द सॉसी बॉय
एक छोटे से गाँव की एक छोटी सी झोपड़ी में एक शरारती लड़का रहता था जो अपनी भद्दी टिप्पणियों के लिए जाना जाता था। एक दिन, उसकी माँ ने उसके चुटीलेपन से तंग आकर फैसला किया कि अब उसे सबक सिखाने का समय आ गया है।
"तुम दुनिया में जाओ और कुछ शिष्टाचार सीखो!" उसने घोषणा की. एक शरारती मुस्कान के साथ, लड़के ने अपना सामान पैक किया और अपने साहसिक कार्य पर निकल पड़ा।
लड़का अभी ज्यादा दूर नहीं चला था कि उसकी मुलाकात सड़क पर एक बूढ़ी औरत से हुई। "शुभ दिन, माँ," उसने धूर्त मुस्कान के साथ कहा। "आप बहुत झुके हुए हैं, आप अपने कूबड़ में बैटर मिला सकते हैं!"
“ओह, तुम चालाक लड़के! आपकी जीभ आपको एक दिन मुसीबत में डाल देगी!” बुढ़िया ने उंगली हिलाते हुए डांटा।
लेकिन लड़का बस हंसता रहा और तब तक चलता रहा जब तक वह राजा के महल तक नहीं पहुंच गया। वहाँ, वह साहसपूर्वक राजा के पास गया। "महामहिम," उन्होंने कहा, "मैंने सुना है कि आपके शूरवीर बहादुर हैं, लेकिन मुझे यकीन है कि मैं उनमें से किसी से भी अधिक साहसी हो सकता हूँ!"
लड़के के दुस्साहस से प्रसन्न होकर राजा हँसा। "यदि आप इसे साबित कर सकते हैं, तो मैं आपको सोने का एक थैला इनाम में दूँगा। लेकिन यदि तुम असफल हुए तो मैं तुम्हें कालकोठरी में डलवा दूँगा।
लड़के ने चुनौती स्वीकार कर ली और जल्द ही अपने मधुर शब्दों के लिए राज्य में प्रसिद्ध हो गया। उसने राजकुमारी को हँसाया और रानी हाँफने लगी। यहां तक कि उसने राजा के घोड़े को भी चिढ़ाया क्योंकि उसके चार पैर थे लेकिन फिर भी वह लकड़ी में आग नहीं लगा पा रहा था!
अंत में, राजा ने घोषणा की, "तुम सचमुच इस देश के सबसे साहसी लड़के हो!" और उसे सोने का एक थैला दिया।
जेब भारी करके लड़का घर लौट आया। उसकी माँ ने आश्चर्यचकित होकर उसका स्वागत किया। "मेरे बेटे, क्या तुमने अपनी यात्रा से कुछ नहीं सीखा?"
लड़के ने आँख मार कर उसे सोना दे दिया। "मैंने सीखा है कि एक चटपटी जीभ सोने से भी अधिक कीमती हो सकती है, लेकिन चिंता मत करो, माँ। इसके साथ, मैं हमें एक बेहतर जीवन खरीदूंगा, और हां, शायद मैं थोड़ा कम चालाक हो जाऊंगा।
और उस दिन के बाद से, लड़का अभी भी चंचल था, लेकिन अच्छी तरह से जानता था कि कब अपनी चंचलता को चमकने देना है और कब इसे नियंत्रण में रखना है, क्योंकि हर शब्द का अपना स्थान और समय होता है।
कहानी का नैतिक
हंस क्रिस्चियन एंडरसन द्वारा लिखित "द सॉसी बॉय" हमें सिखाता है कि चतुराई और बुद्धि आकर्षक हो सकती है, लेकिन यह जानना कि उनका उपयोग कब करना है, ज्ञान की सच्ची पहचान है
The Saucy Boy
In a tiny cottage in a small village lived a naughty boy known for his saucy remarks. One day, his mother, tired of his cheekiness, decided it was time for a lesson.
“Off you go to the world and learn some manners!”. She declared. With a mischievous grin, the boy packed his things and set off on his adventure.
The boy hadn’t walked far when he met an old lady on the road. “Good day, Mother,” he said with a sly smile. “You’re so hunched, you could mix the batter in your hump!”
“Oh, you saucy boy! Your tongue will get you in trouble one day!” the old lady scolded, shaking her finger.
But the boy just laughed and continued on his way until he reached the king’s castle. There, he boldly marched up to the king. “Your Highness,” he said, “I’ve heard your knights are brave, but I bet I can be cheekier than any of them are courageous!”
Amused by the boy’s audacity, the king chuckled. “If you can prove it, I’ll reward you with a bag of gold. But if you fail, I’ll have you thrown in the dungeon.”
The boy accepted the challenge and soon became renowned in the kingdom for his saucy words. He made the princess laugh and the queen gasp. He even teased the king’s horse for having four legs but still being unable to put a log on the fire!
Finally, the king declared, “You truly are the sauciest boy in the land!” and gave him a bag of gold.
With his pockets heavy, the boy returned home. His mother greeted him, astonished. “My son, have you learned nothing from your journey?”
The boy winked and handed her the gold. “I’ve learned that a saucy tongue can be more precious than gold, but don’t worry, Mother. With this, I’ll buy us a better life, and yes, perhaps I’ll be a little less saucy.”
And from that day on, the boy was still playful but knew well when to let his sauciness shine and when to keep it in check, for every word has its place and time.
