शिक्षा प्रद कहानियाँ भाग-1

 आज की कहानी-1

आलस रूपी भैंस

एक बार की बात है। एक महात्मा अपने शिष्य के साथ एक गांव से गुजर रहे थे। दोनों को बहुत भूख लगी थी। पास में ही एक घर था। दोनों घर के पास पहुंचे और दरवाजा खटखटाया। अंदर से फटे-पुराने कपड़े पहना एक आदमी निकला।

महात्मा ने उससे कहा- हमें बहुत भूख लगी है। कुछ खाने को मिल सकता है क्या? उस आदमी ने उन दोनों को खाना खिलाया। खाना खाने के बाद महात्मा ने कहा...

तुम्हारी जमीन बहुत उपजाऊ लग रही है, लेकिन फसलों को देखकर लगता है कि तुम खेत पर ज्यादा ध्यान ही नहीं देते। फिर तुम्हारा गुजारा कैसे होता है?

आदमी ने उत्तर दिया- हमारे पास एक भैंस है, जो काफी दूध देती है। उससे मेरा गुजारा हो जाता है। रात होने लगी थी, इसलिए महात्मा शिष्य सहित वहीं रुक गए।

रात को उस महात्मा ने अपने शिष्य को उठाया और कहा- चलो हमें अभी ही यहां से निकलना होगा और इसकी भैंस भी हम साथ ले चलेंगे।

शिष्य को गुरु की बात अच्छी नहीं लगी, लेकिन करता क्या! दोनों भैंस को साथ लेकर चुपचाप निकल गए। यह बात उस शिष्य के मन में खटकती रही।

कुछ सालों बाद एक दिन शिष्य उस आदमी से मिलने का मन बनाकर उसके गांव पहुंचा। जब शिष्य उस खेत के पास पहुंचा, तो देखा खाली पड़े खेत अब फलों के बगीचों में बदल चुके थे। उसे यकीन नहीं आ रहा था, तभी वह आदमी सामने दिख गया।

शिष्य उसके पास जाकर बोला- सालों पहले मैं अपने गुरु के साथ आपसे मिला था। आदमी ने शिष्य को आदर पूर्वक बिठाया और बताने लगा... उस दिन मेरी भैंस खो गई। पहले तो समझ में नहीं आया कि क्या करूं।

फिर, जंगल से लकड़ियां काटकर उन्हें बाजार में बचने लगा। उससे कुछ पैसे मिले, तो मैंने बीज खरीद कर खेतों में बो दिए।

उस साल फसल भी अच्छी हो गई। उससे जो पैसे मिले उन्हें मैंने फलों के बगीचे लगाने में इस्तेमाल किया।

अब काम बहुत ही अच्छा चल रहा है। और इस समय मैं इस इलाके में फलों का सबसे बड़ा व्यापारी हूं। कभी-कभी सोचता हूं उस रात मेरी भैंस न खोती तो यह सब न होता।


 

शिष्य ने उससे पूछा, यह काम आप पहले भी तो कर सकते थे? तब वह बोला, उस समय मेरी जिंदगी बिना मेहनत के चल रही थी। मुझे कभी लगा ही नहीं कि मैं इतना कुछ कर सकता हूं।

शिक्षा:-

मित्रों, अगर आपके जीवन में भी तो कोई ऐसी आलस रूपी भैंस है, जो आपको बड़ा बनने से रोक रही है, तो उसे आज ही छोड़ दें। यह करना बहुत ही मुश्किल है, लेकिन असंभव नहीं है।


आज की कहानी-2

कबूतर का घोंसला 

एक बार शिक्षक नवनीत शाम के समय विद्यालय के बाहर शिष्यों के साथ बेठे थे। तभी वहां एक कबूतर का जोड़ा उड़ता हुआ आ गया। उन्हें देख कर शिक्षक नवनीत को एक कहानी याद आई और उन्होंने शिष्यों को कहानी सुनाना शुरू किया।

एक पेड़ पर एक कबूतर और कबूतरी रहते थे। कुछ समय बाद कबूतरी ने उसी पेड़ की टहनी पर तीन अंडे दिए। एक दिन कबूतर और कबूतरी दोपहर के समय खाना ढूंढते हुए कुछ दूर निकल गये। तभी कहीं से एक लोमड़ी आ गयी। वह भी भोजन की तलाश में पेड़ पर चढ़ी। जहां उसे कबूतर के अंडे मिल गये और वो अंडों को खा गयी।

जब कबूतर का जोड़ा वापस आया तो अंडे न पा कर बहुत परेशान हो गया। दोनों को बहुत बुरा लग रहा था। उनका मन टूट सा गया। तभी कबूतर ने निश्चय किया कि अब वह घोंसला बनाएंगा। ताकि फिर कभी उसके अंडे कोई न खा जाए।
कबूतर ने अपने निर्णय अनुसार तिनके इकट्ठे कर के घोंसला बनाना शुरू किया। पर उसे एहसास हुआ कि उसे तो घोंसला बनाना आता ही नहीं है। तब उसने मदद के लिए जंगल के दूसरे पक्षियों को बुलाया।

सभी पक्षी उसकी मदद के लिए आ गये आर उन्होंने कबूतर के लिए घोंसला बनाना शुरू किया। पक्षियों ने अभी कबूतर को सिखाना शुरू ही किया था कि कबूतर ने बोला कि अब वो घोंसला बना लेगा। उसने सब सीख लिया है।

सभी पक्षी यह सुन कर वापस चले गए। अब कबूतर ने घोंसला बनाना शुरू किया। उसने एक तिनका इधर रखा एक तिनका उधर। उसे समझ आया कि वह अभी भी कुछ नही सीखा है। उसने फिर से पक्षियों को बुलाया। पक्षियों ने आ कर फिर घोंसला बनाना शुरू किया। अभी आधा घोंसला बना ही था कि कबूतर जोर से चिल्लाया, तुम सब छोड़ दो अब मैं समझ गया हूं यह कैसे बनेगा।
इस बार पक्षियों को बहुत गुस्सा आया। सारे पक्षी तिनके वहीं छोड़ कर चले गये। कबूतर ने फिर कोशिश की पर उस से घोंसला नहीं बना।



कबूतर ने तीसरी बार पक्षियों को बुलाया, लेकिन इस बार एक भी पक्षी मदद के लिए नहीं आया और आज तक कबूतर को घोंसला बनाना नहीं आया।


शिक्षा

बच्चों, इस कहानी ने बताया कि हमें जो काम नहीं आता हो, उसे किसी की मदद से पूरी तरह सीख लेना चाहिए। जो काम नहीं आता हो उसे जबरदस्ती करने का दिखावा नहीं करना चाहिए, क्योंकि मदद करने वाला व्यक्ति एक या दो बार तो आपकी मदद करेगा, लेकिन हर बार नहीं। इसलिए, किसी की मदद का सम्मान करते हुए वह काम पूरी निष्ठा के साथ सीखना चाहिए।



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