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परिश्रम का महत्त्व

एक गांव में एक धनी मनुष्य रहता था | उसका नाम भैरोमल था | भैरोमल के पास बहुत खेत थे| उसने बहुत से नौकर और मजदूर रख छोड़े थे | भैरोमल बहुत सुस्त और आलसी था | वह कभी अपने खेतों को देखने नहीं जाता था | अपने मजदूर और नौकरों को भेजकर ही वह काम कराता था |

मजदूर और नौकर मनमाना काम करते थे | वे लोग खेत पर तो थोड़ी देर काम करते थे , बाकी घर बैठे रहते थे | इधर-उधर घूमते या गप्पे उड़ाया करते थे ,खेत न तो ठिकाने से जोते जाते थे | न सिंचे जाते थे और न उनमें ठीक से खाद पडती थी | खेतों में बीज भी ठिकाने से नहीं पडते थे और उनकी घास(खरपतवार) तो कोई निकालता ही नहीं था | इसका नतीजा यह हुआ कि उपज धीरे-धीरे घटने लगी | थोड़े दिनों में भैरोमल गरीब होने लगा|

उसी गांव में रामप्रसाद नामक एक दूसरा किसान था | उसके पास खेत नहीं थे | वह भैरोमल के ही कुछ खेत लेकर खेती करता था | किंतु; था ! परिश्रमी | अपने मजदूरों के साथ वह खेत पर जाता था | डटकर परिश्रम करता था उसके खेत भली प्रकार जोते और सींचे जाते थे | अच्छी खाद पडती थी, घास निकाली जाती थी और बीज भी समय पर बोए जाते थे | उसके घर के लोग भी खेत पर काम करते थे | खेत में उपज अच्छी होती थी, लगान देखकर और खर्च करके भी वह बहुत अन्न बचा लेता था | थोड़े दिनों में रामप्रसाद धनी हो गया |

जब भैरोमल बहुत गरीब हो गया | उसके ऊपर महाजनों का ऋण हो गया तो उसे अपने खेत बेचने की आवश्यकता जान पड़ी | यह समाचार पाकर रामप्रसाद उसके पास और बोला – ” मैंने सुना है! कि आप अपने खेत बेचना चाहते हैं | कृपया करके आप मेरे हाथ अपने खेत बेचे मैं दूसरों से कम मुल्य नहीं दूंगा |”

भैरोमल ने आश्चर्य से पूछा – ” भाई रामप्रसाद मेरे पास इतने खेत भी मैं ऋणी हो गया किंतु: तुम्हारे पास धन कहां से आ गया है | तुम तो मेरे  थोड़े से खेत लेकर खेती करते हो उन खेतों की लगान भी तुम्हें देनी पड़ती है  और घर का भी काम चलाना पड़ता है | मेरे खेत खरीदने के लिए तुम्हें  किसने रुपये दिए?

रामप्रसाद ने कहा – ” मुझे रुपए किसी ने नहीं दिए! रुपए तो मैंने खेतों की उपज से ही बचा कर ही इकट्ठे किए हैं | आप की खेती और मेरी खेती में एक अंतर है | आप नौकरों मजदूरों आदि सब से काम करने के लिए जाओ-जाओ कहते हैं | आपकी संपत्ति भी चली गई | मैं मजदूरों और नौकरों से पहले काम करने को तैयार होकर उन्हें अपने साथ काम करने के लिए सदा “आओ” कह कर बुलाता हूं | इससे मेरे यहां संपत्ति आती है |”

अब भैरोमल बात समझ गया | उसने थोड़े से खेत रामप्रसाद के हाथ बेच कर अपना ऋण चुका दिया | और बाकी खेतों में परिश्रमपूर्वक खेती करने लगा | थोड़े ही दिनों में उसकी दशा सुधर गई | वह फिर सुखी और संपन्न हो गया |


फरिश्ते

ऑन-ड्यूटी नर्स उस चिंतित युवा सेना के मेजर को उस बिस्तर के पास ले गई।

"आपका बेटा आया है," उसने धीरे से बिस्तर पर पड़े बूढ़े आदमी से कहा।

बुजुर्ग की आंखें खुलने से पहले उसे कई बार इन्ही शब्दों को बार बार दोहराना पड़ा।

दिल के दौरे के दर्द के कारण भारी बेहोशी की हालत में हल्की हल्की आंखे खोलकर किसी तरह उन्होंने उस युवा वर्दीधारी मेजर को ऑक्सीजन टेंट के बाहर खड़े देखा।

