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बिक्री के लिए कुत्ते के बच्चे:

एक बार एक किसान ने पिल्लों को बेचने के लिए एक विज्ञापन बनाया और उसे अपने यार्ड के किनारे लगा रहा था। जब वह बोर्ड के लिए आखिरी कील ठोंक रहा था, तो उसे अपने चौग़ा पर एक खिंचाव महसूस हुआ।

पीछे मुड़कर देखा तो एक छोटा बच्चा दिखाई दिया। उसने पूछा, "तुम क्या चाहते हो बच्चे ??"

बच्चे ने जवाब दिया, "मैं एक पिल्ला खरीदना चाहता हूँ .."

किसान ने जवाब दिया, "अच्छा बच्चा.. ये पिल्ले काफी महंगे हैं क्योंकि ये बहुत अच्छी नस्ल के कुत्ते से आए हैं.."

छोटे लड़के ने अपना सिर नीचे कर लिया, लेकिन एक क्षण के बाद, अपनी पैंट की जेब में गहराई तक पहुँच कर उसने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाले और किसान को दिए और कहा, "सर, मेरे पास केवल 50 सेंट है.. क्या यह पर्याप्त होगा?" एक पिल्ला?"

किसान मुस्कुराया और बोला, "हाँ..!!"

तभी किसान ने सीटी बजाई और अपने कुत्ते को आवाज दी। कुत्ता आया और उसके चार पिल्ले उसके पीछे-पीछे भागते हुए डॉग हाउस के बाहर आ गए। लड़का उन्हें देखकर बहुत खुश हुआ।

लड़के ने देखा कि चार पिल्लों के पीछे एक छोटा सा पिल्ला था जो धीरे-धीरे उस कुत्ते के घर से बाहर आ रहा था और अजीब तरीके से वह छोटा पिल्ला दूसरे के साथ पकड़ने की कोशिश कर रहा था।

लड़के ने उस पिल्ले की ओर इशारा किया और कहा, "मुझे वह चाहिए .."

किसान ने जवाब दिया, "बच्चे, तुम ऐसा नहीं चाहते.. वह अन्य पिल्लों की तरह तुम्हारे साथ नहीं खेल पाएगा या दौड़ नहीं पाएगा.."

यह सुनकर, बच्चा बाड़ से एक कदम पीछे हट गया और अपने पतलून के एक पैर को रोल करना शुरू कर दिया, जिसमें एक स्टील का ब्रेस दिखाई दे रहा था, जो विशेष रूप से बनाए गए जूते से जुड़ा हुआ था, जिसे बच्चे ने पहना था और कहा, "सर, मैं खुद बहुत अच्छी तरह से नहीं दौड़ता।" और उस कुत्ते को समझने वाले की जरूरत होगी..'

Moral:
हम में से हर किसी की अपनी-अपनी कमजोरियां होती हैं लेकिन अगर हम उसका विरोध करने के बजाय उसे स्वीकार करने की इच्छा रखते हैं तो हम अपनी कमजोरियों से फायदा उठा सकते हैं।


Puppies for Sale:

Once a farmer painted an advertisement for puppies to sell and was fixing it on the edge of his yard. As he was hitting last nail for board to be fixed on it’s place he felt a tug on his overalls.

When he looked behind he saw a little kid. He asked, “What do you want kid??”

Kid replied, “I want to buy a puppy..”

Farmer replied, “Well kid.. These pup are quite expensive as they came from very good breed of dog..”

Little boy dropped his head but after a moment, reaching deep down into his pants pocket he pulled some coins from his pocket and held it up to the farmer and said, “Sir, i have got only 50 cent.. would that be enough for a puppy?”

Farmer smiled and said, “Yes..!!”

Then farmer whistle and called out his dog. Dog came along with came its four puppies running behind it out of dog house. Boy was delighted to see them.

Boy noticed that behind four puppies there was little one who was slowly coming out of that dog house and in awkward manner that little puppy was trying to catch up with other.

Boy pointed toward that puppy and said, “I want that one..”

Farmer replied, “Kid, you don’t want that.. he will not be able to play or run with you like other puppies..”

Listening to this, kid took a step back from the fence and began rolling up one leg of his trousers revealing a steel brace which was attached with specially made shoes which kid was wearing and said, “Sir, I don’t run too well myself and that puppy will need someone who understands..”

Moral:
Everyone of us have our own Weakness but if we Willing to Accept it instead of opposing then we can make Advantage out of our own Weakness.


