Samrat Vishwajeet, सम्राट विश्वजीत (all episodes)

 Samrat Vishwajeet Complete, सम्पूर्ण सम्राट विश्वजीत

कहानी सम्राट विश्वजीत की

अभी राजा विश्वजीत की युद्ध कौशल एवम युद्ध नीति की शिक्षा पूरी भी नहीं हुई भी नहीं थी की अचानक उनके राज्य मे एक गुप्तचर आया. सेनापति जी सेनापति जी, सेनापति ने गुप्तचर को देखा जो बड़ा घबराया हुआ था, सेनापति ने जल्दी से उस गुप्तचर से उसकी घबराहट का कारण पुशा, क्या हुआ कोनसी समस्या आना पढ़ी, प्रभू एक अशुभ सुचना है गुप्तचर सारी समस्या सेनापति को बताने लग गया. यह सुन कर सेनापति परेशान हो गए और तुरंत ही महाराज से मिलने जा पहुचे, सेनापति युद्ध कक्ष मे जल्दी ही पहुंच गए जहा पहले से ही महाराज विश्वजीत उनका इंतजार कर रहे थे.



कहिये सेनापति क्या बात है, यु अचानक आधी रात मे मिलने का कोई कारण, जरुर कोई विशेष बात ही होंगी. सेनापति बताने लगे जी हा महाराज, आपकी आज्ञा से हमने उत्तर राज्य की तरफ बांध लगा दिया था और साथ ही जिन राजाओं हमें सेना देने से मना कर दिया था, उनमे से एक राज्य है संघपुर जिसके राजा है, राजा सोमनाथ उन्होंने हमरे इस बांध लगाने वाले निर्णय से नाराज होकर, उत्तर के सीमा पार के राजा राजा गंधर्वनाश से संधि कर ली है और अब तो गंधर्वनाश ने हमारे राज्य पर चढाई भी करना शुरू कर दी है, और साथ ही सबसे चिंता की बात ये है की पहले ही उनकी सेना हमसे दुगनी थी.

परन्तु अब संघपुर के राजा के साथ संधि के बाद से उनकी सेना हमसे तीन गुना बड़ी हो गई है, विश्वजीत सेनापति की बात सुन कर पहले तो वो गंभीर हो गए, लेकिन फिर सेना पति से पुशने लगे सेनापति जी ये गन्धर्व राजा वही है ना जिसने 18 राजाओं के बिच सबसे अधिक बल पेश करके मनु राज्य की राजकुमारी रुपरेखा को स्वयमवर मे जित लिया था. सेनापति जी ने राजा विश्वजीत से कहाँ जी हा महाराज आपने सही पहचाना. फिर महाराज विश्वजीत इस बात पर मुस्कुराये और आगे कहने लगे कोई बात नहीं सेनापति आप तुरंत अपनी सेना को तैयार कर लीजिये, सेना का नेतृत्व हम स्वयम करेंगे. महाराज आप स्वयम सेनापति सगतित हो कर पुश पड़े.

हा सेनापति जी और आपको मालूम है ना हमें ज्यादा सवाल सुनने की आदत नहीं है जितना आप से कहाँ जाए उतना ही करें, महाराज विश्वजीत ने कड़े सगाब्दो मे सेनापति से कहाँ और तुरंत सेनापति अपने कमरे मे जाकर युद्ध की तयारिया करने लगे, महाराज विश्वजीत के स्वयम युद्ध मे जाने की खबर सुन कर राज्य मे खलबली सी मच गई थी, सभी को घबराहट होने लगी थी की महाराज ये क्या करने वाले है ये तो बहुत ही बड़ी गलती है और ऊपर से वो राजा गंधर्व बहुत क्रूर और दुष्ट भी है यदि हमारी सेना उनसे हार जाती है तो वह दुष्ट राजा हमारे पुरे राज्य को ही बर्बाद कर देगा.

परन्तु महाराज विश्वजीत के आगे आकर यह बात कहने की किसी मे भी हिम्मत नहीं थी सब मुँह बंद करके उन्हे युद्ध के लिए जाते हुए देख रहे थे, वही दूसरी तरफ आपस मे मंत्री मंडल का यह कहना था की राजा के इस फैसले से राज्य का विनाश निश्चित है, यहाँ तक की कई लोगो ने तयारी कर ली थी की सेना की हार की खबर आते ही वह राज्य छोड़ कर भाग जाएगे.