युवा मेजर ने हाथ बढ़ाया।

मेजर ने अपने प्यार और स्नेह को बुजुर्ग तक पहुंचाने के लिए नजदीक जाकर ध्यानपूर्वज उन्हें गले लगाने का अधूरा सा प्रयास किया। इस प्यार भरे लम्हे के बाद मेजर ने उन बूढ़े हाथों को अपनी जवान उंगलियों में, प्यार से कसकर थामा और मैं आपके साथ, आपके पास ही हूँ, का अहसास दिलाया।

इन मार्मिक क्षणों को देखते हुए, नर्स तुंरन्त एक कुर्सी ले आई ताकि मेजर साहब बिस्तर के पास ही बैठ सके।

"आपका धन्यवाद बहन" ये बोलकर मेजर ने एक विनम्र स्वीकृति का पालन किया।

सारी रात, वो जवान मेजर वहां खराब रोशनी वाले वार्ड में बैठा रहा, बस बुजुर्ग का हाथ पकड़े पकड़े, उन्हें स्नेह,प्यार और ताकत के अनेको शब्द बोलते बोलते, संयम देते देते।

बीच बीच मे बहुत बार नर्स ने मेजर से आग्रह किया कि "आप भी थोड़ी देर आराम कर लीजिये" जिसे मेजर ने शालीनता से ठुकरा दिया।

जब भी नर्स वार्ड में आयी हर बार वह उसके आने और अस्पताल के रात के शोर शराबे से बेखबर ही रहा। बस यूँही हाथ थामे बैठा रहा। ऑक्सीजन टैंक की गड़गड़ाहट, रात के स्टाफ सदस्यों की हँसी का आदान-प्रदान, अन्य रोगियों के रोने और कराहने की आवाजे, कुछ भी उसकी एकाग्रता को तोड़ नही पा रहा था।

उसने मेजर को हरदम बस बुजुर्ग को कुछ कोमल मीठे शब्द बुदबुदाते सुना। मरने वाले बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा, रात भर केवल अपने बेटे को कसकर पकड़ रखा था।

भोर होते ही बुजुर्ग का देहांत हो गया। मेजर ने उनके बेजान हाथ को छोड़ दिया और नर्स को बताने के लिये गया।

पूरी रात मेजर ने बस वही किया जो उसे करना चाहिए था, उसने इंतजार किया ...

अंत में, जब नर्से लौट आई और सहानुभूति जताने के लिये कुछ कह पाती, उससे पहले ही मेजर ने उसे रोककर पूछा-

"कौन था वो आदमी?"

नर्स चौंक गई, "वह आपके पिता थे," उसने जवाब दिया।

"नहीं, वे नहीं थे" मेजर ने उत्तर दिया। "मैंने उन्हें अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा।"

"तो जब मैं आपको उनके पास ले गयी थी तो आपने कुछ कहा क्यों नहीं ?"

"मैं उसी समय समझ गया था कि कोई गलती हुई है, लेकिन मुझे यह भी पता था कि उन्हें अपने बेटे की ज़रूरत है, और उनका बेटा यहाँ नहीं है।"

नर्स सुनती रही, उलझन में।

"जब मुझे एहसास हुआ कि वो बुजुर्ग बहुत बीमार है, आखिरी सांसे गिन रहा है, उसे मेरी जरूरत है, तो मैं उनका बेटा बनकर रुक गया।"

"तो फिर आपके यहाँ अस्पताल आने का कारण?", नर्स ने उससे पूछा।

"जी मैं आज रात यहां श्री विक्रम सलारिया को खोजने आया था। उनका बेटा कल रात जम्मू-कश्मीर में मारा गया था, और मुझे उन्हें सूचित करने के लिए भेजा गया था।"

'लेकिन जिस आदमी का हाथ आपने पूरी रात पकड़े रखा, वे ही मिस्टर विक्रम सलारिया थे।'

दोनो कुछ समय तक पूर्ण मौन में खड़े रहे क्योंकि दोनों को एहसास था कि एक मरते हुए आदमी के लिए अपने बेटे के हाथ से ज्यादा आश्वस्त करने वाला कुछ नहीं हो सकता।


शिक्षा

दोस्तो जब अगली बार किसी को आपकी जरूरत हो तो आप भी बस वहीं रुके रहें, बस साथ बने रहें, अंत तक। आपके बोल,उत्साह,आश्वासन तथा दूसरे को ये अहसास की मैं हूँ न ही उसे स्वस्थ करने के लिये काफी है ।

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