शिक्षाप्रद कहानियाँ भाग-35 Download free books pdf

ऋषि और एक चूहा

एक वन में एक ऋषि रहते थे. उनके डेरे पर बहुत दिनों से एक चूहा भी रहता आ रहा था. यह चूहा ऋषि से बहुत प्यार करता था. जब वे तपस्या में मग्न होते तो वह बड़े आनंद से उनके पास बैठा भजन सुनता रहता. यहाँ तक कि वह स्वयं भी ईश्वर की उपासना करने लगा था. लेकिन कुत्ते – बिल्ली और चील – कौवे आदि से वह सदा डरा – डरा और सहमा हुआ सा रहता।

एक बार ऋषि के मन में उस चूहे के प्रति बहुत दया आ गयी. वे सोचने लगे कि यह बेचारा चूहा हर समय डरा – सा रहता है, क्यों न इसे शेर बना दिया जाए. ताकि इस बेचारे का डर समाप्त हो जाए और यह बेधड़क होकर हर स्थान पर घूम सके. ऋषि बहुत बड़ी दैवीय शक्ति के स्वामी थे. उन्होंने अपनी शक्ति के बल पर उस चूहे को शेर बना दिया और सोचने लगे की अब यह चूहा किसी भी जानवर से न डरेगा और निर्भय होकर पूरे जंगल में घूम सकेगा।

लेकिन चूहे से शेर बनते ही चूहे की सारी सोच बदल गई. वह सारे वन में बेधड़क घूमता. उससे अब सारे जानवर डरने लगे और प्रणाम करने लगे. उसकी जय – जयकार होने लगी. किन्तु ऋषि यह बात जानते थे कि यह मात्र एक चूहा है. वास्तव में शेर नहीं है।

अतः ऋषि उससे चूहा समझकर ही व्यवहार करते. यह बात चूहे को पसंद नहीं आई की कोई भी उसे चूहा समझ कर ही व्यवहार करे. वह सोचने लगा की ऐसे में तो दूसरे जानवरों पर भी बुरा असर पड़ेगा. लोग उसका जितना मान करते है, उससे अधिक घृणा और अनादर करना आरम्भ कर देंगे।

अतः चूहे ने सोचा कि क्यों न मैं इस ऋषि को ही मार डालूं. फिर न रहेगा बाँस, न बजेगी बांसुरी. यही सोचकर वह ऋषि को मारने के लिए चल पड़ा. ऋषि ने जैसे ही क्रोध से भरे शेर को अपनी ओर आते देखा तो वे उसके मन की बात समझ गये. उनको शेर पर बड़ा क्रोध आ गया।

अतः उसका घमंड तोड़ने के लिए  ऋषि ने अपनी दैवीय शक्ति से उसे एक बार फिर चूहा बना दिया।

शिक्षा
दोस्तों! हमें कभी भी अपने हितैषी का अहित नहीं करना चाहिए, चाहे हम कितने ही बलशाली क्यों न हो जाए. हमें उन लोगो को हमेशा याद रखना चाहिए जिन्होंने हमारे बुरे वक्त में हमारा साथ दिया होता है. इसके अलावा हमें अपने बीते वक्त को भी नहीं भूलना चाहिए. चूहा यदि अपनी असलियत याद रखता तो उसे फिर से चूहा नहीं बनना पड़ता. बीता हुआ समय हमें घमंड से बाहर निकालता है।
प्रभु ही हमारे राजा

एक गरीब विधवा के पुत्र ने एक बार अपने राजा को देखा।राजा को देख कर उसने अपनी माँ से पूछा- माँ!क्या कभी मैं राजा साहब से बात कर पाऊँगा?

माँ हंसी और चुप रह गई।पर वह लड़का तो निश्चय कर चुका था।उन्हीं दिनों गाँव में एक संत आए हुए थे।तो युवक ने उनके चरणों में अपनी इच्छा रखी। संत ने कहा-अमुक स्थान पर राजा का महल बन रहा है,तुम वहाँ चले जाओ,और मजदूरी करो।पर ध्यान रखना,वेतन न लेना।अर्थात् बदले में कुछ मांगना मत,निष्काम रहना।वह लड़का गया।वह दोगुनी मेहनत करता पर वेतन न लेता। एक दिन राजा निरीक्षण करने आया। उसने लड़के की लगन देखी।प्रबंधक से पूछा-यह लड़का कौन है,जो इतनी तन्मयता से काम में लगा है?इसे आज अधिक मजदूरी देना। प्रबंधक ने विनय की- महराज!इसका अजीब हाल है,दो महीने से इसी उत्साह से काम कर रहा है।पर हैरानी यह है कि यह मजदूरी नहीं लेता।कहता है मेरे घर का काम है।घर के काम की क्या मजदूरी लेनी?राजा ने उसे बुला कर कहा-बेटा!तूं मजदूरी क्यों नहीं लेता? बता तूं क्या चाहता है?
 
लड़का राजा के पैरों में गिर पड़ा और बोला-महाराज!आपके दर्शन हो गए,आपकी कृपा दृष्टि मिल गई,मुझे मेरी मजदूरी मिल गई।अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए। राजा उसे मंत्री बना कर अपने साथ ले गया। और कुछ समय बाद अपनी इकलौती पुत्री का विवाह भी उसके साथ कर दिया। राजा का कोई पुत्र था नहीं, तो कालांतर में उसे ही राज्य भी सौंप दिया।
      
शिक्षा
संत महापुरुष कहते है  कि भगवान ही राजा हैं। हम सभी भगवान के मजदूर हैं।भगवान का भजन करना ही मजदूरी करना है।संत ही मंत्री है।भक्ति ही राजपुत्री है।मोक्ष ही वह राज्य है। हम भगवान के भजन के बदले में कुछ भी न माँगें तो वे भगवान स्वयं दर्शन देकर, पहले संत बना देते हैं और अपनी भक्ति प्रदान कर, कालांतर में मोक्ष ही दे देते हैं।वह लड़का सकाम कर्म करता,तो मजदूरी ही पाता, निष्काम कर्म किया तो राजा बन बैठा।यही सकाम और निष्काम कर्म के फल में भेद है। तुलसी विलम्ब न कीजिए,निश्चित भजिए राम,जगत मजूरी देत है, क्यों राखे भगवान

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