ज्ञान का घमण्ड़
बात उस समय की है, जब स्वामी विवेकानंद अपने लोकप्रिय शिकागो धर्म सम्मेलन के भाषण के बाद भारत वापस आ गये थे। अब उनकी चर्चा विश्व के हर देश में हो रही थी। सब लोग उन्हें जानने लगे थे।स्वामी जी भारत वापस आकर अपने स्वभाव अनुरूप भ्रमण कर रहे थे। इस समय वे हिमालय और इसके आसपास के क्षेत्रों में थे। एक दिन वो घूमते-घूमते एक नदी के किनारे आ गये। वहाँ उन्होंने देखा कि एक नाव है पर वह किनारा छोड़ चुकी है। तब वे नाव के वापस आने के इंतजार में वहीं किनारे पर बैठ गए।
एक साधु वहाँ से गुजर रहा था। साधु ने स्वामी जी को वहाँ अकेला बैठा देखा तो वह स्वामी जी के पास गया और उनसे पूछा, तुम यहाँ क्यों बैठे हुए हो?
स्वामी जी ने उत्तर दिया, मैं यहां नाव की प्रतीक्षा कर रहा हूंँ।
साधु ने फिर पूछा, तुम्हारा नाम क्या है?
स्वामी जी ने कहा, मैं विवेकानंद हूंँ।
साधु ने स्वामी जी का उपहास उड़ाते हुए उनसे कहा, अच्छा! तो तुम वो सुप्रसिद्ध विवेकानंद हो जिसको लगता है कि विदेश में जाकर भाषण दे देने से तुम बहुत बड़े महात्मा साधु बन सकते हो।
स्वामी जी ने साधु को कोई उत्तर नहीं दिया।
फिर साधु ने बहुत ही घमण्ड के साथ, नदी के पानी के ऊपर चल कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया।
कुछ दूर तक चलने के बाद साधु ने स्वामी जी से कहा, क्या तुम मेरी तरह पानी पर पैदल चल कर इस नदी को पार कर सकते हो?
स्वामी जी ने बहुत ही आदर और विनम्रता के साथ साधु से कहा, इस बात में कोई शंका नहीं कि आपके पास बहुत ही अद्भुत शक्ति है। लेकिन क्या आप मुझे यह बता सकते हो, कि आपको यह असाधारण शक्ति प्राप्त करने में कितना समय लगा। बहुत ही अभिमान के साथ साधु ने उत्तर दिया, यह बहुत ही कठिन कार्य था। मैंने बीस वर्षों की कठिन तपस्या और साधना के बाद यह महान शक्ति प्राप्त की है।
साधु का यह बताने का अंदाज बहुत ही अहंकार भरा था।
यह देख कर स्वामी जी बहुत ही शान्त स्वर में बोले, आपने अपने जीवन के बीस वर्ष ऐसी विद्या को सीखने में नष्ट कर दिए, जो काम एक नाव पांच मिनिट में कर सकती है। आप ये बीस वर्ष निर्धन, अभावग्रस्त, गरीबों की सेवा में लगा सकते थे। या अपने ज्ञान और शक्ति का प्रयोग देश और देशवासियों की प्रगति में लगा सकते थे। लेकिन आपने अपने बीस वर्ष केवल पांच मिनट बचाने के लिए व्यर्थ कर दिए, ये कोई बुद्धिमानी नहीं है।
साधु सिर झुकाए खड़े रह गये और स्वामी जी नाव में बैठ कर नदी के दूसरी किनारे चले गए।
शिक्षा:-
ज्ञान और शक्ति का सही प्रयोग आवश्यक है। लेकिन किसी शक्ति को प्राप्त कर के यदि हम उस पर घमण्ड करते है तो यह मूर्खता है। शक्ति का सही स्थान पर सही उपयोग करना ही वास्तविकता में बुद्धिमानी है।
स्वतंत्रता दिवस💐
रोहित और नीरज पापा से पैसे लेकर बाज़ार की तरफ जा रहे थे, क्योंकि उन्हें इस स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के अवसर पर देश का तिरंगा झंडे खरीदने थे। इस 15 अगस्त के दिन हमारा घर सबसे अच्छा दिखेगा” वे आपस में बातें करते हुए खुशी खुशी दुकान की तरफ जा रहे थे।
तभी रोहित और नीरज की नजर एक लड़के पर पड़ी जो वेशभूषा से भिखारी लग रहा था परन्तु वह भीखारी नहीं था, वह बाल मजदूर था और गाड़ी के वर्कशाप में काम करता था। काम कर के वह तेजी से भागा जा रहा था।
"चलो! इसका पीछा करते हैं, देखते हैं कहां जा रहा है” रोहित ने कहा । उस लड़के के हाथ में काले रंग का एक थैला था जो उसने बड़ी मजबूती से पकड़ा हुआ था। आखिर चलते चलते वह लड़का एक झोपड़ी में घुस गया। रोहित और नीरज भी उसके पीछे पीछे झोपड़ी के पास आ कर रुक गए और उस लड़के के बाहर आने का इन्स्ज़ार करने लगे। इतने में झोपडी के अंदर से कुछ आवाज़े आने लगी।
अंदर से आवाज आ रही थी “मां देख मैं क्या लाया हूं!” उस लड़के ने अपनी माँ को कहा
“देख तेरी बहन भूखी बीमार पड़ी है जो कुछ लाया उसे दे दे।” उस लड़के की माँ ने कहा
"नहीं मां ! इसमें खाना नहीं है। ” लड़के ने जवाब दिया
“उफ्फ !! क्या तुम्हें दिन भर काम करके इतने पैसे भी नहीं मिले की हम एक वक़्त का खाना खा सके।" माँ ने कहा
उस लड़के ने थैले से कुछ झंडे निकाले और मां की तरफ बढ़ाया, मां यह देखो ! अब यह बेकार रंगीले कागज़ क्यों उठा लाया, हमारे किस काम के ?