आज की कहानी

कमल किशोर सोने और हीरे के जवाहरात बनाने और बेचने का काम करता था। उसकी दुकान से बने हुए गहने दूर-दूर तक मशहूर थे। लोग दूसरे शहर से भी कमल किशोर की दुकान से गहने लेने और बनवाने आते थे। चाहे हाथों के कंगन हो, चाहे गले का हार हो, चाहे कानों के कुंडल हो उसमें हीरे और सोने की बहुत सुंदर मीनाकारी होती कि सब देखने वाले देखते ही रह जाते। 

इतना बड़ा कारोबार होने के बावजूद भी कमल किशोर बहुत ही शांत और सरल स्वभाव वाला व्यक्ति था। उसको इस माया का इतना रंग नहीं चढ़ा हुआ था।

एक दिन उसका कोई मित्र उसकी दुकान पर आया जो कि अपने पत्नी सहित वृंदावन धाम से होकर वापस आ रहा था तो उस मित्र ने सोचा कि चलो थोड़ा सा प्रसाद अपने मित्र कमल किशोर को भी देता चलूं। 

उसकी दुकान पर जब वह पहुंचा तब कमल किशोर का एक कारीगर एक सोने और हीरे जड़ित बहुत सुंदर हार बना कर कमल किशोर को देने के लिए आया था।

कमल किशोर उस हार को देख ही रहा था कि उसका मित्र उसकी दुकान पर पहुंचा। कमल किशोर का मित्र अपने साथ वृंदावन से एक बहुत सुंदर लड्डू गोपाल जिसका सवरूप अत्यंत मनमोहक था साथ लेकर आया था। 

जब उसका मित्र दुकान पर बैठा तो उसकी गोद में लड्डू गोपाल जी विराजमान थे। कमल किशोर लड्डू गोपाल जी के मनमोहक रुप सोंदर्य को देखकर अत्यंत आंनदित हुआ। उसने अपने हाथ में पकड़ा हुआ हार उस लड्डू गोपाल के गले में पहना दिया और अपने मित्र को कहने लगा कि देखो तो सही इस हार की शोभा लड्डू गोपाल के गले में पढ़ने से कितनी बढ़ गई है।  

उसका मित्र और कमल किशोर आपस में बातें करने लगे बातों बातों में ही उसका मित्र लड्डू गोपाल को हार सहित लेकर चला गया। दोनों को ही पता ना चला कि हार लड्डू गोपाल के गले में ही पड़ा रह गया है।
कमल किशोर का मित्र अपनी पत्नी सहित एक टैक्सी में सवार होकर अपने घर को रवाना हो गया। जब वह टैक्सी से उतरे तो भूलवश लड्डू गोपाल जी उसी टैक्सी में रह गए।

टैक्सी वाला एक गरीब आदमी था जिसका नाम बाबू था जो कि दूसरे शहर से यहां अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए टैक्सी चलाता था और वह टैक्सी लेकर काफी आगे निकल चुका था। आज उसको अपने घर वापस जाना था जो कि दूसरे शहर में था। जब टैक्सी लेकर बाबू अपने घर पहुंचा तो उसने जब अपनी टैक्सी की पिछली सीट पर देखा तो उसका ध्यान लड्डू गोपाल जी पर पड़ा जो के बड़े शाही तरीके से पिछली सीट पर गले में हार धारण करके सुंदर सी पोशाक पहनकर हाथ में बांसुरी पकड़े हुए पसर कर बैठे हुए हैं।

बाबू यह देखकर एकदम से घबरा गया कि यह लड्डू गोपाल जी किसके हैं, लेकिन अब वह दूसरे शहर से अपने शहर जा चुका था जो कि काफी दूर था और वह सवारी का घर भी नहीं जानता था तो वह दुविधा में पड़ गया कि वह क्या करें लेकिन फिर उसने बड़ी श्रद्धा से हाथ धो कर लड्डू गोपाल जी को उठाया और अपने घर के अंदर ले गया जैसे ही उसने घर के अंदर प्रवेश किया उसकी पत्नी ने उसके हाथ में पकड़े लड्डू गोपाल जी को जब देखा को इतनी सुंदर स्वरूप वाले लड्डू गोपाल जी को देखकर उसकी पत्नी ने झट से लड्डू गोपाल जी को अपने पति के हाथों से ले लिया।

