मदद:-
रात दस बजे लगभग अचानक मुझे एलर्जी हो गई।घर पर दवाई नहीं, न ही इस समय मेरे अलावा घर में कोई और, श्रीमती जी बच्चों के पास गोवा और हम रह गए अकेले। ड्राईवर भी अपने घर जा चुका था बाहर हल्की बारिश की बूंदे सावन महीने के कारण बरस रही थी।
दवा की दुकान ज्यादा दूर नहीं थी पैदल भी जा सकता था लेकिन बारिश की वज़ह से मैंने रिक्शा लेना उचित समझा।
बगल में राम मन्दिर बन रहा था।
एक रिक्शा वाला भगवान की प्रार्थना कर रहा था। मैंने उससे पूछा चलोगे, तो उसने सहमति में सर हिलाया और बैठ गए हम रिक्शा में! रिक्शा वाला काफी़ बीमार लग रहा था और उसकी आँखों में आँसू भी थे।
मैंने पूछा,"क्या हुआ भैया! रो क्यूँ रहे हो और तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं लग रही।"
उसने बताया:- बारिश की वजह से तीन दिन से सवारी नहीं मिली और वह भूखा है बदन दर्द भी कर रहा है,अभी भगवान से प्रार्थना कर रहा था क़ि आज मुझे भोजन दे दो, मेरे रिक्शे के लिए सवारी भेज दो।
मैं बिना कुछ बोले रिक्शा रुकवाकर दवा की दुकान पर चला गया।वहां खड़े खड़े सोच रहा था.......
"कहीं भगवान ने तो मुझे इसकी मदद के लिए नहीं भेजा।क्योंकि यदि यही एलर्जी आधे घण्टे पहले उठती तो मैं ड्राइवर से दवा मंगाता,रात को बाहर निकलने की मुझे कोई ज़रूरत भी नहीं थी,और पानी न बरसता तो रिक्शे में भी न बैठता।"
मन ही मन भगवान को याद किया और पूछ ही लिया भगवान से,!
मुझे बताइये क्या आपने रिक्शे वाले की मदद के लिए भेजा है?"
मन में जवाब मिला... "हाँ"...।
मैंने भगवान को धन्यवाद् दिया,अपनी दवाई के साथ रिक्शेवाले के लिए भी दवा ली।बगल के रेस्तरां से छोले भटूरे पैक करवाए और रिक्शे पर आकर बैठ गया।
जिस मन्दिर के पास से रिक्शा लिया था वहीँ पहुंचने पर मैंने रिक्शा रोकने को कहा।उसके हाथ में रिक्शे के 30 रुपये दिए,गर्म छोले भटूरे का पैकेट और दवा देकर बोला:-
"खाना खा कर यह दवा खा लेना, एक एक गोली ये दोनों अभी और एक एक कल सुबह नाश्ते के बाद,उसके बाद मुझे आकर फिर दिखा जाना।
रोते हुए रिक्शेवाला बोला:-
"मैंने तो भगवान से दो रोटी मांगी थी मग़र भगवान ने तो मुझे छोले भटूरे दे दिए।कई महीनों से इसे खाने की इच्छा थी। आज भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली।और जो मन्दिर के पास उसका बन्दा रहता था उसको मेरी मदद के लिए भेज दिया।"
कई बातें वह बोलता रहा और मैं स्तब्ध हो सुनता रहा।
घर आकर सोचा क़ि उस रेस्तरां में बहुत सारी चीज़े थीं, मैं कुछ और भी ले सकता था,समोसा या खाने की थाली ..पर मैंने छोले भटूरे ही क्यों लिए?
क्या सच् में भगवान ने मुझे रात को अपने भक्त की मदद के लिए ही भेजा था..?
हम जब किसी की मदद करने सही वक्त पर पहुँचते हैं तो इसका मतलब उस व्यक्ति की प्रार्थना भगवान ने सुन ली और हमें अपना प्रतिनिधि बना, देवदूत बना उसकी मदद के लिए भेज दिया।
शिक्षा:-
इसलिए कहते हैं, अचानक आए परोपकार, दान और मदद के मौके को ना गवाएं ....क्या पता.... ईश्वर ने आपको मौका दिया है उनके प्रतिनिधि के रूप में....
