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दिल बड़ा रखो

एक दिन एक बुजुर्ग आदमी दनदनाता हुआ शहर के एक नामी, पर सज्जन वकील के दफ़्तर में घुसा।

उसके हाथों में कागज़ो का बंडल, धूप में काला हुआ चेहरा, बढ़ी हुई दाढ़ी औऱ उसके सफेद कपड़े में मिट्टी लगी हुई थी।"

बुजुर्ग ने वकील से कहा - " उसके पूरे फ्लैट पर स्टे लगाना है, बताइए, क्या क्या कागज और चाहिए... क्या लगेगा खर्चा...लेकिन काम जल्दी होना चाहिए  ".....

वकील साहब ने उन्हें बैठने का कहा - "रामू , पानी दे इधर"...वकील ने आवाज़ लगाई

उसके बाद वो बुजुर्ग कुर्सी पर बैठे ।

फ़िर उनके सारे कागजात वकील साहब ने देखे, उनसे सारी जानकारी ली औऱ इस तरह आधा पौना घंटा गुजर गया।

"मै इन कागज़ो को अच्छी तरह देख लेता हूँ, फिर आपके केस पर विचार करेंगे। आप ऐसा कीजिए, अगले शनिवार को मिलिए मुझसे।" वकील साहब ने कहा.....

चार दिन बाद वो बुजुर्ग फिर से वकील के यहाँ आए- वैसे ही कपड़े, बहुत गुस्से में लग रहे थे,वे अपने छोटे भाई पर गुस्सा थे।

वकील ने उन्हें बैठने का कहा ।

वो बैठे ।

ऑफिस में अजीब सी खामोशी गूंज रही थी।

वकील साहब ने बात की शुरुआत की.... बाबा, मैंने आपके सारे पेपर्स देख लिए.....और आपके परिवार के बारे में और आपकी निजी जिंदगी के बारे में भी मैंने बहुत जानकारी हासिल की।मेरी जानकारी के अनुसार: आप दो भाई है, एक बहन है,आपके माँ-बाप बचपन में ही गुजर गए।बाबा आप नौवीं पास है और आपका छोटा भाई इंजिनियर है। छोटे भाई की पढ़ाई के लिए आपने स्कूल छोड़ा, लोगो के खेतों में दिहाड़ी पर काम किया,
कभी अंग भर कपड़ा और पेट भर खाना आपको नहीं मिला ,फिर भी भाई की पढ़ाई के लिए पैसों की कमी आपने कभी नहीं होने दी। एक बार खेलते खेलते भाई पर किसी बैल ने सींग घुसा दिए, तब भाई लहूलुहान हो गया।
फिर आप उसे अपने कंधे पर उठाकर 5 किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल लेे गए। सही देखा जाए तो आपकी उम्र भी नहीं थी ये करने की, पर भाई में जान बसी थी आपकी। माँ बाप के बाद मै ही इनका माँ-बाप… ये भावना थी आपके मन में, आपका भाई इंजीनियरिंग में अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले पाया और आपका दिल खुशी से भरा हुआ था। फिर आपने जी तोड़ मेहनत की।
80,000 की सालाना फीस भरने के लिए आपने रात दिन एक कर दिया यानि बीवी के गहने गिरवी रख के कभी साहूकार से पैसा लेकर आपने उसकी हर जरूरत पूरी की।फिर अचानक उसे किडनी की तकलीफ शुरू हो गई, डॉक्टर ने किडनी बदलने के लिए कहा और
आपने अगले मिनट में अपनी किडनी उसे दे दी , यह कह कर कि कल तुझे अफसर बनना है,नौकरी करनी है, कहाँ कहाँ घूमेगा बीमार शरीर लेे के। मुझे तो गाँव में ही रहना है । फिर भाई मास्टर्स के लिए हॉस्टल पर रहने गया।लड्डू बने, देने जाओ, खेत में मकई तैयार हुई, भाई को देने जाओ, कोई तीज त्योहार हो, भाई को कपड़े दो ।घर से हॉस्टल 25 किलोमीटर तुम उसे डिब्बा देने साइकिल पर गए।हाथ का निवाला पहले भाई को खिलाया तुमने।फिर वो मास्टर्स पास हुआ, तुमने पूरे गाँव को खाना खिलाया।फिर उसने उसी के कॉलेज की लड़की जो दिखने में एकदम सुंदर थी, से शादी कर ली । तुम सिर्फ समय पर ही वहाँ गए।भाई को नौकरी लगी, 3 साल पहले उसकी शादी हुई, अब तुम्हारा बोझ हल्का होने वाला था। पर किसी की नज़र लग गई आपके इस प्यार को। शादी के बाद भाई ने घर आना बंद कर दिया। पूछा तो कहता है मैंने बीवी को वचन दिया है। घर एक भी पैसा वो देता नहीं, पूछा तो कहता है कर्ज़ा सिर पे है।पिछले साल शहर में फ्लैट खरीदा।पैसे कहाँ से आए पूछा तो कहता है कर्ज लिया है। मैंने मना किया तो कहता है भाई, तुझे कुछ नहीं मालूम, तू निरा गंवार ही रह गया। अब तुम्हारा भाई चाहता है कि गाँंव की आधी खेती बेच कर उसे पैसा दे दे।

