शिक्षाप्रद कहानियाँ भाग-27

ईश्वर पर भरोसा


एक अमीर व्यक्ति था। उसने समुद्र में अकेले घूमने के लिए एक नाव बनवाई और छुट्टी के दिन वह नाव लेकर अकेले समुद्र की सैर करने निकल पड़ा। वह समुद्र में थोङा आगे पहुंचा ही था कि अचानक एक जोरदार तूफान आ गया। उसकी नांव पुरी तरह से तहस-नहस हो गइ लेकिन वह लाइफ जैकेट के साथ समुद्र में कूद गया। जब तूफान शान्त हुआ तब वह तैरता-तैरता एक टापु पर जा पहुंचा। मगर वहां भी कोई नहीं था। टापु के चारों ओर समुद्र के अलावा क़ुछ भी नजर नहीं आ रहा था।

उस आदमी ने सोचा कि जब मैंने पूरी जिंदगी में किसी का कभी बुरा नहीं किया तो मेरे साथ बुरा नहीं होगा। उसको लगा कि ईश्वर ने मौत से बचाया है तो आगे का रास्ता भी वही दिखाएगा। धीरे-धीरे वह वहां पर उगे झाङ-फल-पत्ते खाकर दिन बिताने लगा।

मगर अब धीरे-धीरे उसे लगने लगा था कि वह इस टापू पर फंस गया है। मगर अब भी ईश्वर पर उसका भरोसा कायम था। उसने सोचा इतने दिनों से मैं इस टापू पर मारा-मारा फिर रहा हूं, क्यों न यहां एक झोपड़ी बना लूं। पता नहीं अभी और कितने दिन यहां बिताने पड़ें। पूरे दिन लकडि़यां और पत्ते वगैरह इकट्ठा कर उसने झोंपड़ी बनानी शुरू की। रात होते-होते उसकी झोंपड़ी बनकर तैयार हो गई थी। अभी वह झोंपड़ी के बाहर खड़ा होकर उसे देखते हुए सोच रहा था कि आज से झोंपडी में सोने को मिलेगा। मगर अचानक से मौसम बदला और बिजली जोर-जोर से कड़कने लगी और एक बिजली उसकी झोंपड़ी पर गिर गई। उसके देखते ही देखते झोंपड़ी जलकर खाक हो गई। यह देखकर वह व्यक्ति टुट गया।

उसने आसमान की तरफ देखकर बोला, हे ईश्वर ये तेरा कैसा इंसाफ है। तूने मुझ पर अपनी रहम की नजर क्यों नहीं की? मैंने हमेशा तुझ पर विश्वास बनाए रखा। फिर वह इंसान हताश और निराश होकर सर पर हाथ रखकर रोने लगा। अचानक ही एक नाव टापू के पास आई। नाव से उतर कर दो आदमी बाहर आए और बोले कि हम तुम्हें बचाने आए हैं। दुर से इस वीरान टापू में जलता हूआ झोंपड़ा देखा तो लगा की कोई उस टापू पर मुसीबत में है। अगर तुम अपनी झोंपडी नहीं जलाते तो हमें पता नहीं चलता कि टापू पर कोई हैं।

उस आदमी की आंखों से आंसू गिरने लगे। उसने ईश्वर से माफी मांगी और बोला कि हे ईश्वर मुझे क्या पता था कि तूने मुझे बचाने के लिए मेरी झोंपडी जलाई थी। यकिनन तू अपने बंदों का हमेशा ख्याल रखता है। तूने मेरे सब्र का इम्तेहान लिया,  लेकिन मैं उसमे फेल हो गया। मुझे माफ कर दे।

शिक्षा
इस कहानी से यही सीख मिलती है कि--दिन चाहे सुख के हों या दुःख के, भगवान अपने भक्तों के साथ हमेशा रहते हैं। हां हम एक बार ईश्वर से रूठ सकते हैं, लेकिन ईश्वर हमसे कभी नहीं रूठता। वह हमेशा अच्छा ही करता है। अक्सर हमारे साथ भी ऐसे हालत बन जाते हैं, हम पूरी तरह निराश हो जाते हैं और अपने ईश्वर या नियति से रूठ जाते हैं और विश्वास खो देते हैं जिससे हमारे यानी आत्म विश्वास में भी गिरावट होती है।