गुप्त साधना
एक मनुष्य ने सुन रखा था कि आध्यात्मिक जगत में कुछ ऐसे गुप्त मंत्र हैं जो यदि किसी को सिद्ध हो जाए तो उसे बहुत सिद्धियां मिल सकती हैं। मंत्रों की अद्भुत शक्ति के बारे में उसने बहुत कुछ सुन रखा था और देखा भी था, इसलिए उसे बड़ी प्रबल उत्कंठा थी कि किसी प्रकार कोई मंत्र सिद्ध कर लें तो आराम से जिंदगी बीते और गुणवान तथा यशस्वी बन जावे।
गुप्त मंत्र की दीक्षा लेने के विचार से, गुरुओं की तलाश करता हुआ दूर-दूर तक मारा मारा फिरने लगा। एक दिन एक सुयोग्य गुरु का पता चला। उसके पास जा पहुंचा। वह महानुभाव दीक्षा देने के लिए तैयार ना होते थे,परंतु उस मनुष्य ने बहुत प्रार्थना की और चरणों पर गिरा, तो उसे शिष्य बना लिया।
कुछ दिन बाद उसे गुप्त मंत्र बताने की तिथि नियत की गई। उस दिन उसे गायत्री मंत्र की दीक्षा दे दी और कहा- "इस मंत्र को गुप्त रखना, यह अलभ्य मंत्र औरों को मालूम नहीं है,तू इसका निष्ठा पूर्वक जप कर ले, तो बहुत सी सिद्धियां प्राप्त हो जावेगी।"
वह मंत्र का जप करने लगा। एक दिन वह नदी किनारे गया तो देखा, कि कुछ लोग गायत्री मंत्र का जोर जोर से जप कर रहे थे। इसको संदेह हुआ, कि इसे तो और लोग भी जानते हैं! इसमें गुप्त क्या है ?
इसी सोच विचार में वह आगे नगर में गया तो देखा, कि दीवारों पर भी गायत्री मंत्र लिखा हुआ है। आगे चला, तो एक पुस्तक विक्रेता की दुकान पर गायत्री संबंधी बहुत सी पुस्तकें थी जिनमें वह मंत्र छपा हुआ था। अब उसका संदेश पक्का हो गया। वह सोचने लगा यह तो मामूली मंत्र है और सब पर प्रगट है।
इस संदेह के साथ वह गुरु जी के पास पहुंचकर क्रोध पूर्वक बोला -"आपने व्यर्थ ही मुझे उलझा रखा है!यह तो एक मामूली मंत्र है, जिसे आपने गुप्त एवं रहस्य पूर्ण बताया है।"
गुरुजी बड़े उदार और क्षमाशील थे। उतावले शिष्य को क्रोध पूर्वक वैसी ही उतावली का उत्तर देने की अपेक्षा उसे समझा कर संतोष करा देना ही उचित समझा। उस समय वे चुप रहे, किंतु दूसरे दिन उन्होने उस शिष्य को बुलाकर एक हीरा दिया और कहा- "इसे क्रमशः कुंजड़े, पंसारी, सुनार,महाजन, और जोहरी के पास ले जाओ, जो इसका मूल्य जितना बतावे,उसे आ कर मुझे बताना।
शिष्य आज्ञानुसार चला। पहले कुंजड़े के पास पहुंचा,कुंजड़े ने कहा -यह कांच की गोली है, बच्चे खेलते रहेंगे। इसके बदले में पाव भर सब्जी ले जाओ।
फिर वह पंसारी के पास गया। उसने देखा काई चमकदार पत्थर है, तोलने के बांट के लिए अच्छा रहेगा । कहा- भाई! इसके बदले में एक सेर नमक ले सकते हो।
शिष्य फिर सुनार के पास पहुंचा। सुनार ने देखा, कोई अच्छा पत्थर है। जेवरों में नग लगाने के लिए अच्छा रहेगा। उसने उसकी कीमत ₹50 लगाई।
फिर वह महाजन के पास पहुंचा। महाजन पहचान गया कि यह हीरा है, पर किस जाति का है,यह न जान सका। तब उसने अपनी बुद्धि के अनुसार उसका मूल्य ₹1000 लगा दिया।
अंत में जब जौहरी के पास पहुंचा, तो उसने ₹10000 दाम लगाया।
वह गुरुजी के पास लौटा और जिसने जो कीमत लगाई, वह कह सुनाई।
गुरु ने कहा -"यही तुम्हारे संदेह का उत्तर है। एक वस्तु को देखा तो सबने, पर मूल्यअपनी बुद्धि के अनुसार लगाया।
एक मनुष्य ने सुन रखा था कि आध्यात्मिक जगत में कुछ ऐसे गुप्त मंत्र हैं जो यदि किसी को सिद्ध हो जाए तो उसे बहुत सिद्धियां मिल सकती हैं। मंत्रों की अद्भुत शक्ति के बारे में उसने बहुत कुछ सुन रखा था और देखा भी था, इसलिए उसे बड़ी प्रबल उत्कंठा थी कि किसी प्रकार कोई मंत्र सिद्ध कर लें तो आराम से जिंदगी बीते और गुणवान तथा यशस्वी बन जावे।
गुप्त मंत्र की दीक्षा लेने के विचार से, गुरुओं की तलाश करता हुआ दूर-दूर तक मारा मारा फिरने लगा। एक दिन एक सुयोग्य गुरु का पता चला। उसके पास जा पहुंचा। वह महानुभाव दीक्षा देने के लिए तैयार ना होते थे,परंतु उस मनुष्य ने बहुत प्रार्थना की और चरणों पर गिरा, तो उसे शिष्य बना लिया।
कुछ दिन बाद उसे गुप्त मंत्र बताने की तिथि नियत की गई। उस दिन उसे गायत्री मंत्र की दीक्षा दे दी और कहा- "इस मंत्र को गुप्त रखना, यह अलभ्य मंत्र औरों को मालूम नहीं है,तू इसका निष्ठा पूर्वक जप कर ले, तो बहुत सी सिद्धियां प्राप्त हो जावेगी।"
वह मंत्र का जप करने लगा। एक दिन वह नदी किनारे गया तो देखा, कि कुछ लोग गायत्री मंत्र का जोर जोर से जप कर रहे थे। इसको संदेह हुआ, कि इसे तो और लोग भी जानते हैं! इसमें गुप्त क्या है ?