इतना कह के वकील साहब रुके - रामू की लाई चाय की प्याली उन्होंने अपनी मुँह से लगाई - तुम चाहते हो भाई ने जो मांगा वो उसे ना देकर उसके ही फ्लैट पर स्टे लगाया जाए - क्यों बाबा,यही चाहते हो तुम..."  ????

वो तुरंत बोला, "हां वकील साहब "

वकील साहब ने कहा - हम स्टे लेे सकते है औऱ भाई के प्रॉपर्टी में हिस्सा भी माँग सकते हैं  पर….

1) तुमने उसके लिए जो खून पसीना एक किया है वो नहीं मिलेगा

2) तुम्हारीे दी हुई किडनी तुम्हें वापस नहीं मिलेगी

3) तुमने उसके लिए जो ज़िन्दगी खर्च की है वो भी वापस नहीं मिलेगी।

मुझे लगता है इन सब चीजों के सामने उस फ्लैट की कीमत शुन्य है। भाई की नीयत फिर गई, वो अपने रास्ते चला गया अब तुम भी उसी कृतघ्न सड़क पर मत जाओ।वो भिखारी निकला, तुम दिलदार थे।दिलदार ही रहो …..

तुम्हारा हाथ ऊपर था, ऊपर ही रखो।कोर्ट कचहरी करने की बजाय बच्चों को पढ़ाओ लिखाओ।पढ़ाई कर के तुम्हारा भाई बिगड़ गया लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हारे बच्चे भी ऐसा करेंगे।"

वो बुजुर्ग वकील साहब के मुँह को ताकने लगा।

वकील साहब की पूरी बात सुनकर बुजुर्ग उठ खड़ा हुआ, सब काग़ज़ात उठाए और आँखे पोछते हुए बोला - "चलता हूँ, वकील साहब।" 

उसकी रूलाई फुट रही थी और वो किसी को दिख ना जाए, ऐसी कोशिश कर रहा था।

इस बात को अरसा गुजर गया ।कल वो अचानक फिर वकील साहब के ऑफिस में आया।

कलमों में सफेदी झाँक रही थी उसके। साथ में एक नौजवान था और हाथ में थैली।

वकील ने कहा- "बाबा, बैठो"

उसने कहा, "बैठने नहीं आया वकील साहब, मिठाई खिलाने आया हूँ । ये मेरा बेटा, बैंक मैनेजर है, बैंगलोर रहता है, कल आया गाँव।अब तीन मंजिला मकान बना लिया है वहाँ।थोड़ी थोड़ी कर के 10–12 एकड़ खेती खरीद ली अब।"

वकील साहब उसके चेहरे से टपकते हुए खुशी को महसूस कर रहा था

बुजुर्ग ने फ़िर कहा..."वकील साहब, आपने मुझसे बोला था -  कोर्ट कचहरी के चक्कर में मत पड़ो, आपने बहुत नेक सलाह दी और मुझे उलझन से बचा लिया जबकि गाँव में सब लोग मुझे भाई के खिलाफ उकसा रहे थे।मैंने उनकी नहीं, आपकी बात सुन ली और मैंने अपने बच्चों को लाइन से लगाया और भाई के पीछे अपनी ज़िंदगी बरबाद नहीं होने दी। कल भाई और उनकी पत्नी भी घर आए थे। पाँव छू छूकर माफी मांगने लगे। मैंने अपने भाई को गले से लगा लिया और मेरी धर्मपत्नी ने उसकी धर्मपत्नी को गले से लगा लिया। हमारे पूरे परिवार ने बहुत दिनों बाद एक साथ भोजन किया। बस फिर क्या था आनंद की लहर घर में दौड़ने लगी।