उसकी पत्नी जिसकी 8 साल शादी को हो चुके थे उसके अभी तक कोई संतान नहीं थी। लेकिन गोपाल जी को हाथ में लेते ही उसका वात्सालय भाव जाग उठा उसकी ममतामई और करुणामई आंखें झर झर बहने लगी। ममता वश और वात्सल्य भाव के कारण ठाकुर जी को गोद में उठाते ही उसको ऐसे लगा उसने किसी अपने ही बच्चे को गोद में उठाया है उसके स्तनों से अपने आप दूध निकलने लगा।

अपनी ऐसी दशा देखकर बाबू की पत्नी मालती बहुत हैरान हुए उसने कसकर गोपाल जी को अपने सीने से लगा लिया और आंखों में आंसू बहाती बोलने लगी अरे बाबू तुम नहीं जानते कि आज तुम मेरे लिए कितना अमूल्य रत्न लेकर आए हो।

बाबू कुछ समझ नहीं पा रहा था कि मेरी पत्नी को अचानक से क्या हो गया है लेकिन उसकी पत्नी तो जैसे बांवरी सी हो गई थी वह गोपाल जी को जल्दी-जल्दी अंदर ले गई और उससे बातें करने लगी।

अरे लाला.... इतनी दूर से आए हो तुम्हें भूख लगी होगी और उसने जल्दी जल्दी मधु और घी से बनी चूरी बनाकर और दूध गर्म करके ठाकुर जी को भोग लगाया।

उधर कमल किशोर ने जब अपनी दुकान पर हार को ना देखा तो उसको याद आया कि हार तो ठाकुर जी के गले में ही रह गया है तो उसने अपने मित्र को संदेशा भेजा तो मित्र ने आगे से जवाब दिया। अरे मित्र! वह  माखन चोर और चित् चोर; हार सहित खुद ही चोरी हो गया है। मैं तो खुद इतना परेशान हूं।

कमल किशोर अब थोड़ा सा परेशान हो गया कि ईतना कीमती हार ना जाने कहां चला गया। मुझे तो लाखों का नुकसान हो गया लेकिन फिर भी अपने सरल स्वभाव के कारण उसने अपने मित्र को कुछ नहीं कहा और उसने अपने मन में सोचा कि कोई बात नहीं मेरा हार तो ठाकुर जी के ही अंग लगा है अगर मेरी भावना सच्ची है तो ठाकुर जी उसको पहने रखें।

उधर बाबू और उसकी पत्नी मालती दिन-रात ठाकुर जी की सेवा करते अब तो मालती और बाबू को लड्डू गोपाल जी अपने बेटे जैसे ही लगने लगे। 

लड्डू गोपाल जी की कृपा से अब मालती के घर एक बहुत ही सुंदर बेटी ने जन्म लिया। इन सब बातों का श्रेय वह लड्डू गोपाल जी को देते कि यह हमारा बेटा है और अब हमारी बेटी हुई है अब हमारा परिवार पूरा हो गया।

मालती लड्डू गोपाल जी को इतना स्नेह करती थी कि रात को उठ उठ कर देखने जाती थी कि लड्डू गोपाल जी को कोई कष्ट तो नहीं है।

ऐसे ही एक दिन कमल किशोर व्यापार के सिलसिले में दूसरे शहर आना पड़ा, जहां पर बाबू रहता था।

लेकिन दुर्भाग्यवश जब वो उस शहर में पहुंचा तो अचानक से इतनी बारिश शुरू हो गई कि कमल किशोर को जहां पहुंचना था वहां पहुंच ना सका।

और तब वहां बाबू अपनी टैक्सी लेकर आ गया और उसने परेशान कमल किशोर को पूछा बाबूजी आप यहां क्यों खड़े हो बारिश तो रुकने वाली नहीं और सारे शहर में पानी भरा हुआ है। आप अपनी मंजिल तक ना पहुंच पाओगे और ना ही कहीं और रुक पाओगे मेरा घर पास ही है अगर आप चाहो तो मेरे घर आ सकते हो।

कमल किशोर जिसके पास सोने और हीरे के काफी गहने थे वह   अनजान टैक्सी वाले के साथ जाने के लिए थोड़ा सा घबरा रहा था। लेकिन उसके पास और कोई चारा भी नहीं था और वह बाबू के घर उसके साथ टैक्सी में बैठ कर चला गया।

घर पहुंचते ही बाबू ने मालती को आवाज दी कि आज हमारे घर मेहमान आए हैं उनके लिए खाना बनाओ।

कमल किशोर ने देखा कि बाबू का घर एक बहुत छोटा सा लेकिन व्यवस्थित ढंग से सजा हुआ है। घर में अजीब तरह के इत्र की खुशबू आ रही है जो कि उसके हृदय को आनंदित कर रही थी। 