"यह बेकार कागज़ नहीं है मां! यह हमारे भारत देश का तिरंगा झंडा है, मैंने यह झंडे खरीदने के लिए कितने जतन किए कितनो के आगे हाथ फैलाए ।” उस लड़के ने अपनी माँ को बताया
अरे बेटा! तुमने यह सब क्यों किया? आखिर इस देश ने हमें दिया ही क्या सिवाय गरीबी एवं भूखमरी के । यह देश सिर्फ पूंजीपतियों का है। इन झंडो की अपेक्षा हमें 2 वक़्त की रोटी अधिक महत्व रखती है बेटा! कम से कम हमारा पेट तो भरेगा,मां ने अपने आंसुओं को पोंछते हुए कहा ।
मां तुम्हे यह मालूम नहीं कि यह देश कितने बलिदानों से मिला है, कितनी जानें कुर्बान हो गई हैं। हमें इसलिए इसका आभास नहीं है क्यूंकि हमने कोई बलिदान नहीं दिया है। यदि आज हम स्वतंत्र नहीं होते तो किसी अंग्रेज के जूते साफ कर रहे होते। ख़ुशी इस बात की है आज हम किसी के गुलाम तो नही, अपनी इच्छाओं के अनुसार तो जी रहे है न ।
उस लड़के की बातें सुन कर उसकी मां सर झुकाए बैठी थी । रोहित और नीरज यह सब देख रहे थे उनकी आंखों से आंसू छलकने लगे, आज उन्हें असली आज़ादी का मतलब समझ आ गया था। सिर्फ झंडो से घर सजा कर असली आज़ादी नहीं बल्कि किसी की मदद करना ही वास्तविक आज़ादी है। और दोनों ने उन पैसों से खाना खरीदा और उस लड़के के घर की तरफ चल दिए ।
उनके मन में एक बात घूम रहीं थीं कि “हम उस दिये की रक्षा करना भूल गए हैं जिस दिये को हमारे वीरों ने तेज आंधियों में भी बुझने नहीं दिया था।” आज उन्हें असली ख़ुशी 15 अगस्त मनाते हुए हो रही थी।
यह सत्य है कि अधिकांश गरीब एवं अशिक्षित माता पिता अपने बच्चों को काम करने पर प्राथमिकता देते हैं क्योंकि उनके पास आय का कोई मूल स्रोत नहीं है। उनके बच्चों को शिक्षित करने के लिए सीमित संसाधन नही हैं।
बाल श्रम अज्ञानता और अशिक्षा के कारण हिंदुस्तान की भावी पीढ़ियों को नष्ट कर सकता है। हिंदुस्तान के धनवान बुद्धिजीवियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नई पीढ़ी को इस तकनीकी दुनिया में शिक्षा के महत्व, उनके लक्ष्यों और उनके अस्तित्व के उद्देश्य को जानना चाहिए। बच्चों को शिक्षित होना चाहिए क्योंकि उचित शिक्षा से उन्हें अपने विचारों, और अपने देश के मूल्यों की समझ मिलती है।
रोहित और नीरज पापा से पैसे लेकर बाज़ार की तरफ जा रहे थे, क्योंकि उन्हें इस स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के अवसर पर देश का तिरंगा झंडे खरीदने थे। इस 15 अगस्त के दिन हमारा घर सबसे अच्छा दिखेगा” वे आपस में बातें करते हुए खुशी खुशी दुकान की तरफ जा रहे थे।
तभी रोहित और नीरज की नजर एक लड़के पर पड़ी जो वेशभूषा से भिखारी लग रहा था परन्तु वह भीखारी नहीं था, वह बाल मजदूर था और गाड़ी के वर्कशाप में काम करता था। काम कर के वह तेजी से भागा जा रहा था।
"चलो! इसका पीछा करते हैं, देखते हैं कहां जा रहा है” रोहित ने कहा । उस लड़के के हाथ में काले रंग का एक थैला था जो उसने बड़ी मजबूती से पकड़ा हुआ था। आखिर चलते चलते वह लड़का एक झोपड़ी में घुस गया। रोहित और नीरज भी उसके पीछे पीछे झोपड़ी के पास आ कर रुक गए और उस लड़के के बाहर आने का इन्स्ज़ार करने लगे। इतने में झोपडी के अंदर से कुछ आवाज़े आने लगी।
