Bhoot aaya complete, सम्पूर्ण भूत आया सीरीज download Hindi

पिता-बेटी

पापा मैंने आपके लिए हलवा बनाया है" 11साल की बेटी अपने पिता से बोली जो कि अभी ऑफिस से घर आये ही थे ! ,

पिता "वाह क्या बात है ,ला कर खिलाओ फिर पापा को,"

बेटी दौड़ती रसोई मे गई और बडा कटोरा भरकर हलवा लेकर आई ..

पिता ने खाना शुरू किया और बेटी को देखा ..
पिता की आँखों मे आँसू थे...

तो बेटी ने पूछा:- क्या हुआ पापा हलवा अच्छा नही लगा?

पिता- नही मेरी बेटी बहुत अच्छा बना है ,और देखते देखते पूरा कटोरा खाली कर दिया।

इतने मे माँ बाथरूम से नहाकर बाहर आई ,
और बोली- "ला मुझे भी खिला तेरा हलवा"

पिता ने बेटी को 50 रु इनाम मे दिए , बेटी खुशी से मम्मी के लिए रसोई से हलवा लेकर आई मगर ये क्या जैसे ही उसने हलवा की पहली चम्मच मुंह मे डाली तो तुरंत थूक दिया और बोली- "ये क्या बनाया है, ये कोई हलवा है, इसमें तो चीनी नही नमक भरा है , और आप इसे कैसे खा गये ये तो जहर हैं ।

मेरे बनाये खाने मे तो कभी नमक मिर्च कम है तेज है कहते रहते हो ओर बेटी को बजाय कुछ कहने के इनाम देते हो...."

पिता-(हंसते हुए)- "पगली तेरा मेरा तो जीवन भर का साथ है, रिश्ता है पति पत्नी का जिसमें नौकझौक रूठना मनाना सब चलता है।

मगर ये तो बेटी है कल चली जाएगी, मगर आज इसे वो एहसास वो अपनापन महसूस हुआ जो मुझे इसके जन्म के समय हुआ था। आज इसने बडे प्यार से पहली बार मेरे लिए कुछ बनाया है, फिर वो जैसा भी हो मेरे लिए सबसे बेहतर और सबसे स्वादिष्ट है; ये बेटियां अपने पापा की परियां , और राजकुमारी होती है जैसे तुम अपने पापा की हो ..."

वो रोते हुए पति के सीने से लग गई और  सोच रही थी
इसीलिए हर लडकी अपने पति मे अपने पापा की छवि ढूंढती है..

दोस्तों यही सच है हर बेटी अपने पिता के बडे करीब होती है या यूं कहे कलेजे का टुकड़ा इसीलिए शादी मे विदाई के समय सबसे ज्यादा पिता ही रोता है ....

इसीलिए हर पिता हर समय अपनी बेटी की फिक्र करता रहता है !

शिक्षा
दोस्तों, जिस प्रकार एक पिता अपनी संतान को संस्कारित करता है उसी प्रकार संतान का भी दायित्व बनता है कि वो अपने माता-पिता के संस्कारों का सम्मान करें।


श्री गणेश और किसान

प्राचीन समय की बात है समस्त स्वर्ग लोक उत्साहित था। भगवान नारायण स्वयं माता लक्ष्मी के साथ अपने विवाह में सभी को आमंत्रित कर रहे थे। माता लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु का विवाह कुंदनपुर नामक स्थान पर हो रहा था, जो माता लक्ष्मी का निवास स्थान है।

सभी देव भगवान विष्णु की शादी में सबसे अच्छे दिखना चाहते थे, जिसके लिए वह जोरों-शोरों से तैयारी कर रहे थे। सभी देवों में सर्वश्रेष्ठ कपड़े पहनने की होड़ लग रही थी। जैसे ही सभी देव तैयार होकर बारात में शामिल होने के लिए भगवान विष्णु के घर पर इकट्ठा हुए, तो उन्होंने देखा कि भगवान गणेश घर में प्रवेश कर रहे हैं।

भगवान गणेश को वहा देखकर सभी देव काफी परेशान हो गए, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि गणपति जी उनके साथ कुंदनपुर आए। इसके पीछे कारण यह था कि वे असामान्य दिखते थे और खाना भी अधिक मात्रा में खाते थे।

देवताओं ने यह भगवान विष्णु से कहा कि वे सभी लोग बहुत अच्छे दिख रहे हैं, लेकिन गणेश उनके साथ सही नहीं लग रहे हैं। हालाँकि, जगतपिता भगवान नारायण भगवान गणेश को पीछे नहीं छोड़ना चाहते थे। लेकिन देवताओं के दबाव के कारण उन्हें यह स्वीकार करना पड़ा।

