सम्राट के नए कपड़े
एक भव्य राज्य में, जहां राजसी पताकाएं हवा में लहरा रही थीं, वहां एक सम्राट रहता था जिसे नए कपड़ों से ज्यादा कुछ पसंद नहीं था। उसने अपना सारा समय और पैसा अच्छे कपड़े पहनने में खर्च कर दिया, बाकी किसी भी चीज़ की बिल्कुल भी परवाह नहीं की।
एक दिन राज्य में दो चालाक बुनकर आये। उन्होंने दावा किया, "हमने एक असाधारण कपड़े का आविष्कार किया है, जो किसी के लिए भी अदृश्य है जो अपनी नौकरी के लिए अयोग्य है या बेहद मूर्ख है।"
सम्राट ने जिज्ञासु और अपनी बुद्धि के बारे में थोड़ा चिंतित होकर आदेश दिया, “इस जादुई कपड़े से मेरे लिए एक सूट बनाओ। मुझे पूरे देश में सबसे अच्छे कपड़े पहनने चाहिए!
बुनकर अस्तित्वहीन कपड़े बुनने का नाटक करते हुए काम पर लग गए। उन्होंने बेहतरीन रेशम और शुद्ध सोने का धागा मांगा, जिसे उन्होंने जेब में रख लिया और सम्राट के सलाहकारों को खाली करघा दिखाया।
सलाहकार, मूर्ख या अपनी नौकरी के लिए अयोग्य नहीं दिखना चाहते थे, उन्होंने अदृश्य संरचना की प्रशंसा की। "यह शानदार है!" ने झूठ बोले।
सम्राट ने स्वयं दौरा किया और कुछ न देखकर घबराहट की लहर दौड़ गई। लेकिन, इस डर से कि उसे अयोग्य समझा जा सकता है, उसने भी कहा, “क्या शानदार वस्त्र हैं! सचमुच प्रतिभा का काम!”
भव्य परेड का दिन आ गया और बुनकरों ने सम्राट को उनके नए 'कपड़े' भेंट किए। उसने हल्के कपड़े पहने और अपनी प्रजा के सामने परेड की, जिसने जादुई कपड़े के बारे में सुना था। वे अयोग्य या मूर्ख नहीं दिखना चाहते थे, उन सभी ने तालियाँ बजाईं और अदृश्य वस्त्रों की प्रशंसा की।
भीड़ के बीच, एक छोटा बच्चा, जो ढोंग को समझने में बहुत मासूम था, ने इशारा किया और जोर से कहा, "लेकिन उसने कुछ भी नहीं पहना है!"
यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई, और जल्द ही पूरी भीड़ बड़बड़ाने लगी, "उसके पास कुछ भी नहीं है!"
सम्राट को सच्चाई का एहसास हुआ लेकिन वह अपनी मूर्खता स्वीकार करने में बहुत गर्व महसूस कर रहा था। उसने सोचा, "मुझे अंत तक आगे बढ़ना चाहिए।" और इसलिए, उसने अपने अदृश्य लबादे में, पहले से कहीं अधिक गौरवान्वित होकर, जुलूस जारी रखा।
उस दिन से, सम्राट ने ईमानदारी का मूल्य और घमंड की मूर्खता सीखी। राज्य ने सम्राट के अदृश्य वस्त्रों की कहानी को विनम्रता और सच बोलने के साहस के सबक के रूप में याद किया।
और इसलिए, "द एम्परर्स न्यू क्लॉथ्स" की कहानी पीढ़ियों से चली आ रही है, जो बच्चों और वयस्कों को ईमानदारी के महत्व और घमंड और दिखावे के आगे झुकने के खतरों को समान रूप से सिखाती है।
कहानी का नैतिक
सम्राट के नए कपड़े सिखाते हैं कि स्वयं के बारे में सोचना, सच बोलना और घमंड या दूसरों की झूठी राय से प्रभावित नहीं होना महत्वपूर्ण है।
The Emperor’s New Clothes
In a grand kingdom, where majestic banners fluttered in the breeze, there lived an Emperor who loved nothing more than new clothes. He spent all his time and money on being finely dressed, caring little for anything else.
One day, two cunning weavers arrived in the kingdom. They boasted, “We have invented an extraordinary fabric, invisible to anyone who is unfit for their job or hopelessly stupid.”
The Emperor, curious and a bit anxious about his own wisdom, commanded, “Create for me a suit from this magical cloth. I must be the finest dressed in all the land!”
The weavers set to work, pretending to weave the non-existent fabric. They asked for the finest silk and the purest gold thread, which they pocketed, showing the empty loom to the Emperor’s advisors.
The advisors, not wanting to appear foolish or unfit for their jobs, praised the invisible fabric. “It’s magnificent!” they lied.
The Emperor himself visited, and seeing nothing, felt a wave of panic. But, fearing he might be deemed unworthy, he too exclaimed, “What splendid robes! Truly the work of genius!”
The day of the grand parade arrived, and the weavers presented the Emperor with his new ‘clothes’. He dressed in thin air, and paraded before his subjects, who had heard of the magical fabric. Not wanting to seem unfit or stupid, they all applauded and praised the invisible robes.
Amidst the crowd, a young child, too innocent to understand the pretense, pointed and said loudly, “But he isn’t wearing anything at all!”
The word spread like wildfire, and soon the whole crowd was murmuring, “He’s got nothing on!”
The Emperor realized the truth but was too proud to admit his folly. He thought, “I must carry on till the end.” And so, he continued the procession, prouder than ever, in his invisible robes.
From that day, the Emperor learned the value of honesty and the folly of vanity. The kingdom remembered the tale of the Emperor’s invisible robes as a lesson in humility and the courage to speak the truth.