अंदर से आवाज आ रही थी “मां देख मैं क्या लाया हूं!” उस लड़के ने अपनी माँ को कहा
“देख तेरी बहन भूखी बीमार पड़ी है जो कुछ लाया उसे दे दे।” उस लड़के की माँ ने कहा
"नहीं मां ! इसमें खाना नहीं है। ” लड़के ने जवाब दिया
“उफ्फ !! क्या तुम्हें दिन भर काम करके इतने पैसे भी नहीं मिले की हम एक वक़्त का खाना खा सके।" माँ ने कहा
उस लड़के ने थैले से कुछ झंडे निकाले और मां की तरफ बढ़ाया, मां यह देखो ! अब यह बेकार रंगीले कागज़ क्यों उठा लाया, हमारे किस काम के ?
"यह बेकार कागज़ नहीं है मां! यह हमारे भारत देश का तिरंगा झंडा है, मैंने यह झंडे खरीदने के लिए कितने जतन किए कितनो के आगे हाथ फैलाए ।” उस लड़के ने अपनी माँ को बताया
अरे बेटा! तुमने यह सब क्यों किया? आखिर इस देश ने हमें दिया ही क्या सिवाय गरीबी एवं भूखमरी के । यह देश सिर्फ पूंजीपतियों का है। इन झंडो की अपेक्षा हमें 2 वक़्त की रोटी अधिक महत्व रखती है बेटा! कम से कम हमारा पेट तो भरेगा,मां ने अपने आंसुओं को पोंछते हुए कहा ।
मां तुम्हे यह मालूम नहीं कि यह देश कितने बलिदानों से मिला है, कितनी जानें कुर्बान हो गई हैं। हमें इसलिए इसका आभास नहीं है क्यूंकि हमने कोई बलिदान नहीं दिया है। यदि आज हम स्वतंत्र नहीं होते तो किसी अंग्रेज के जूते साफ कर रहे होते। ख़ुशी इस बात की है आज हम किसी के गुलाम तो नही, अपनी इच्छाओं के अनुसार तो जी रहे है न ।
उस लड़के की बातें सुन कर उसकी मां सर झुकाए बैठी थी । रोहित और नीरज यह सब देख रहे थे उनकी आंखों से आंसू छलकने लगे, आज उन्हें असली आज़ादी का मतलब समझ आ गया था। सिर्फ झंडो से घर सजा कर असली आज़ादी नहीं बल्कि किसी की मदद करना ही वास्तविक आज़ादी है। और दोनों ने उन पैसों से खाना खरीदा और उस लड़के के घर की तरफ चल दिए ।
उनके मन में एक बात घूम रहीं थीं कि “हम उस दिये की रक्षा करना भूल गए हैं जिस दिये को हमारे वीरों ने तेज आंधियों में भी बुझने नहीं दिया था।” आज उन्हें असली ख़ुशी 15 अगस्त मनाते हुए हो रही थी।
यह सत्य है कि अधिकांश गरीब एवं अशिक्षित माता पिता अपने बच्चों को काम करने पर प्राथमिकता देते हैं क्योंकि उनके पास आय का कोई मूल स्रोत नहीं है। उनके बच्चों को शिक्षित करने के लिए सीमित संसाधन नही हैं।
बाल श्रम अज्ञानता और अशिक्षा के कारण हिंदुस्तान की भावी पीढ़ियों को नष्ट कर सकता है। हिंदुस्तान के धनवान बुद्धिजीवियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नई पीढ़ी को इस तकनीकी दुनिया में शिक्षा के महत्व, उनके लक्ष्यों और उनके अस्तित्व के उद्देश्य को जानना चाहिए। बच्चों को शिक्षित होना चाहिए क्योंकि उचित शिक्षा से उन्हें अपने विचारों, और अपने देश के मूल्यों की समझ मिलती है।
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