*एक एहसास*
एक प्रेमी-युगल शादी से पहले काफी हँसी-मजाक और नोक-झोंक किया करते थे।शादी के बाद उनमें छोटी छोटी बातो पे झगड़े होने लगे।
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एक दिन उनकी शादी कि सालगिरह थी
पर बीबी ने कुछ नहीं बोला वो पति का रेस्पॉन्स देखना चाहती थी।
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सुबह पति जल्दी उठा और घर से बाहर निकल गया।
बीबी रूआंसी हो गई।
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दो घण्टे बाद डोरबेल बजी वो दौड़ती हुई गई जाकर दरवाजा खोला।
दरवाजे पर गिफ्ट और केक के साथ उसका पति था।
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पति ने गले लगा के सालगिरह विश किया फिर पति अपने कमरे मेँ चला गया।
तभी अचानक पत्नि के पास पुलिस थाने से फोन आता है की आपके पति की हत्या हो चूकी है उनके जेब में पड़े पर्स से आपका फोन नम्बर ढ़ुंढ़ के कॉल किया गया है।
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पत्नि सोचने लगी की पति तो अभी घर के अन्दर आये है फिर उसे कही पे सुनी एक बात याद आ गई की मरे हुये इन्सान की आत्मा अपनी अंतिम विश पूरी करने एक बार जरूर आती है।
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वो जोर-जोर से रोने लगी।
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उसे अपना वो सारा चूमना लड़ना झगड़नानोक-झोंक याद आने लगा उसे पश्चाताप होने
लगा की अन्त समय में भी वो अपने पति को प्यार ना दे सकी वो बिलखती हुई रोने लगी।
जब रूम में गई तो देखा उसका पति वहाँ नहीं था।
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वो चिल्ला चिल्ला के रोती हुई प्लीज कम बैक कम बैक कहने लगी अब कभी नहीं झगड़ूंगी
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तभी बाथरूम से निकल के उसके कंधे पर किसी ने हाथ रख के पूछा क्या हुआ? .
वो पलट के देखी तो उसके पति थे वो रोती हुई उसके सीने से लग गई फिर सारी बात बताई।
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तब पति ने बताया की आज सुबह उसका पर्स चोरी हो गया था।
फिर दोस्त की दुकान से ये गिफ्ट वगैरह उधार लिए।
*जिन्दगी में किसी की अहमियत तब पता चलती है जब वो नहीँ होता
हम लोग अपने दोस्तो रिश्तेदारो से नोक-झोंक करते है लड़ते झगड़ते भी हैं
पर जिन्दगी की करवटे कभी कभी भूल सुधार का मौका नहीं देती
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हँसी खुशी में प्यार से जिन्दगी बिताइये और अपनी नाराजगी को अपनो से ज्यादा देर तक मत रखिये ।
धन्यवाद !
सुकरात और आईना
दार्शनिक सुकरात दिखने में कुरुप थे। वह एक दिन अकेले बैठे हुए आईना हाथ मे लिए अपना चेहरा देख रहे थे।
तभी उनका एक शिष्य कमरे मे आया ; सुकरात को आईना देखते हुए देख उसे कुछ अजीब लगा । वह कुछ बोला नही सिर्फ मुस्कराने लगा। विद्वान सुकरात शिष्य की मुस्कराहट देख कर सब समझ गए और कुछ देर बाद बोले ,”मैं तुम्हारे मुस्कराने का मतलब समझ रहा हूँ…….शायद तुम सोच रहे हो कि मुझ जैसा कुरुप आदमी आईना क्यों देख रहा है ?”