वही दूसरी तरफ राजा विश्वजीत ने युद्ध मे जाने के लिए विजय तिलक करवाया और उसके बाद वह युद्ध के लिए शीग्र ही निकल गए, कुश समय के बाद युद्ध भूमि मे पहुंचने के वक़्त एक तरफ महाराज विश्वजीत खड़े थे (वही 14-साल का राजा) जिसने पहली बार युद्ध भूमि मे कदम रखे थे, और उसके पीछे उसकी सेना 1000 गुडसवार जो की महाराज विश्वजीत के ठीक पीछे खड़े थे, और उनके पीछे 25000 सैनिक, और उन 25000 सेनिको के ठीक बीचमे कुश कुश अंतराल पर 500 हाथी सवार थे, उनके पीछे 10000 सेनिको ने धनुष बाण पकड़ रखे थे, उनके आगे की श्रेणी मे सेनिको के हाथो मे भाले और तलवारे थी.

महाराज विश्वजीत ने सेना को कुश इस तरह से खड़ा किया था, ताकि वह कम से कम सेनिको को गवाए एवम कुशलता से युद्ध लड़ सके और जीत सके क्योंकि ये बात तो हर किसी को मालूम होती है की युद्ध मे बिना जान गवाएं युद्ध जितना तो नामोमकीन होता है महाराज विश्वजीत की सेना के ठीक सामने राजा गंधर्व खड़े थे, सात फुट तीन इंच का गठिला शरीर चेहरे पर घनी रोफदार मुछे बहुत ही ज्यादा मजबूत और चोड़े कंधे और भारी भरकम मोटे मोटे हाथ सफ़ेद घोड़े पर सवार और उनके ठीक पीछे उनकी सेना खड़ी थी. लगभग 150000 सैनिक उनके साथ 15000 से भी ज्यादा घुड़सावर और साथ ही 1000 हाथी-सवार थे.

राजा गंधर्व महाराज विश्वजीत की तरफ देख कर जोर जोर से हस्ते हुए कहने लगे, मुझे समझ नहीं आ रहा है की मुझे तुम्हारी उमर देख कर हसीं आ रही है या तुम्हारी ये छोटी सी मुठ्ठी बराबर सेना देखकर, बालक तुम्हारे अभी खेलने खुदने के दिन थे और तुम यहाँ लड़ने आ गए अपने प्राण से हाथ धोने आ गए, तुम्हारे लिए बेहतर यही होता की तुम कीसी और को इस युद्ध के लिए भेजो, क्या तुम्हारे राज्य मे ऐसा कोई भी बड़ा और मुजसा युद्धवीर नहीं बचा जो हमसे मुकाबला करने यहाँ आ सके सब के सब भाग गए क्या या डर के मरे छुप गए है कही, ऐसा कह कर राजा गंधर्व जोर जोर से अटहास करने लगे.

उसकी ऐसी बात सुन कर महाराज विश्वजीत भी खूब हसने लगे और खूब जोर जोर से हस्ते हुए अचानक ही अकेले अपना घोड़ा दौड़ाते हुए राजा गंधर्व की सेना की सेना की तरफ बढ़ने लगे, यह सब देख कर राजा गंधर्व चौक गया और उसे कुश भी नहीं समझ आया की ये आखिर मासूम सा बालक क्या करना चाहता था, और आधी दुरी तक आ कर युद्ध भूमि के बीचो भींच पहुंच कर महाराज विश्वजीत अपने घोड़े से खुद कर उतर गए, और वही खड़े होकर जोर से ललकार कर कहने लगे, राजा गंधर्व तुम वही बाहुबली राजा होना जिसने 18 राजाओं को हरा कर स्वयमवर जीता था.

और अब तक तुम अनगिनत युद्ध भी लड़ चुके हो, सुना है तुम्हारी ताकत के आगे बड़े बड़े शूरवीर और सुरमा भी पानी भरते है क्या तुम्हारे अंधर अब भी उतनी शक्ति बाकि है या फिर तुम अब बूढ़े हो चुके हो राजा विश्वजीत ने राजा गंधर्व का उपहार करते हुए कहाँ..............


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