इसलिए, वे एक योजना के साथ आए, और भगवान विष्णु से गणपति को यह बताने के लिए कहा कि उन्हें स्वर्गलोक की देखभाल करनी है, क्योंकि वे सभी लोग जा रहे हैं। विवाह में न जाने की बात सुनकर गणपति जी थोड़ा दुखी तो हुए, लेकिन भगवान नारायण द्वारा सौंपे गए कार्य को वे मना नहीं कर पाए।

यह सब होने के पश्चात नारद मुनि वहां आये और उन्होंने युवा श्री गणेश को सब कुछ बताया। साथ ही, उन्होंने देवताओं के पास वापस जाने के लिए एक विमान भी तैयार किया।

देवर्षि नारद मुनि ने भगवान गणेश को सलाह दी कि वह चूहों की एक सेना तैयार करें। यह चूहों की सेना देवताओं के मार्ग के नीचे खुदाई करने का कार्य कर सकती है। मार्ग की खुदाई करने से सड़कें खोखली बन जाएगी और खोखली सड़कें रथों, हाथियों, गाड़ियों और अन्य वस्तुओं के वजन को संभाल नहीं पाएगी। फिर जब वे सभी मार्ग पर चलेंगे तो सब डूब जाएगा, और वे सब भीतर गिर जाएंगे।

भगवान गणेश इस योजना से बहुत खुश हुए और उन्होंने वैसा ही किया। और सब कुछ योजना के अनुसार हुआ। जैसे ही भगवान विष्णु का रथ सड़क पर चढ़ा, पहिए सड़क में गहरे धंस गए और बारात रुक गयी।

कोई भी देव रथ को पृथ्वी से बाहर नहीं खींच सकें। देवताओं को इस तरह संघर्ष करते देख पास से गुजर रहे एक किसान ने मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया। किसी को विश्वास नहीं था कि वह कार्य कर पाएगा, लेकिन फिर भी उसे मौका देने का फैसला किया।

किसान ने पहिया पकड़ लिया और “जय गणपति’’ चिल्लाया, और पहिया एक झटके में जमीन से बाहर हो गया। हर कोई चौंक गया और देवताओं ने उससे पूछा कि उसने श्री गणपति का नाम क्यों लिया। किसान ने उत्तर दिया कि भगवान गणेश सभी समस्याओं को दूर करने वाले हैं, वे प्रथम पूजनीय देव हैं।

इसलिए, वह हमेशा कोई भी काम शुरू करने से पहले भगवान गणेश का नाम लेते हैं। यह सुनकर सभी देवता लज्जित हुए और स्वयं को दोषी महसूस किया। उन्हें इस बात का आभास हुआ कि अच्छे दिखने से कोई फर्क नहीं पड़ता, जो वास्तव में मायने रखता है वह है किसी व्यक्ति की महानता और अच्छाई।

सभी देवता वापस श्री गणपति के पास गए और क्षमा मांगी। तब वे सभी उन्हें बारात में ले आए, और सब कुछ ठीक हो गया।

ईमानदारी का फल

बहुत समय पहले की बात है, प्रतापगढ़ के राजा को कोई संतान नहीं थी. राजा ने फैसला किया कि वह अपने राज्य के किसी बच्चे को ही अपना उत्तराधिकारी चुनेगा. इसी इरादे से एक दिन सभी बच्चों को बुलाया गया. राजा ने घोषणा की कि वह वह वहां मौजूद बच्चों में से ही किसी को अपना उत्तराधिकारी चुनेगा.

उसके बाद उसने सभी बच्चों के बीच एक छोटी सी थैली बंटवा दी…. और बोला,

“प्यारे बच्चों, आप सभी को जो थैली दी गयी है उसमे अलग-अलग पौधों के बीज हैं. हर बच्चे को सिर्फ एक ही बीज दिया गया है…आपको इसे अपने घर ले जाकर एक गमले में लगाना है. ६ महीने बाद हम फिर यहाँ इकठ्ठा होंगे और उस समय मैं फैसला करूँगा कि मेरे बाद प्रतापगढ़ का अगला शाषक कौन होगा?

उन्ही लड़कों में ध्रुव नाम का भी एक लड़का था. बाकी बच्चों की तरह वह भी बीज लेकर ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर वापस पहुँच गया.

माँ की मदद से उसने एक गमला चुना और उसमे और अच्छे से उसकी देखभाल करता.

दिन बीतने लगे, पर हफ्ते-दो हफ्ते बाद भी ध्रुव के गमले में पौधे का कोई नामोनिशान नहीं था.

वहीँ अब आस-पास के कुछ बच्चों के गमलों में उपज दिखने लगी थी.

ध्रुव ने सोचा कि हो सकता है उसका बीज कुछ अलग हो… और कुछ दिनों बाद उसमे से कुछ निकले.

