रिश्तों का महत्व
घर की नई नवेली एकलौती बहू एक प्राइवेट बैंक में बड़े ओहदे पर थी । उसकी सास तकरीबन एक साल पहले ही गुज़र चुकी थी । घर में बुज़ुर्ग ससुर औऱ उसके पति के अलावे कोई न था । पति का अपना कारोबार था ।
पिछले कुछ दिनों से बहू के साथ एक विचित्र बात होती ।बहू जब जल्दी जल्दी घर का काम निपटा कर ऑफिस के लिए निकलती ठीक उसी वक़्त ससुर उसे आवाज़ देते औऱ कहते बहू ,मेरा चश्मा साफ कर मुझें देती जा ।
लगातार ऑफिस के लिए निकलते समय बहू के साथ यही होता । काम के दबाव औऱ देर होने के कारण क़भी कभी बहू मन ही मन झल्ला जाती लेकिन फ़िरभी अपने ससुर को कुछ बोल नहीं पाती ।
जब बहू अपने ससुर के इस आदत से पूरी तरह ऊब गई तो उसने पूरे माजरे को अपने पति के साथ साझा किया ।पति को भी अपने पिता के इस व्यवहार पर बड़ा ताज्जुब हुआ लेकिन उसने अपने पिता से कुछ नहीं कहा ।
पति ने अपनी पत्नी को सलाह दी कि तुम सुबह उठते के साथ ही पिताजी का चश्मा साफ करके उनके कमरे में रख दिया करो ,फिर ये झमेला समाप्त हो जाएगा ।
अगले दिन बहू ने ऐसा ही किया औऱ अपने ससुर के चश्मे को सुबह ही अच्छी तरह साफ करके उनके कमरे में रख आई ।
लेकिन फ़िरभी उस दिन वही घटना पुनः हुई औऱ ऑफिस के लिए निकलने से ठीक पहले ससुर ने अपनी बहू को बुलाकर उसे चश्मा साफ़ करने के लिए कहा ।
बहू गुस्से में लाल हो गई लेकिन उसके पास कोई चारा नहीं था ।
बहू के लाख उपायों के बावजूद ससुर ने उसे सुबह ऑफिस जाते समय आवाज़ देना नहीं छोड़ा ।
धीरे धीरे समय बीतता गया औऱ ऐसे ही कुछ वर्ष निकल गए।
अब बहू पहले से कुछ बदल चुकी थी। धीरे धीरे उसने अपने ससुर की बातों को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया और फ़िर ऐसा भी वक़्त चला आया जब बहू अपने ससुर को बिलकुल अनसुना करने लगी । ससुर के कुछ बोलने पर वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देती औऱ बिलकुल ख़ामोशी से अपने काम में मस्त रहती ।
गुज़रते वक़्त के साथ ही एक दिन बेचारे बुज़ुर्ग ससुर भी गुज़र गए ।
समय का पहिया कहाँ रुकने वाला था,वो घूमता रहा घूमता रहा ।
छुट्टी का एक दिन था। अचानक बहू के मन में घर की साफ़ सफाई का ख़याल आया । वो अपने घर की सफ़ाई में जुट गई । तभी सफाई के दौरान मृत ससुर की डायरी उसके हाथ लग गई ।
बहू ने जब अपने ससुर की डायरी को पलटना शुरू किया तो उसके एक पन्ने पर लिखा था-"दिनांक 26.10.2019.... आज के इस भागदौड़ औऱ बेहद तनाव व संघर्ष भरी ज़िंदगी में , घर से निकलते समय, बच्चे अक्सर बड़ों का आशीर्वाद लेना भूल जाते हैं जबकि बुजुर्गों का यही आशीर्वाद मुश्किल समय में उनके लिए ढाल का काम करता है । बस इसीलिए, जब तुम चश्मा साफ कर मुझे देने के लिए झुकती थी तो मैं मन ही मन, अपना हाथ तुम्हारे सिर पर रख देता था क्योंकि मरने से पहले तुम्हारी सास ने मुझें कहा था कि बहू को अपनी बेटी की तरह प्यार से रखना औऱ उसे ये कभी भी मत महसूस होने देना कि वो अपने ससुराल में है औऱ हम उसके माँ बाप नहीं है ।उसकी छोटी मोटी गलतियों को उसकी नादानी समझकर माफ़ कर देना । वैसे मेरा आशीष सदा तुम्हारे साथ है बेटा...।"
डायरी पढ़कर बहू फूटफूटकर रोने लगी ।
आज उसके ससुर को गुजरे ठीक 2 साल से ज़्यादा समय बीत चुके हैं लेकिन फ़िरभी वो रोज घर से बाहर निकलते समय अपने ससुर का चश्मा साफ़ कर, उनके टेबल पर रख दिया करती है....... उनके अनदेखे हाथ से मिले आशीष की लालसा में.....।
जीवन में हम रिश्तों का महत्व महसूस नहीं करते हैं,चाहे वो किसी से भी हो, कैसे भी हो.......और जब तक महसूस करते हैं तब तक वह हमसे बहुत दूर जा चुके होते हैं ......!!
एक_और_झूठा
डाकिया बाबू ने अम्मा को देखते अपनी साईकिल रोक दी। अपने आंखों पर चढ़े चश्मे को उतार आंचल से साफ कर वापस पहनती अम्मा की बूढ़ी आंखों में अचानक एक चमक सी आ गई..
"बेटा!.पहले जरा बात करवा दो।"
अम्मा ने उम्मीद भरी निगाहों से उसकी ओर देखा लेकिन उसने अम्मा को टालना चाहा..