Moral of The Story
“The Saucy Boy” by Hans Christian Anderson teaches us that while cleverness and wit can be charming, knowing when to use them is the true mark of wisdom
आज की कहानी
झूठा दिखावा
एक जंगल में बंदरों का बड़ा झुंड था ।उस जंगल में खाने पीने की कोई कमी नहीं थी इसलिए सारे बंदर बहुत आराम और संतुष्ट होकर रहते थे।
एक दिन एक वैज्ञानिक अपनी बेटी के साथ उसी जंगल में शोध करने के लिए आया। अपना तम्बू लगाने के बाद वैज्ञानिक पौधों के नमूने इकट्ठा करने के लिए बाहर निकला ।
लेकिन लड़की तम्बू की सुंदरता को देखकर रुक गयी। उसने पहले ज़मीन पर एक पुराना कालीन रखा और उस पर एक बिस्तर बिछाया। तम्बू के बीच लालटेन लटकाई और उसके नीचे एक छोटी मेज़ और सफेद सेब से भरा कटोरा रख दिया।
वह सेब देखने में बहुत ताज़ा, खुबसूरत और बड़े लग रहे थे।
सारे बन्दर लालच से उस कृत्रिम सेब को पेड़ों पर बैठे देख रहे थे।
तम्बू के सामने जगह साफ करने के लिए लड़की बाहर निकली,तब एक बंदर ने तेज़ी से झपटा मारा और एक कृत्रिम सेब उठा लिया ।तभी उसी समय लड़की की नज़र भी उस पर पड़ गयी, लड़की ने तुरंत बंदूक उठाकर निशाना लगाया और गोली दाग दिया, लेकिन सभी बंदर इतनी देर में वहां से भाग गए।
काफी देर के बाद सारे बन्दर रुक गए जब उन्होंने देखा कि अब उनका कोई पीछा नहीं कर रहा है।
चोर बंदर ने हाथ उठाकर सबको सेब दिखाया। सभी बंदर हैरत से और ललचाई नज़र से उस बंदर को देखने लगे कि उसे कितना अच्छा सेब मिला है ।सभी इस कृत्रिम सेब को हाथ लगाने की कोशिश करने लगे।
चोर बंदर ने सबको फटकार कर ये कृत्रिम सेब लिया और एक पेड़ की सबसे ऊंची शाख पर जाकर सेब खाने के लिए मुंह में दबा दिया।
कृत्रिम सेब बेहद कड़े प्लास्टिक से बना था । बंदर के दांतों में चबाने से दर्द शुरू हो गया। बंदर ने दो तीन बार और कोशिश की लेकिन हर बार दर्द होने लगा।
उस दिन चोर बंदर ने पेड़ की उसी शाखा पर भूखा रहकर गुज़ारा । अगले दिन वह पेड़ से नीचे आया ।
सभी बंदरों ने उसे सम्मान से देखा, क्योंकि उसके हाथ में वो कृत्रिम सेब मौजूद था। दूसरे बंदरों से मिलने वाला सम्मान को देखकर चोर बंदर ने सेब पर पकड़ मज़बूत बना ली।
अब दूसरे बंदर फलों की तलाश में निकले और एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक कूद कर फल तोड़ तोड़कर खाने लगे।
चोर बंदर के एक हाथ में कृत्रिम सेब था,इसलिए वो पेड़ पर नहीं चढ़ सका। वो सेब को हाथ से नहीं छोड़ना चाहता था इसलिए वह दिन भर भूखा प्यासा रहा और यही सिलसिला आगे कुछ दिन तक चलता रहा।
हालांकि दूसरे बंदर उसके हाथ में कृत्रिम सेब देखकर उसका सम्मान करते लेकिन उसे खाने के लिए कुछ भी नहीं देते।
चोर बंदर भूख से इतना निढाल हो गया था कि अब उसे अपना आखिरी वक़्त नज़र आने लगा। उसने एक बार फिर उस सेब को खाने की कोशिश की लेकिन इस बार नतीजा अलग नहीं था। उसके दांत इस बार भी दर्द कर रहे थे ।
चोर बंदर को आँखों के सामने पेड़ों से लटका हुआ फल दिखाई दे रहा था। लेकिन इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह इन पेड़ों पर चढ़ सके। धीरे धीरे उसकी आँखें हमेशा के लिए बंद हो गई। जैसे ही उसकी जान निकली कृत्रिम सेब पर पकड़ ढीली होने से वो उसके हाथ से बाहर लुढ़क गया।
शाम को बाकी बंदर, मरे बंदर के पास आए, कुछ आंसू बहाये और उसके शरीर को पत्तों से ढक दिया। जब वो ये कर रहे थे तब एक और बंदर को एक कृत्रिम सेब मिला और उसने अपना हाथ ऊँचा कर के सभी बंदरो को सेब दिखाना शुरू कर दिया।
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दुनिया की मिसाल इस प्लास्टिक के सेब की तरह है, इससे कुछ नहीं मिलता। जबकी इसे देखने वाले प्रेरित होते रहते हैं और दुनिया को हाथ में रखने का दावेदार आख़िर में ख़ाली हाथ इस दुनिया से चला जाता है। कोई और आकर उसकी दुनिया पर क़ब्ज़ा कर लेता है।
"झूठा दिखावा इंसान को पहले थका देता है और फिर मार डालता है।"
कैसे एक ही परिवार में रहते हुए ,परिवार के सदस्यों द्वारा एक दूजे के खिलाफ चालबाजी करते हुए पकड़ा...पूरी कहानी जरूर सुने।।।
मैम pls कुछ करिए ना मुझे अनब्लॉक होना है ग्रुप में। मुझे तो एडमिन की id नही मालूम मैं उनसे संपर्क कैसे करू!
जवाब देंहटाएंहमने एडमिन को सूचित कर दिया है संडे को हो जाएगा
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