और ऐसा सोच कर वह पूरी लगन से गमले की देखभाल करता रहा. पर तीन महीने बीत जाने पर भी उसका गमला खाली था.

वहीं दूसरी ओर बाकी बच्चों के गमलों में अच्छे-खासे पौधे उग गए थे. कुछ में तो फल-फूल भी दिखाई देने लगे थे.

ध्रुव का खाली गमला देख सभी उसका मजाक बनाते…और उस पर हँसते… यहाँ तक की कुछ बड़े बुजुर्ग भी उसे बेकार में मेहनत करने से मना करते.

पर बावजूद इसेक ध्रुव ने हार नहीं मानी, और लगातार गमले की देखभाल करता रहा.

देखते-देखते ६ महीने भी बीत गए और राजा के सामने अपना गमला ले जाने का दिन आ गया.

ध्रुव चिंतित था क्योंकि अभी भी उसे गमले में कुछ नहीं निकला था. वह मन ही मन सोचने लगा-

अगर मैं ऐसे ही राजा के सामने चला गया तो सब लोग मुझ पर कितना हँसेंगे… और कहीं राजा भी मुझसे नाराज हो गया और सजा देदी तो…किसी को यकीन नहीं होगा कि मैं बीज में रोज पानी डालता था…सब मुझे कितना आलसी समझेंगे!

माँ ध्रुव की परेशानी समझ रही थी, उसने ध्रुव की आँखों में आँखें डाल कर कहा-

“नतीजा जो कुछ भी हो, तुम्हे राजा को उसका दिया हुआ बीज लौटाना ही चाहिए!”

तय दिन सभी बच्चे राजमहल के मैदान में इकठ्ठा हो गए. वहां एक से बढ़कर एक पौधों का अम्बार लगा था…रंग-बिरंगे फूलों की खुशबु से पूरा महल सुगन्धित हो गया था.

ध्रुव का खाली गमला देख बाकी बच्चे उसका मजाक उड़ा रहे थे कि तभी राजा के आने की घोषणा हुई.

सभी बच्चे शांति से अपनी जगह खड़े हो गए…सब के अन्दर बस एक ही प्रश्न चल रहा था…कि

कौन बनेगा राजा ?
राजा बच्चों के बीच से हो कर आगे बढ़ने लगे…वह जहाँ से भी गुजरते बच्चे तन कर खड़े हो जाते और अपने आप को योग्य उत्तराधिकारी साबित करने की कोशिश करते.

तमाम खूबसूरत पौधों को देखने के बाद राजा की नज़र ध्रुव पर पड़ी.

“क्या हुआ? तुम्हारा गमला खाली क्यों है?”, राजा ने पूछा.

“जी मैं रोज इसमें पानी डालता था…धूप दिखाता था… ६ महीने तक मैंने इसकी पूरी देख-भाल की पर फिर भी इसमें से पौधा नहीं निकला..”, ध्रुव कुछ हिचकिचाहट के साथ बोला.

राजा बाकी गमलों को देखने के लिए आगे बढ़ गया और जब सभी गमले देखने के बाद उसने बच्चों को संबोधित किया-

“आप लोगों ने खुद को साबित करने के लिए कड़ी कड़ी मेहनत की… ज्यादातर लोग किसी भी कीमत पर राजा बनना चाहते हैं, लेकिन एक लड़का है जो यहाँ खाली हाथ ही चला आया…. ध्रुव, तुम यहाँ मेरे पास आओ…”

सबके सामने इस तरह बुलाया जाना ध्रुव को कुछ अजीब लगा.

वह धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा.

जैसे ही राजा ने उसका गमला उठाकर बाकी बच्चों को दिखाया…सभी हंसने लगे.

“शांत हो जाइए!”, राजा ने ऊँची आवाज़ में कहा, “

६ महीने पहले मैंने आपको बीज दिए थे और अपने-अपने पौधों के साथ आने को कहा था. मैंने आपको जो बीज दिए थे वो बंजर थे… आप चाहे उसकी जितनी भी देख-भाल करते उसमे से कुछ नहीं निकलता… लेकिन अफ़सोस है कि आप सबके बीच में बस एक ध्रुव ही है जो खाली हाथ यहाँ उपस्थित हुआ है.

आप सबको उससे सीखना चाहिए…पहले तो उसने ईमानदारी दिखाई कि और लोगों की तरह बीज में से कुछ ना निकले पर दूसरा बीज नहीं लगाया…और उसके बाद खाली गमले के साथ यहाँ आने का सहस दिखाया…ये जानते हुए भी कि लोग उस पर कितना हँसेंगे…उसे कितना अपमानित होना पड़ेगा!

मैं घोषणा करता हूँ कि ध्रुव ही प्रतापगढ़ का अगला राजा होगा. यही उसकी इमानदारी का फल है.

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