शिक्षाप्रद कहानियाँ भाग-48, download free in Hindi pdf

ग्लेन कनिंघम की प्रेरक कहानी:

एक ग्रामीण क्षेत्र के स्कूल में कक्षा को पुराने तरीके से गर्म किया जाता था। एक छोटा लड़का सबके आने से पहले आग और गर्म कक्षा शुरू करने के लिए स्कूल जल्दी आ जाता था।

लेकिन एक सुबह जब बाकी सभी पहुंचे तो उन्होंने स्कूल को आग की लपटों से घिरा हुआ पाया। उन्हें अंदर बेहोश लड़का मिला और उसे बाहर ले गए। लड़के के पूरे शरीर के निचले हिस्से में गंभीर जलन थी और उसे अस्पताल ले जाया गया।

जब लड़का अस्पताल में बिस्तर पर लेटा हुआ था, उसने डॉक्टर को अपनी माँ से बात करते हुए सुना कि छोटे लड़के का निचला शरीर गंभीर रूप से जल गया है और उसे अपने बचने की ज्यादा उम्मीद नहीं थी।

बहादुर लड़का मरना नहीं चाहता था और किसी तरह चिकित्सक को आश्चर्य हुआ कि वह बच गया।

कुछ दिन बाद लड़के ने फिर डॉक्टर और उसकी माँ की बातचीत सुनी। माँ को बताया गया कि आग की वजह से उसके शरीर के निचले हिस्से का बहुत मांस नष्ट हो गया है और उसके निचले अंग जीवन भर के लिए अपंग हो गए हैं।

बहादुर लड़के ने उम्मीद नहीं छोड़ी और फिर से चलने के लिए दृढ़ संकल्पित था लेकिन दुर्भाग्य से उसके पतले पैर कमर से नीचे लटक गए और बेजान हो गए।

उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई और वह अपनी मां के साथ घर वापस चला गया। उसकी माँ रोज उसकी टांगों की मालिश करती लेकिन बहुत देर तक उसे टांगों में कोई सनसनी महसूस नहीं हुई फिर भी उसने ठान लिया कि एक दिन वह चल-फिरेगा।

उसकी माँ उसे कुछ ताजी हवा लेने के लिए व्हीलचेयर पर यार्ड में ले जाती थी। एक धूप वाले दिन, व्हीलचेयर में बैठने के बजाय, उसने खुद को उसमें से घास में फेंक दिया और अपने पैरों को पीछे खींचते हुए खुद को घास पर खींच लिया।

दांव पर लगा, उसने खुद को बाड़ के साथ घसीटना शुरू कर दिया, यह तय किया कि वह चलेगा। उसने बाड़ लगाने के लिए अपने तरीके से काम करना शुरू कर दिया और फिर बाड़ के बगल में अपने यार्ड के चारों ओर एक चिकना रास्ता बना लिया।

अंततः दैनिक मालिश और दृढ़ता और अपने दृढ़ निश्चय के माध्यम से, उन्होंने खड़े होने और फिर रुक-रुक कर चलने की अपनी क्षमता विकसित की। फिर उसने खुद चलना शुरू किया और फिर दौड़ा।

उन्होंने अपने स्कूल चलना शुरू किया और फिर बाद में कॉलेज में अपनी ट्रैक टीम बनाई।

बाद में मैडिसन स्क्वायर गार्डन में इस दृढ़निश्चयी व्यक्ति, डॉ. ग्लेन कनिंघम ने दुनिया की सबसे तेज मील दौड़ लगाई।

ग्लेन कनिंघम एक छोटे लड़के के रूप में, जिसके बचने की उम्मीद भी नहीं थी, जो कभी दौड़ने की उम्मीद नहीं कर सकता था, 16 जून, 1934 को 4:06.8 मिनट में विश्व रिकॉर्ड तोड़ते हुए एक मील दौड़ा।

नैतिक:

जब तक आप इसे पर्याप्त रूप से चाहते हैं और अपने स्वयं को आपका मार्गदर्शन करने की अनुमति देते हैं, तब तक आप जो कुछ भी चाहते हैं, वह आपके पास हो सकता है।

उनके प्रयासों से पता चलता है कि आप अपने जीवन में जो बनाना चाहते हैं, वह आपका बनाने के लिए है। केवल वही व्यक्ति है जो हमारी व्यक्तिगत इच्छा को सीमित करता है, वह हम स्वयं हैं।

विकसित करने और बनाने के लिए अपनी इच्छा को प्रोत्साहित करें और प्रकृति की सभी शक्तियों के भीतर और बाहर आपकी इच्छा को पारित करने में मदद मिलेगी।

Inspiring Story of Glenn Cunningham:

In a country side school, classroom used to be heated by old fashioned way. A little boy used to come early to school to start fire and warm class before after everyone else arrive.

But one morning when everyone else arrived they found the school engulfed in flames. They found unconscious boy inside and carried him out. Boy had major burns all over his lower body and was taken to hospital.

When boy was lying in bed in hospital, he heard doctor talking to his mother that little boy’s lower body was burned severely and he didn’t had much hope of his survival.

Brave boy didn’t want to die and somehow to the amazement to physician he did survive.

After some day boy again listened to doctor and his mother conversation. Mother was told that because of fire much of his lower body part flesh had been destroyed and his lower limbs had been crippled for life.

Brave boy didn’t lose hope and was determined to walk again but unfortunately waist down his thin legs just dangled there lifeless.

He was released from hospital and went back to home with his mother. Everyday his mother would massage his legs but for long time he felt no sensation in his legs yet he was determined that one day he would walk.

His mother used to wheel him out in to yard on his wheelchair to get some fresh air. One sunny day, instead of just sitting in wheelchair, he threw himself out of it into grass and pulled himself across grass dragging his legs behind.