वकील साहब के हाथ का पेड़ा हाथ में ही रह गया औऱ उनके आंसू टपक गए।

शिक्षा

आखिर. .. .अपने गुस्से को सही दिशा में मोड़ा जाए तो जीवन में क़भी पछताने की जरूरत नहीं पड़ेगी ।हां... दिल थोड़ा बड़ा रखने की जरुरत है .........


खाली हाथ है जाना

कुछ समय पहले की बात है। एक बहुत धनी आदमी था। एक बार उसके मन में भी किसी संत से ज्ञान लेने की इच्छा हुई। लेकिन उसके मन में धन का बहुत अहंकार था। वो संत के पास गया, तो वे सच्चे संत तुरन्त समझ गये कि इसके मन में धन का बेहद अहंकार है। लेकिन ये बात उन्होंने अपने मन में ही रहने दी। सेठ ने उन सन्त से ज्ञान मंत्र लिया और बोला- *महाराज जी! मेरे पास बहुत धन है। किसी चीज की कमी हो तो बोलना, मेरे योग्य कोई सेवा हो तो बताना।*

संत उसकी इस बात के पीछे छिपे अहंकार को समझ गये और उन्होंने उसी पल उसका अहंकार दूर करने की सोची। वे कुछ देर सोचते रहे। फ़िर उन्होंने कहा: *और तो मुझे कोई परेशानी नहीं हैं, पर मेरे कपड़ों को सीने के लिए सुई की अक्सर जरूरत पड़ जाती है। अतः यदि तुम मेरा काम करना ही चाहते हो, तो मेरे शरीर त्यागने के बाद जब कभी तुम ऊपर (मृत्यु के बाद) आओ तो मेरे लिये अपने साथ एक सुई लेते आना।*
       
सेठ को एक सुई का इंतजाम करना बेहद मामूली बात ही लगी, इसलिये वह झोंक में एकदम बोला- *ठीक है महाराज!*
              
लेकिन वो जल्दी में ये बात बोल तो गया, परन्तु फिर उसको ध्यान आया कि *ये कैसे हो सकता है? मरने के बाद मैं भला सुई कैसे ले जा सकता हूँ और अगर सुई लेकर भी जाता हूँ, तो उसे कैसे पता चलेगा कि मैं आपके लिए सुई लेकर आ गया हूँ और सबसे बड़ी बात मरने के बाद वो सुई तो वहीँ की वही रह जायेगी।*

इस बात के ध्यान में आते ही संत की बात का सही मतलब सेठ की समझ में भली भांति आ गया कि *किसी के मरने के बाद ना तो हम किसी को कुछ दे सकते हैं और ना ही वो कुछ ले जा सकता है। जिस धन पर मैं अभी गर्व कर रहा हूँ, वो सब यहीं का यहीं ही पड़ा रह जायेगा और मैं एक सुई जैसी मामूली चीज भी अपने साथ नहीं ले जा सकता। तब उसका सारा अभिमान चूर चूर हो गया और वो क्षमा माँगता हुआ संत के चरणों में गिर पड़ा..!!


भगवान को भेंट

पुरानी बात है, एक सेठ के पास एक व्यक्ति काम करता था। सेठ उस व्यक्ति पर बहुत विश्वास करता था। जो भी जरुरी काम हो सेठ हमेशा उसी व्यक्ति से कहता था।

वो व्यक्ति भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह सदा भगवान के चिंतन भजन कीर्तन स्मरण सत्संग आदि का लाभ लेता रहता था।

एक दिन उस ने सेठ से श्री जगन्नाथ धाम यात्रा करने के लिए कुछ दिन की छुट्टी मांगी..

