करने गुप्त गुफा में गया है। उसी समय ब्रह्माजी वहां आए और भगवान से कहने लगे- 'रघुनंदन! इसे तो मैंने स्त्री के हाथों मरने का वरदान दिया है। आपका प्रयास बेकार ही जाएगा।
श्रीराम, इससे संबंधित एक बात और है, उसे भी जान लेना फायदेमंद हो सकता है। जब इसके भाई-बिरादर लंका युद्ध में मारे जा चुके तो एक दिन इसने मुनियों के बीच दुखी होकर कहा, 'चंडी सीता के कारण मेरा समूचा कुल नष्ट हुआ'। इस पर एक मुनि ने नाराज होकर उसे शाप दे दिया- 'दुष्ट! तूने जिसे 'चंडी' कहा है, वही सीता तेरी जान लेगी।' मुनि का इतना कहना था कि वह उन्हें खा गया बाकी मुनि उसके डर से चुपचाप खिसक गए। तो हे राम! अब कोई दूसरा उपाय नहीं है। अब तो केवल सीता ही इसका वध कर सकती हैं। आप उन्हें यहां बुलाकर इसका वध करवाइए, इतना कहकर ब्रह्माजी चले गए।
भगवान श्रीराम ने हनुमानजी और गरूड़ को तुरंत पुष्पक विमान से सीताजी को लाने भेजा।
इधर सीता देवी-देवताओं की मनौती मनातीं, तुलसी, शिव-प्रतिमा, पीपल आदि के फेरे लगातीं, ब्राह्मणों से 'पाठ, रुद्रीय' का जप करातीं, दुर्गाजी की पूजा करतीं कि विजयी श्रीराम शीघ्र लौटें। तभी गरूड़ और हनुमानजी उनके पास पहुंचे।
पति के संदेश को सुनकर सीताजी तुरंत चल दीं। भगवान श्रीराम ने उन्हें मूलकासुर के बारे में सारा कुछ बताया। फिर तो भगवती सीता को गुस्सा आ गया। उनके शरीर से एक दूसरी तामसी शक्ति निकल पड़ी, उसका स्वर बड़ा भयानक था। यह छाया सीता चंडी के वेश में लंका की ओर बढ़ चलीं।
इधर श्रीराम ने वानर सेना को इशारा किया कि मूलकासुर जो तांत्रिक क्रियाएं कर रहा है उसको उसकी गुप्त गुफा में जाकर तहस-नहस करें। वानर गुफा के भीतर पहुंचकर उत्पात मचाने लगे तो मूलकासुर दांत किटकिटाता हुआ सब छोड़-छाड़कर वानर सेना के पीछे दौड़ा। हड़बड़ी में उसका मुकुट गिर पड़ा। फिर भी भागता हुआ वह युद्ध के मैदान में आ गया।
युद्ध के मैदान में छाया सीता को देखकर मूलकासुर गरजा, तू कौन? अभी भाग जा। मैं औरतों पर मर्दानगी नहीं दिखाता।
छाया सीता ने भी भीषण आवाज करते हुए कहा, 'मैं तुम्हारी मौत चंडी हूं। तूने मेरा पक्ष लेने वाले मुनियों और ब्राह्मणों को खा डाला था, अब मैं तुम्हें मारकर उसका बदला चुकाऊंगी।' इतना कहकर छाया सीता ने मूलकासुर पर 5 बाण चलाए। मूलकासुर ने भी जवाब में बाण चलाए। कुछ देर तक घोर युद्ध हुआ, पर अंत में 'चंडिकास्त्र' चलाकर छाया सीता ने मूलकासुर का सिर उड़ा दिया और वह लंका के दरवाजे पर जा गिरा।
राक्षस हाहाकार करते हुए इधर-उधर भाग खड़े हुए। छाया सीता लौटकर सीता के शरीर में प्रवेश कर गई। मूलकासुर से दुखी लंका की जनता ने मां सीता की जय-जयकार की और विभीषण ने उन्हें धन्यवाद दिया। कुछ दिनों तक लंका में रहकर श्रीराम सीता सहित पुष्पक विमान से अयोध्या लौट आए।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें