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उल्लू और टिड्डा


एक पुराने ओक के पेड़ की छाया में, मिस्टर उल्लू एक शाखा पर बैठे, आँखें आधी बंद करके, दिन के दौरान थोड़ा आराम करने की कोशिश कर रहे थे। उसके नीचे, लंबी हरी घास में, मिस्टर ग्रासहॉपर एक मधुर धुन गाते हुए इधर-उधर कूद रहे थे।

"अरे, मिस्टर उल्लू!" मिस्टर ग्रासहॉपर चहकते हुए बोले, “आप इतने उदास और चुप क्यों हैं? तुम नीचे आकर मेरे साथ नृत्य क्यों नहीं करते?”
मिस्टर उल्लू ने धीरे-धीरे अपनी बड़ी-बड़ी गोल आँखें खोलते हुए उत्तर दिया, “मैं पूरी रात जागकर देखता और शिकार करता हूँ। दिन का समय वह होता है जब मैं आराम करता हूँ।”

लेकिन मिस्टर ग्रासहॉपर ने नहीं सुनी। वह लगातार ऊंचे स्वर में गाता रहा, उसकी धुन चिढ़ाने वाली और चंचल थी। “जागो, जागो, मिस्टर उल्लू! सूरज को देखो, हवा को महसूस करो!”

श्री उल्लू उत्तेजित हो गये। "श्री। टिड्डी, हालांकि मैं आपकी भावना की प्रशंसा करता हूं, हर किसी का अपना समय होता है। रात मेरी है, और दिन तेरा है।”

फिर भी, मिस्टर ग्रासहॉपर हँसे और खेले। "दुनिया बहुत बड़ी है, इसमें सोने के लिए बहुत आनंद है," उसने चहकते हुए कहा।

एक दिन, जैसे ही सर्दियाँ करीब आईं, भोजन दुर्लभ हो गया। मिस्टर ग्रासहॉपर, बिना भोजन और बिना किसी तैयारी के, खुद को ठंडा और भूखा पाया। उसने ऊपर देखा और मिस्टर उल्लू को अपने पंख फैलाए हुए, भोजन के लिए रखे कुछ चूहों के साथ, अपनी शाखा पर आराम से बैठे हुए देखा।

"श्री। उल्लू,'' मिस्टर ग्रासहॉपर ने कमज़ोरी से कहा, ''क्या आप एक निवाला बाँट सकते हैं?''
श्री उल्लू ने नीचे देखा, उनकी आँखें नरम हो रही थीं। "श्री। टिड्डी, यदि तुमने मेरी तरह कठिन समय के लिए तैयारी की होती तो तुम्हारी यह दुर्दशा नहीं होती।”
मिस्टर ग्रासहॉपर को अपनी मूर्खता का एहसास हुआ और समझ में सिर हिलाया।

कहानी की नीति 

भविष्य के लिए तैयारी करना ज़रूरी है न कि केवल वर्तमान में जीना।


The Owl and The Grasshopper

In the shade of an old oak tree, Mr. Owl sat perched on a branch, eyes half-closed, trying to get a little rest during the day. Below him, in the tall green grass, Mr. Grasshopper was jumping around, singing a merry tune.

“Hey, Mr. Owl!” chirped Mr. Grasshopper, “Why are you so gloomy and silent? Why don’t you come down and dance with me?”
Mr. Owl, slowly opening his big round eyes, replied, “I stay awake all night, watching and hunting. Daytime is when I rest.”

But Mr. Grasshopper didn’t listen. He continued to sing louder, his tune teasing and playful. “Wakey, wakey, Mr. Owl! See the sun, feel the breeze!”

Mr. Owl grew agitated. “Mr. Grasshopper, while I admire your spirit, everyone has their time. Night is mine, and day is yours.”

Still, Mr. Grasshopper laughed and played. “The world is too big, too full of joy to sleep through it,” he chirped.

One day, as winter approached, food became scarce. Mr. Grasshopper, with no food and no preparations, found himself cold and hungry. He looked up and saw Mr. Owl, with his feathers puffed, sitting snugly on his branch, with a few mice stored for food.

“Mr. Owl,” called Mr. Grasshopper weakly, “might you share a morsel?”
Mr. Owl looked down, his eyes softening. “Mr. Grasshopper, had you prepared for the hard times as I did, you would not be in this plight.”
Mr. Grasshopper, realizing his folly, nodded in understanding.

Moral of the Story

It’s essential to prepare for the future and not just live in the present. 



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