लेकिन फिर बाद में हमें पता लगता है कि परमात्मा ने जो किया वह अच्छा ही किया था, नहीं तो आज मैं यहां न होता। इसलिए मुसीबत या दुःख के समय हार मानने की बजाय लगातार अपने कर्तव्य करते रहिए, और बाकी अपने परम पिता परमेश्वर छोड़ दीजिए,, क्योंकि वह जो करेंगे निश्चित अच्छा ही करेंगे......।।।


मित्र का स्थान लेना:

एक बार एक राज्य में, लियाम नाम के एक आदमी ने राजा का फिर से विरोध किया, राजा अहंकारी था, उसे कोई पसंद नहीं था जो उसके खिलाफ जाए, इसलिए उसने अपने सैनिकों को उस आदमी को गिरफ्तार करने और फांसी देने का आदेश दिया।

लियाम ने विरोध नहीं किया और कहा, "मेरे भगवान, मैं आपकी सजा को सहर्ष स्वीकार करूंगा लेकिन कृपया मुझे एक आखिरी इच्छा दें।

कृपया मुझे कुछ समय दें, मरने से पहले मैं बस अपने घर जाना चाहता हूं और अपने बच्चों को आखिरी बार देखना चाहता हूं..

राजा ने यह कहते हुए मना कर दिया, "नहीं, मैं इसकी अनुमति नहीं दे सकता.. इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि एक बार जाने के बाद.. तुम वापस आ जाओगे.."

तभी भीड़ में से एक आदमी आया और बोला, "मेरे भगवान, कृपया मुझे गारंटी के रूप में उसके बदले में गिरफ्तार करें और यदि वह वापस नहीं आया तो आप उसके बदले मुझे फांसी दे सकते हैं।"

राजा हैरान था क्योंकि उसने कभी ऐसा आदमी नहीं देखा था जो किसी और के लिए अपनी जान दे दे।

राजा ने उससे पूछा, "तुम इस व्यक्ति की जगह लेने के लिए क्यों तैयार हो?"

वह आदमी जवाब देता है, "मेरे भगवान, वह मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं और मुझे उस पर भरोसा है, वह अपने परिवार से मिलने के बाद वापस आ जाएगा .."

राजा ने सहमति व्यक्त की और लियाम को अपने घर जाने की अनुमति दी। उन्हें कुल छह घंटे का समय दिया गया था कि उन्हें जाने की जरूरत होगी और घर से वापस आने में ज्यादा से ज्यादा पांच घंटे का समय था।

लियाम अपने घर के लिए रवाना हो गया। उन्होंने उनके परिवार से मुलाकात की। उसके पास अपनी फांसी के समय से पहले राजा के महल पहुंचने के लिए अभी भी पर्याप्त समय था।

लियाम जल्द से जल्द पहुंचना चाहता था लेकिन रास्ते में वह अपने घोड़े से गिर गया और उसे अपना घोड़ा मिल गया और उसे खुद चोट लग गई।

इस वजह से उन्हें देरी हो गई। दूसरी तरफ, महल में जैसे-जैसे समय बीतता गया। उसके दोस्त को पकड़ कर फांसी के लिए तैयार किया जा रहा था। उसका दोस्त फांसी पर चढ़ने के लिए जहाज पर खड़ा था। दोस्त अपने दोस्त के लिए अपनी जान देकर खुश था।

अपने दोस्तों को फांसी देने के लिए लीवर खींचने से ठीक एक मिनट पहले लियाम दौड़ता हुआ आया, हांफता हुआ जमीन पर गिर पड़ा। लियाम चिल्लाया, “कृपया रुकिए.. मैं वापस आ गया हूं। प्लीज मेरे दोस्त को रिहा कर दो।

उसके दोस्त ने जवाब दिया, "लियाम.. तुम वापस जाओ.. मुझे तुम्हारी जगह लेने और यहां मरने में खुशी होगी.."

यह सुनकर लियाम अपने दोस्त के पास गया और कहा, "मेरे दोस्त आपकी मदद के लिए धन्यवाद। अब कृपया जाओ। यह मेरी सजा है और मुझे इसका सामना करना चाहिए।

यह देखकर राजा उनकी मित्रता से अभिभूत हो गया और बोला, "मैं तुम्हें क्षमा करता हूँ.. तुम्हारी मित्रता ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला है.. तुम दोनों जाने के लिए स्वतंत्र हो.."

Moral:-
सच्चा दोस्त वह है जो आप पर भरोसा करता है और हमेशा आपके साथ रहता है। सच्ची दोस्ती कई मुश्किलों को भी टाल सकती है।

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