And so, the story of “The Emperor’s New Clothes” passed down through generations, teaching children and adults alike the importance of sincerity and the dangers of succumbing to pride and pretense.
Moral of The Story
The Emperor’s New Clothes teaches that it’s important to think for oneself, speak the truth, and not be swayed by vanity or the false opinions of others.
आज की कहानी
झूठा दिखावा
एक जंगल में बंदरों का बड़ा झुंड था ।उस जंगल में खाने पीने की कोई कमी नहीं थी इसलिए सारे बंदर बहुत आराम और संतुष्ट होकर रहते थे।
एक दिन एक वैज्ञानिक अपनी बेटी के साथ उसी जंगल में शोध करने के लिए आया। अपना तम्बू लगाने के बाद वैज्ञानिक पौधों के नमूने इकट्ठा करने के लिए बाहर निकला ।
लेकिन लड़की तम्बू की सुंदरता को देखकर रुक गयी। उसने पहले ज़मीन पर एक पुराना कालीन रखा और उस पर एक बिस्तर बिछाया। तम्बू के बीच लालटेन लटकाई और उसके नीचे एक छोटी मेज़ और सफेद सेब से भरा कटोरा रख दिया।
वह सेब देखने में बहुत ताज़ा, खुबसूरत और बड़े लग रहे थे।
सारे बन्दर लालच से उस कृत्रिम सेब को पेड़ों पर बैठे देख रहे थे।
तम्बू के सामने जगह साफ करने के लिए लड़की बाहर निकली,तब एक बंदर ने तेज़ी से झपटा मारा और एक कृत्रिम सेब उठा लिया ।तभी उसी समय लड़की की नज़र भी उस पर पड़ गयी, लड़की ने तुरंत बंदूक उठाकर निशाना लगाया और गोली दाग दिया, लेकिन सभी बंदर इतनी देर में वहां से भाग गए।
काफी देर के बाद सारे बन्दर रुक गए जब उन्होंने देखा कि अब उनका कोई पीछा नहीं कर रहा है।
चोर बंदर ने हाथ उठाकर सबको सेब दिखाया। सभी बंदर हैरत से और ललचाई नज़र से उस बंदर को देखने लगे कि उसे कितना अच्छा सेब मिला है ।सभी इस कृत्रिम सेब को हाथ लगाने की कोशिश करने लगे।
चोर बंदर ने सबको फटकार कर ये कृत्रिम सेब लिया और एक पेड़ की सबसे ऊंची शाख पर जाकर सेब खाने के लिए मुंह में दबा दिया।
कृत्रिम सेब बेहद कड़े प्लास्टिक से बना था । बंदर के दांतों में चबाने से दर्द शुरू हो गया। बंदर ने दो तीन बार और कोशिश की लेकिन हर बार दर्द होने लगा।
उस दिन चोर बंदर ने पेड़ की उसी शाखा पर भूखा रहकर गुज़ारा । अगले दिन वह पेड़ से नीचे आया ।
सभी बंदरों ने उसे सम्मान से देखा, क्योंकि उसके हाथ में वो कृत्रिम सेब मौजूद था। दूसरे बंदरों से मिलने वाला सम्मान को देखकर चोर बंदर ने सेब पर पकड़ मज़बूत बना ली।
अब दूसरे बंदर फलों की तलाश में निकले और एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक कूद कर फल तोड़ तोड़कर खाने लगे।
चोर बंदर के एक हाथ में कृत्रिम सेब था,इसलिए वो पेड़ पर नहीं चढ़ सका। वो सेब को हाथ से नहीं छोड़ना चाहता था इसलिए वह दिन भर भूखा प्यासा रहा और यही सिलसिला आगे कुछ दिन तक चलता रहा।
हालांकि दूसरे बंदर उसके हाथ में कृत्रिम सेब देखकर उसका सम्मान करते लेकिन उसे खाने के लिए कुछ भी नहीं देते।
चोर बंदर भूख से इतना निढाल हो गया था कि अब उसे अपना आखिरी वक़्त नज़र आने लगा। उसने एक बार फिर उस सेब को खाने की कोशिश की लेकिन इस बार नतीजा अलग नहीं था। उसके दांत इस बार भी दर्द कर रहे थे ।
चोर बंदर को आँखों के सामने पेड़ों से लटका हुआ फल दिखाई दे रहा था। लेकिन इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह इन पेड़ों पर चढ़ सके। धीरे धीरे उसकी आँखें हमेशा के लिए बंद हो गई। जैसे ही उसकी जान निकली कृत्रिम सेब पर पकड़ ढीली होने से वो उसके हाथ से बाहर लुढ़क गया।
शाम को बाकी बंदर, मरे बंदर के पास आए, कुछ आंसू बहाये और उसके शरीर को पत्तों से ढक दिया। जब वो ये कर रहे थे तब एक और बंदर को एक कृत्रिम सेब मिला और उसने अपना हाथ ऊँचा कर के सभी बंदरो को सेब दिखाना शुरू कर दिया।
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दुनिया की मिसाल इस प्लास्टिक के सेब की तरह है, इससे कुछ नहीं मिलता। जबकी इसे देखने वाले प्रेरित होते रहते हैं और दुनिया को हाथ में रखने का दावेदार आख़िर में ख़ाली हाथ इस दुनिया से चला जाता है। कोई और आकर उसकी दुनिया पर क़ब्ज़ा कर लेता है।
"झूठा दिखावा इंसान को पहले थका देता है और फिर मार डालता है।"
कैसे एक ही परिवार में रहते हुए ,परिवार के सदस्यों द्वारा एक दूजे के खिलाफ चालबाजी करते हुए पकड़ा...पूरी कहानी जरूर सुने।।।
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