Stake by stake, he began dragging himself along the fence, resolved that he would walk. He started to work his way to fence and then wore a smooth path all around his yard beside the fence.

Ultimately through daily massage and persistence and his resolute determination, he did developed his ability to stand up and then walk haltingly. Then he started t walk by himself and then run.

He began to walk to his school and then later in college has made in it’s track team.

Later in Madison Square Garden this determined man, Dr. Glenn Cunningham ran the world’s fastest mile.

Glenn Cunningham as a little boy who was not even expected to survive, who could never hope to run, on June 16, 1934 ran the mile in 4:06.8 minutes breaking world’s record.

Moral:

You can have Whatever your Heart desires, as long as you Desire it enough and allow your self to Guide you.

His efforts portrays that you want to create in your life is yours for making. The only one that put limits on our personal will is ourselves.

Develop and encourage your will to create and all the forces of nature within and without will help you bring your desire to pass.

श्री राधा- कृष्ण और मोर

श्री कृष्ण के लीला काल का समय था, गोकुल में एक मोर रहता था, वह मोर बहुत चतुर था और श्री कृष्ण का भक्त था, वह श्री कृष्ण की कृपा पाना चाहता था। इसके लिए उस मोर ने एक युक्ति सोंची वह श्री कृष्ण के द्वार पर जा पहुंचा, जब भी श्री कृष्ण द्वार से अंदर-बाहर आते-जाते तो उनके द्वार पर बैठा वह मोर एक भजन गाता।

मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे
गोपाल सांवरिया मेरे
माँ बाप सांवरिया मेरे

इस प्रकार प्रतिदिन वह यही गुनगुनाता रहता एक दिन हो गया, 2 दिन हो गये इसी तरह 1 साल व्यतीत हो गया, परन्तु कृष्ण ने उसकी एक ना सुनी एक दिन दुखी होकर मोर रोने लगा। तभी वहा से एक मैना उडती जा रही थी, उसने मोर को रोता हुए देखा तो बहुत अचंभित हुई। वह अचंभित इस लिए नहीं थी की मोर रो रहा था वह इस लिए अचंभित हुई की श्री कृष्ण के द्वार पर कोई रो रहा था। मैना मोर के पास गई और उससे उसके रोने का कारण पूंछा वह मोर से बोली -हे मोर तू क्यों रोता हैं तब मोर ने बताया की पिछले एक वर्ष से में इस छलिये को रिझा रहा हु, परन्तु इसने आज तक मुझे पानी भी नही पिलाया। यह सुनकर मैना बोली -में श्री राधे के बरसना से आई हु..तू मेरे साथ वहीं चल, राधे रानी बहुत दयालु हैं वह तुझ पर अवश्य ही करुणा करेंगी। मोर ने मैना की बात से सहमति जताई और दोनों उड़ चले बरसाने की और उड़ते उड़ते बरसाने पहुच गये। राधा रानी के द्वार पर पहुँच कर मैना ने गाना शुरू किया

श्री राधे राधे, राधे बरसाने वाली राधे..

परन्तु मोर तो बरसाने में आकर भी यही दोहरा रहा था

मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे
गोपाल सांवरिया मेरे
माँ बाप सांवरिया मेरे

जब राधा ने ये सुना तो वो दोड़ी चली आई और प्रेम से मोर को गले लगा लिया, और मोर से पूंछा कि तू कहाँ से आया है। तब मोर बोला -जय हो राधा रानी आज तक सुना था की तुम करुणामयी हो और आज देख भी लिया। राधा रानी बोली वह कैसे तब मोर बोला में पिछले एक वर्ष से के द्वार पर कृष्ण नाम की धुन गाता रहा हु किन्तु कृष्ण ने मेरी सुनना तो दूर कभी मुझको थोड़ा सा पानी भी नही पिलाया..
राधा रानी बोली अरे नहीं मेरे कृष्ण ऐसे नहीं है, तुम एक बार फिर से वही जाओ किन्तु इस बार कृष्ण-कृष्ण नहीं राधे-राधे रटना। मोर ने राधा रानी की बात मानली और लौट कर गोकुल वापस आ गया फिर से कृष्ण के द्वार पर पहुंचा और इस बार रटने लगा

जय राधे राधे..

जब कृष्ण ने ये सुना तो भागते हुए आये और उन्होंने भी मोर से प्रेम से गले लगा लिया और बोले हे मोर तू कहा से आया हैं। यह सुनकर मोर बोला - वाह रे छलिये जब एक वर्ष से तेरे नाम की रट लगा रहा था तो कभी पानी भी नही पूछा और जब आज जय राधे राधे..बोला तो भागता हुआ आ गया ! कृष्ण बोले अरे बातो में मत उलझा, पूरी बात बता..! तब मोर बोला में पिछले एक वर्ष से आपके द्वार पर यही गा रहा हु

मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे
गोपाल सांवरिया मेरे
माँ बाप सांवरिया मेरे

किन्तु आपने कभी ध्यान नहीं दिया तो में बरसाने चला गया, इस प्रकार मोर ने समस्त वृतांत कृष्ण को कह सुनाया। तब कृष्ण बोले - मेने तुझको कभी पानी नहीं पिलाया यह मेने पाप किया है, और तूने राधा का नाम लिया,यह तेरा सौभाग्य है। इसलिए में तुझको वरदान देता हूँ कि जब तक ये सृष्टि रहेगी, तेरा पंख सदेव मेरे शीश पर विराजमान होगा..! और जो भी भक्त राधा का नाम लेगा, वो भी सदा मेरे शीश पर रहेगा..!!
अतः श्री कृष्ण के भक्त प्रेमियों यदि श्री कृष्ण का सनिध्ये चाहिए तो प्रेम से कहिये...............

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