इसी सोच विचार में वह आगे नगर में गया तो देखा, कि दीवारों पर भी गायत्री मंत्र लिखा हुआ है। आगे चला, तो एक पुस्तक विक्रेता की दुकान पर गायत्री संबंधी बहुत सी पुस्तकें थी जिनमें वह मंत्र छपा हुआ था। अब उसका संदेश पक्का हो गया। वह सोचने लगा यह तो मामूली मंत्र है और सब पर प्रगट है।
इस संदेह के साथ वह गुरु जी के पास पहुंचकर क्रोध पूर्वक बोला -"आपने व्यर्थ ही मुझे उलझा रखा है!यह तो एक मामूली मंत्र है, जिसे आपने गुप्त एवं रहस्य पूर्ण बताया है।"
गुरुजी बड़े उदार और क्षमाशील थे। उतावले शिष्य को क्रोध पूर्वक वैसी ही उतावली का उत्तर देने की अपेक्षा उसे समझा कर संतोष करा देना ही उचित समझा। उस समय वे चुप रहे, किंतु दूसरे दिन उन्होने उस शिष्य को बुलाकर एक हीरा दिया और कहा- "इसे क्रमशः कुंजड़े, पंसारी, सुनार,महाजन, और जोहरी के पास ले जाओ, जो इसका मूल्य जितना बतावे,उसे आ कर मुझे बताना।
शिष्य आज्ञानुसार चला। पहले कुंजड़े के पास पहुंचा,कुंजड़े ने कहा -यह कांच की गोली है, बच्चे खेलते रहेंगे। इसके बदले में पाव भर सब्जी ले जाओ।
फिर वह पंसारी के पास गया। उसने देखा काई चमकदार पत्थर है, तोलने के बांट के लिए अच्छा रहेगा । कहा- भाई! इसके बदले में एक सेर नमक ले सकते हो।
शिष्य फिर सुनार के पास पहुंचा। सुनार ने देखा, कोई अच्छा पत्थर है। जेवरों में नग लगाने के लिए अच्छा रहेगा। उसने उसकी कीमत ₹50 लगाई।
फिर वह महाजन के पास पहुंचा। महाजन पहचान गया कि यह हीरा है, पर किस जाति का है,यह न जान सका। तब उसने अपनी बुद्धि के अनुसार उसका मूल्य ₹1000 लगा दिया।
अंत में जब जौहरी के पास पहुंचा, तो उसने ₹10000 दाम लगाया।
वह गुरुजी के पास लौटा और जिसने जो कीमत लगाई, वह कह सुनाई।
गुरु ने कहा -"यही तुम्हारे संदेह का उत्तर है। एक वस्तु को देखा तो सबने, पर मूल्यअपनी बुद्धि के अनुसार लगाया।
मंत्र साधारण मालूम पड़ता है और उसे सब कोई जानते हैं, पर उसका असली मूल्य जान लेना सब के लिए संभव नहीं है । जो उसके गुप्त तत्व को जान लेता है, वह अपनी श्रद्धा के अनुसार लाभ उठा लेता है। यथार्थ में मंत्र,अनुष्ठान और आध्यात्मिक क्रियाओं को स्थूल दृष्टि से देखा जाए तो वह वैसी ही मामूली और तुच्छ प्रतीत होती हैं, जैसा कि कुंजड़े को वह कांच की गोली प्रतीत हुई। किंतु श्रद्धा और निष्ठा के द्वारा जिसने अपना मन जौहरी बना लिया है, उसके लिए वह साधनाएं बड़ा महत्व रखती है और इच्छा अनुसार फल भी देती हैं। सारा महत्व श्रद्धा और विश्वास में है। विश्वास के साथ की गई एक छोटी सी क्रिया भी विचित्र फल दिखाती है,किंतु अविश्वास और अश्रद्धा के साथ किया हुआ अश्वमेध भी निष्फल है।"यही गुप्त साधनाओं का रहस्य है।
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