सेठ ने उसे छुट्टी देते हुए कहा- भाई ! .. मैं तो हूं संसारी आदमी हमेशा व्यापार के काम में व्यस्त रहता हूं जिसके कारण कभी तीर्थ गमन का लाभ नहीं ले पाता।

तुम जा ही रहे हो तो यह लो 100 रुपए मेरी ओर से श्री जगन्नाथ प्रभु के चरणों में समर्पित कर देना।

भक्त सेठ से सौ रुपए लेकर श्री जगन्नाथ  धाम  यात्रा  पर निकल गया।

कई दिन की पैदल यात्रा करने के बाद वह श्री जगन्नाथ पुरी पहुंचा।

मंदिर की ओर प्रस्थान करते समय उसने रास्ते में देखा कि बहुत सारे संत, भक्त जन, वैष्णव जन, हरि नाम संकीर्तन बड़ी मस्ती में कर रहे हैं।

सभी की आंखों से अश्रु धारा बह रही है। जोर-जोर से हरि बोल, हरि बोल गूंज रहा है। संकीर्तन में बहुत आनंद आ रहा था।

भक्त भी वहीं रुक कर हरिनाम संकीर्तन का आनंद लेने लगा।

फिर उसने देखा कि संकीर्तन करने वाले भक्तजन इतनी देर से संकीर्तन करने के कारण उनके होंठ सूखे हुए हैं वह दिखने में कुछ भूखे भी प्रतीत हो रहे हैं।

उसने सोचा क्यों ना सेठ के सौ रुपए से इन भक्तों को भोजन करा दूँ। उसने उन सभी को उन सौ रुपए में से भोजन की व्यवस्था कर दी।

सबको भोजन कराने में उसे कुल 98 रुपए खर्च करने पड़े। उसके पास दो रुपए बच गए उसने सोचा चलो अच्छा हुआ दो रुपए जगन्नाथ जी के चरणों में सेठ के नाम से चढ़ा दूंगा।

जब सेठ पूछेगा तो मैं कहूंगा पैसे चढ़ा दिए। सेठ यह तो नहीं कहेगा 100 रुपए चढ़ाए। सेठ पूछेगा पैसे चढ़ा दिए मैं बोल दूंगा कि, पैसे चढ़ा दिए। झूठ भी नहीं होगा और काम भी हो जाएगा।

भक्त ने श्री जगन्नाथ जी के दर्शनों के लिए मंदिर में प्रवेश किया श्री जगन्नाथ जी की छवि को निहारते हुए अपने हृदय में उनको विराजमान कराया।

अंत में उसने सेठ के दो रुपए श्री जगन्नाथ जी के चरणो में चढ़ा दिए। और बोला यह दो रुपए सेठ ने भेजे हैं।

उसी रात सेठ के पास स्वप्न में श्री जगन्नाथ जी आए आशीर्वाद दिया और बोले सेठ तुम्हारे 98 रुपए मुझे मिल गए हैं यह कहकर श्री जगन्नाथ जी अंतर्ध्यान हो गए।

सेठ जाग गया सोचने लगा मेरा नौकर तौ बड़ा ईमानदार है, पर अचानक उसे क्या जरुरत पड़ गई थी उसने दो रुपए भगवान को कम चढ़ाए ?

उसने दो रुपए का क्या खा लिया ? उसे ऐसी क्या जरूरत पड़ी ? ऐसा विचार सेठ करता रहा।

काफी दिन बीतने के बाद भक्त वापस आया और सेठ के पास पहुंचा। सेठ ने कहा कि मेरे पैसे जगन्नाथ जी को चढ़ा दिए थे ?

भक्त बोला हां मैंने पैसे चढ़ा दिए...

सेठ ने कहा पर तुमने 98 रुपए क्यों चढ़ाए दो रुपए किस काम में प्रयोग किए।

तब भक्त ने सारी बात बताई की उसने 98 रुपए से संतो को भोजन करा दिया था। और ठाकुरजी को सिर्फ दो रुपए चढ़ाये थे।

सेठ सारी बात समझ गया व बड़ा खुश हुआ तथा भक्त के चरणों में गिर पड़ा और बोला- आप धन्य हो आपकी वजह से मुझे श्री जगन्नाथ जी के दर्शन यहीं बैठे-बैठे हो गए।



शिक्षा

भगवान को आपके धन की कोई आवश्यकता नहीं है। भगवान को वह 98 रुपए स्वीकार है जो जीव मात्र की सेवा में खर्च किए गए और उस दो रुपए का कोई महत्व नहीं जो उनके चरणों में नगद चढ़ाए गये।

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