"अम्मा!. इतना टाइम नहीं रहता है मेरे पास कि,. हर बार आपके बेटे से आपकी बात करवा सकूं।"
डाकिए ने अम्मा को अपनी जल्दबाजी बताना चाहा लेकिन अम्मा उससे चिरौरी करने लगी..
"बेटा!.बस थोड़ी देर की ही तो बात है।"
"अम्मा आप मुझसे हर बार बात करवाने की जिद ना किया करो!"
यह कहते हुए वह डाकिया रुपए अम्मा के हाथ में रखने से पहले अपने मोबाइल पर कोई नंबर डायल करने लगा..
"लो अम्मा!.बात कर लो लेकिन ज्यादा बात मत करना,.पैसे कटते हैं।"
उसने अपना मोबाइल अम्मा के हाथ में थमा दिया उसके हाथ से मोबाइल ले फोन पर बेटे से हाल-चाल लेती अम्मा मिनट भर बात कर ही संतुष्ट हो गई। उनके झुर्रीदार चेहरे पर मुस्कान छा गई।
"पूरे हजार रुपए हैं अम्मा!"
यह कहते हुए उस डाकिया ने सौ-सौ के दस नोट अम्मा की ओर बढ़ा दिए।
रुपए हाथ में ले गिनती करती अम्मा ने उसे ठहरने का इशारा किया..
"अब क्या हुआ अम्मा?"
"यह सौ रुपए रख लो बेटा!"
"क्यों अम्मा?" उसे आश्चर्य हुआ।
"हर महीने रुपए पहुंचाने के साथ-साथ तुम मेरे बेटे से मेरी बात भी करवा देते हो,.कुछ तो खर्चा होता होगा ना!"
"अरे नहीं अम्मा!.रहने दीजिए।"
वह लाख मना करता रहा लेकिन अम्मा ने जबरदस्ती उसकी मुट्ठी में सौ रुपए थमा दिए और वह वहां से वापस जाने को मुड़ गया।
अपने घर में अकेली रहने वाली अम्मा भी उसे ढेरों आशीर्वाद देती अपनी देहरी के भीतर चली गई।
वह डाकिया अभी कुछ कदम ही वहां से आगे बढ़ा था कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा..
उसने पीछे मुड़कर देखा तो उस कस्बे में उसके जान पहचान का एक चेहरा सामने खड़ा था।
मोबाइल फोन की दुकान चलाने वाले रामप्रवेश को सामने पाकर वह हैरान हुआ..
"भाई साहब आप यहां कैसे?. आप तो अभी अपनी दुकान पर होते हैं ना?"
"मैं यहां किसी से मिलने आया था!.लेकिन मुझे आपसे कुछ पूछना है।"
रामप्रवेश की निगाहें उस डाकिए के चेहरे पर टिक गई..
"जी पूछिए भाई साहब!"
"भाई!.आप हर महीने ऐसा क्यों करते हैं?"
"मैंने क्या किया है भाई साहब?"
रामप्रवेश के सवालिया निगाहों का सामना करता वह डाकिया तनिक घबरा गया।
"हर महीने आप इस अम्मा को भी अपनी जेब से रुपए भी देते हैं और मुझे फोन पर इनसे इनका बेटा बन कर बात करने के लिए भी रुपए देते हैं!.ऐसा क्यों?"
रामप्रवेश का सवाल सुनकर डाकिया थोड़ी देर के लिए सकपका गया!.
मानो अचानक उसका कोई बहुत बड़ा झूठ पकड़ा गया हो लेकिन अगले ही पल उसने सफाई दी..
"मैं रुपए इन्हें नहीं!.अपनी अम्मा को देता हूंँ।"
"मैं समझा नहीं?"
उस डाकिया की बात सुनकर रामप्रवेश हैरान हुआ लेकिन डाकिया आगे बताने लगा...
"इनका बेटा कहीं बाहर कमाने गया था और हर महीने अपनी अम्मा के लिए हजार रुपए का मनी ऑर्डर भेजता था लेकिन एक दिन मनी ऑर्डर की जगह इनके बेटे के एक दोस्त की चिट्ठी अम्मा के नाम आई थी।"
उस डाकिए की बात सुनते रामप्रवेश को जिज्ञासा हुई..
"कैसे चिट्ठी?.क्या लिखा था उस चिट्ठी में?"
"संक्रमण की वजह से उनके बेटे की जान चली गई!. अब वह नहीं रहा।"
"फिर क्या हुआ भाई?"
रामप्रवेश की जिज्ञासा दुगनी हो गई लेकिन डाकिए ने अपनी बात पूरी की..
"हर महीने चंद रुपयों का इंतजार और बेटे की कुशलता की उम्मीद करने वाली इस अम्मा को यह बताने की मेरी हिम्मत नहीं हुई!.मैं हर महीने अपनी तरफ से इनका मनीआर्डर ले आता हूंँ।"
"लेकिन यह तो आपकी अम्मा नहीं है ना?"
"मैं भी हर महीने हजार रुपए भेजता था अपनी अम्मा को!. लेकिन अब मेरी अम्मा भी कहां रही।" यह कहते हुए उस डाकिया की आंखें भर आई।
हर महीने उससे रुपए ले अम्मा से उनका बेटा बनकर बात करने वाला रामप्रवेश उस डाकिया का एक अजनबी अम्मा के प्रति आत्मिक स्नेह देख नि:शब्द रह गया..!!
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