जब मालती ने उनको भोजन परोसा तो कमल किशोर को उसमें अमृत जैसा स्वाद आया।

उसका ध्यान बार-बार उस दिशा की तरफ जा रहा था,जहां पर ठाकुर जी विराजमान थे वहां से उसको एक अजीब तरह का प्रकाश नजर आ रहा था तो हार कर कमल किशोर ने बाबू को पूछा कि अगर आपको कोई एतराज ना हो तो क्या आप बता सकते हो कि उस दिशा में क्या रखा है? मेरा ध्यान उसकी तरफ आकर्षित हो रहा है।

तो बाबू और मालती ने एक दूसरे की तरफ मुस्कुराते हुए कहा कि वहां पर तो हमारे घर के सबसे अहम सदस्य लड्डू गोपाल जी विराजमान है। तो कमल किशोर ने कहा क्या मैं उनके दर्शन कर सकता हूं। तो मालती उनको उस कोने में ले गई जहां पर लड्डू गोपाल जी विराजमान थे।

कमल किशोर लड्डू गोपाल जी को और उनके गले में पड़े हार को देखकर एकदम से हैरान हो गया यह तो वही लड्डू गोपाल है और यह वही हार है,जो मैंने अपने मित्र के लड्डू गोपाल जी को डाला था।

कमल किशोर ने बड़ी विनम्रता से पूछा कि यह गोपाल जी तुम कहां से लाए? बाबू जिसके मन में कोई  छल कपट नहीं था उसने कमल किशोर को  सारी बात बता दी कि कैसे उसको  सोभाग्य से गोपाल जी मिले और उनके हमारे घर आने से हमारा दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल गया।

तो कमल किशोर ने कहा क्या तुम जानते हो कि जो हार ठाकुर जी के गले में पड़ा है उसकी कीमत क्या है? तो बाबू और मालती ने बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़कर कहा कि जो चीज हमारे लड्डू गोपाल जी के अंग लग गई हम उसका मूल्य नहीं जानना चाहते और हमारे लाला के सामने किसी चीज किसी हार का कोई मोल नहीं है तो कमल किशोर एकदम से चुप हो गया और उसने मन में सोचा कि चलो अच्छा है मेरा हार ठाकुर जी ने अपने अंग लगाया हुआ है।

अगले दिन जब वह चलने को तैयार हुआ और बाबू उनको टैक्सी में लेकर उनके मंजिल तक पहुंचाने गया।

जब कमल किशोर टैक्सी से उतरा और जाने लगा तभी बाबू ने उनको आवाज लगाई कि ज़रा रुको यह आपका कोई सामान हमारी टैक्सी में रह गया है। लेकिन कमल किशोर ने कहा मैंने तो वहां कुछ नहीं रखा, लेकिन बाबू ने कहा कि यह बैग तो आपका ही है जब कमल किशोर ने उसको खोलकर देखा तो उसमें बहुत सारे पैसे थे।

कमल किशोर एकदम से हक्का-बक्का रह गया कि यह तो इतने पैसे हैं जितनी कि उस हार की कीमत है। उसकी आंखों में आंसू आ गए कि जब तक मैंने निश्छल भाव से ठाकुर जी को वह हार धारण करवाया हुआ था तब तक उन्होंने पहने रखा। मैंने उनको पैसों का सुनाया तो उन्होंने मेरा अभिमान तोड़ने के लिए पैसे मुझे दे दिए हैं।

वह ठाकुर जी से क्षमा मांगने लगा लेकिन अब हो भी क्या सकता था?
*कथासार* 
*इसलिए हमारे अंदर ऐसे भाव होने चाहिए कि: उसमें अहंकार न होकर विनम्रता होनी चाहिए और ठाकुर जी जैसा चाहते हैं वैसा ही होता है हम तो निमित्त मात्र हैं। कौन ठाकुर जी को वृंदावन से लाया और किसके घर आकर वह विराजमान हुए यह सब ठाकुर जी की लीला है जिसके घर रहना है जिसके घर सेवा लेनी है यह सभी जानते हैं हम लोग तो निमित्त मात्र हैं बस हमारे भाव शुद्ध होने चाहिए। ठाकुर जी तो बड़े बड़े पकवान नहीं बल्कि भाव से खिलाई छोटी से छोटी चीज को भी ग्रहण कर लेते हैं। आपसे अनुरोध करता हूँ कि जितना हो सके इस कथा को आगे बढ़ाने की कृपा करें!!*

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