शिक्षाप्रद कहानियाँ भाग-16

 परमात्मा से सम्बन्ध

एक बार एक पंडित जी ने एक दुकानदार के पास पांच सौ रुपये रख दिए।
उन्होंने सोचा कि जब मेरी बेटी की शादी होगी तो मैं ये पैसा ले लूंगा।
कुछ सालों के बाद जब बेटी सयानी हो गई,
तो पंडित जी उस दुकानदार के पास गए।

लेकिन दुकानदार ने नकार दिया और बोला- आपने कब मुझे पैसा दिया था?
बताइए! क्या मैंने कुछ लिखकर दिया है?

पंडित जी उस दुकानदार की इस हरकत से बहुत ही परेशान हो गए और बड़ी चिंता में डूब गए।
फिर कुछ दिनों के बाद पंडित जी को याद आया,
कि क्यों न राजा से इस बारे में शिकायत कर दूं।
ताकि वे कुछ फैसला कर देंगे और मेरा पैसा मेरी बेटी के विवाह के लिए मिल जाएगा।

फिर पंडित जी राजा के पास पहुंचे और अपनी फरियाद सुनाई।

राजा ने कहा- कल हमारी सवारी निकलेगी और तुम उस दुकानदार की दुकान के पास में ही खड़े रहना।

दूसरे दिन राजा की सवारी निकली।
सभी लोगों ने फूलमालाएं पहनाईं और किसी ने आरती उतारी।

पंडित जी उसी दुकान के पास खड़े थे।
जैसे ही राजा ने पंडित जी को देखा,
तो उसने उन्हें प्रणाम किया और कहा- गुरु जी! आप यहां कैसे?
आप तो हमारे गुरु हैं।
आइए! इस बग्घी में बैठ जाइए।

वो दुकानदार यह सब देख रहा था।
उसने भी आरती उतारी और राजा की सवारी आगे बढ़ गई।

थोड़ी दूर चलने के बाद राजा ने पंडित जी को बग्घी से नीचे उतार दिया और कहा- पंडित जी! हमने आपका काम कर दिया है।
अब आगे आपका भाग्य।

उधर वो दुकानदार यह सब देखकर हैरान था,
कि पंडित जी की तो राजा से बहुत ही अच्छी सांठ-गांठ है।
कहीं वे मेरा कबाड़ा ही न करा दें।
दुकानदार ने तत्काल अपने मुनीम को पंडित जी को ढूंढ़कर लाने को कहा।

पंडित जी एक पेड़ के नीचे बैठकर कुछ विचार-विमर्श कर रहे थे।
मुनीम जी बड़े ही आदर के साथ उन्हें अपने साथ ले आए।

दुकानदार ने आते ही पंडित जी को प्रणाम किया और बोला- पंडित जी! मैंने काफी मेहनत की और पुराने खातों को‌ देखा,
तो पाया कि खाते में आपका पांच सौ रुपया जमा है।
और पिछले दस सालों में ब्याज के बारह हजार रुपए भी हो गए हैं।
पंडित जी! आपकी बेटी भी तो मेरी बेटी जैसी ही है।
अत: एक हजार रुपये आप मेरी तरफ से ले जाइए,
और उसे बेटी की शादी में लगा दीजिए।

इस प्रकार उस दुकानदार ने पंडित जी को तेरह हजार पांच सौ रुपए देकर बड़े ही प्रेम के साथ विदा किया।

तात्पर्य 
जब मात्र एक राजा के साथ सम्बन्ध होने भर से हमारी विपदा दूर जो जाती है, तो हम अगर इस दुनिया के राजा यानि कि परमात्मा से अपना सम्बन्ध जोड़ लें, तो हमें कोई भी समस्या, कठिनाई या फिर हमारे साथ किसी भी तरह के अन्याय का तो कोई प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होगा।

असामान्य परीक्षा..!!

एक बार एक दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर ने अपनी कक्षा को एक असामान्य परीक्षा दी। उसने अपनी कुर्सी ऊपर उठाई और अपनी टेबल पर रख दी।

अब वह बोर्ड की ओर मुड़ा और उसने लिखा, "साबित करो कि यह कुर्सी मौजूद नहीं है .."

पूरी कक्षा हैरान और भ्रमित थी फिर भी सभी छात्रों ने लंबी जटिल व्याख्याएँ लिखनी शुरू कर दीं।

इन सबके बीच एक छात्र था जिसने एक मिनट में उस परीक्षा को पूरा किया और प्रोफेसर को पेपर सौंप दिया, जिससे उसके सहपाठियों और प्रोफेसर को आश्चर्य हुआ।

कुछ दिनों बाद कक्षा को परीक्षण के लिए उनके ग्रेड प्राप्त हुए और परीक्षा पूरी करने में केवल एक मिनट का समय लेने वाले छात्र को सर्वश्रेष्ठ उत्तर घोषित किया गया।

उनका जवाब था, "कौन सी कुर्सी?"

नैतिक: हम बहुत सोचते हैं। कभी-कभी उत्तर सरल होते हैं।

Unusual Test..!!

Once a philosophy professor gave an unusual test to his class. He lifted his chair up and kept it on his table.

Now he turned toward board and wrote, “Prove that this chair does not exist..”

Whole class was surprised and confused yet all students started writing long complex explanations.

Among all there was one student who completed that test in a minute and handed paper to professor, attracting surprised glances from his classmates and the professor.

Some days later class received their grades for the test and student who took just a minute to complete the test was announced the best answer.

His answer was, “What chair??”

Moral: We tend to Think a lot. Sometimes Answers are just simple.

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