शिष्य कुछ नहीं बोला , उसका सिर शर्म से झुक गया।
सुकरात ने फिर बोलना शुरु किया , “शायद तुम नहीं जानते कि मैं आईना क्यों देखता हूँ”
“नहीं ” , शिष्य बोला ।
गुरु जी ने कहा “मैं कुरूप हूं इसलिए रोजाना आईना देखता हूं”। आईना देख कर मुझे अपनी कुरुपता का भान हो जाता है। मैं अपने रूप को जानता हूं। इसलिए मैं हर रोज कोशिश करता हूं कि अच्छे काम करुं ताकि मेरी यह कुरुपता ढक जाए।
शिष्य को ये बहुत शिक्षाप्रद लगी । परंतु उसने एक शंका प्रकट की- ” तब गुरू जी, इस तर्क के अनुसार सुंदर लोगों को तो आईना नही देखना चाहिए ?”
“ऐसी बात नही!” सुकरात समझाते हुए बोले ,” उन्हे भी आईना अवश्य देखना चाहिए”! इसलिए ताकि उन्हे ध्यॉन रहे कि वे जितने सुंदर दीखते हैं उतने ही सुंदर काम करें, कहीं बुरे काम उनकी सुंदरता को ढक ना ले और परिणामवश उन्हें कुरूप ना बना दे ।
शिष्य को गुरु जी की बात का रहस्य मालूम हो गया। वह गुरु के आगे नतमस्तक हो गया।
शिक्षा
प्रिय मित्रो, कहने का भाव यह है कि सुन्दरता मन व् भावों से दिखती है। शरीर की सुन्दरता तात्कालिक है जब कि मन और विचारों की सुन्दरता की सुगंध दूर-दूर तक फैलती है।
दार्शनिक सुकरात दिखने में कुरुप थे। वह एक दिन अकेले बैठे हुए आईना हाथ मे लिए अपना चेहरा देख रहे थे।
तभी उनका एक शिष्य कमरे मे आया ; सुकरात को आईना देखते हुए देख उसे कुछ अजीब लगा । वह कुछ बोला नही सिर्फ मुस्कराने लगा। विद्वान सुकरात शिष्य की मुस्कराहट देख कर सब समझ गए और कुछ देर बाद बोले ,”मैं तुम्हारे मुस्कराने का मतलब समझ रहा हूँ…….शायद तुम सोच रहे हो कि मुझ जैसा कुरुप आदमी आईना क्यों देख रहा है ?”
शिष्य कुछ नहीं बोला , उसका सिर शर्म से झुक गया।
सुकरात ने फिर बोलना शुरु किया , “शायद तुम नहीं जानते कि मैं आईना क्यों देखता हूँ”
“नहीं ” , शिष्य बोला ।
गुरु जी ने कहा “मैं कुरूप हूं इसलिए रोजाना आईना देखता हूं”। आईना देख कर मुझे अपनी कुरुपता का भान हो जाता है। मैं अपने रूप को जानता हूं। इसलिए मैं हर रोज कोशिश करता हूं कि अच्छे काम करुं ताकि मेरी यह कुरुपता ढक जाए।
शिष्य को ये बहुत शिक्षाप्रद लगी । परंतु उसने एक शंका प्रकट की- ” तब गुरू जी, इस तर्क के अनुसार सुंदर लोगों को तो आईना नही देखना चाहिए ?”
“ऐसी बात नही!” सुकरात समझाते हुए बोले ,” उन्हे भी आईना अवश्य देखना चाहिए”! इसलिए ताकि उन्हे ध्यॉन रहे कि वे जितने सुंदर दीखते हैं उतने ही सुंदर काम करें, कहीं बुरे काम उनकी सुंदरता को ढक ना ले और परिणामवश उन्हें कुरूप ना बना दे ।
शिष्य को गुरु जी की बात का रहस्य मालूम हो गया। वह गुरु के आगे नतमस्तक हो गया।
शिक्षा
प्रिय मित्रो, कहने का भाव यह है कि सुन्दरता मन व् भावों से दिखती है। शरीर की सुन्दरता तात्कालिक है जब कि मन और विचारों की सुन्दरता की सुगंध दूर-दूर तक फैलती है।
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