Rare book, विशेष किताबें भाग-3
कबूतर का घोंसला
एक बार शिक्षक नवनीत शाम के समय विद्यालय के बाहर शिष्यों के साथ बेठे थे। तभी वहां एक कबूतर का जोड़ा उड़ता हुआ आ गया। उन्हें देख कर शिक्षक नवनीत को एक कहानी याद आई और उन्होंने शिष्यों को कहानी सुनाना शुरू किया।
एक पेड़ पर एक कबूतर और कबूतरी रहते थे। कुछ समय बाद कबूतरी ने उसी पेड़ की टहनी पर तीन अंडे दिए। एक दिन कबूतर और कबूतरी दोपहर के समय खाना ढूंढते हुए कुछ दूर निकल गये। तभी कहीं से एक लोमड़ी आ गयी। वह भी भोजन की तलाश में पेड़ पर चढ़ी। जहां उसे कबूतर के अंडे मिल गये और वो अंडों को खा गयी।
जब कबूतर का जोड़ा वापस आया तो अंडे न पा कर बहुत परेशान हो गया। दोनों को बहुत बुरा लग रहा था। उनका मन टूट सा गया। तभी कबूतर ने निश्चय किया कि अब वह घोंसला बनाएंगा। ताकि फिर कभी उसके अंडे कोई न खा जाए।
कबूतर ने अपने निर्णय अनुसार तिनके इकट्ठे कर के घोंसला बनाना शुरू किया। पर उसे एहसास हुआ कि उसे तो घोंसला बनाना आता ही नहीं है। तब उसने मदद के लिए जंगल के दूसरे पक्षियों को बुलाया।
सभी पक्षी उसकी मदद के लिए आ गये आर उन्होंने कबूतर के लिए घोंसला बनाना शुरू किया। पक्षियों ने अभी कबूतर को सिखाना शुरू ही किया था कि कबूतर ने बोला कि अब वो घोंसला बना लेगा। उसने सब सीख लिया है।
सभी पक्षी यह सुन कर वापस चले गए। अब कबूतर ने घोंसला बनाना शुरू किया। उसने एक तिनका इधर रखा एक तिनका उधर। उसे समझ आया कि वह अभी भी कुछ नही सीखा है। उसने फिर से पक्षियों को बुलाया। पक्षियों ने आ कर फिर घोंसला बनाना शुरू किया। अभी आधा घोंसला बना ही था कि कबूतर जोर से चिल्लाया, तुम सब छोड़ दो अब मैं समझ गया हूं यह कैसे बनेगा।
इस बार पक्षियों को बहुत गुस्सा आया। सारे पक्षी तिनके वहीं छोड़ कर चले गये। कबूतर ने फिर कोशिश की पर उस से घोंसला नहीं बना।
कबूतर ने तीसरी बार पक्षियों को बुलाया, लेकिन इस बार एक भी पक्षी मदद के लिए नहीं आया और आज तक कबूतर को घोंसला बनाना नहीं आया।
शिक्षा
बच्चों, इस कहानी ने बताया कि हमें जो काम नहीं आता हो, उसे किसी की मदद से पूरी तरह सीख लेना चाहिए। जो काम नहीं आता हो उसे जबरदस्ती करने का दिखावा नहीं करना चाहिए, क्योंकि मदद करने वाला व्यक्ति एक या दो बार तो आपकी मदद करेगा, लेकिन हर बार नहीं। इसलिए, किसी की मदद का सम्मान करते हुए वह काम पूरी निष्ठा के साथ सीखना चाहिए।
घोंसला
उमा के घर के पीछे एक बबूल का पेड़ था। उमा अपने कमरे की खिड़की से उसे देखती रहती थी। एक दिन उसने देखा कि एक चिड़िया बार-बार आ-जा रही है। वह अपनी चोंच में छोटे बड़े तिनके लाती है, उन्हें वह पेड़ की डाल पर रखती जाती है। उमा ने देखा कि एक बड़ा सुंदर घोंसला बनाना शुरू हो गया है। उसने अपनी माँ से पूछ–माँ! यह चिड़िया कैसा सुंदर घोंसला बना रही है, पर हमारे घर में जो चिड़िया घोंसला बनाती है, वह इतना अच्छा नहीं होता। ऐसा क्यों है?
माँ ने कहा :– बेटी! पेड़ पर तुम जो घोंसले देख रही हो, वह बया नाम की चिड़िया का है। बया घोंसला बनाने के लिए बड़ी प्रसिद्ध है। इस के घोंसले बड़े ही सुंदर होते हैं। इसका कारण यह है कि यह जी जान से अपने काम में जुटी रहती है। यह अपने काम को पूरी मेहनत और लगन के साथ करती है, इससे इसका काम अच्छा होता है।
यह कहकर माँ तो रसोई में खाना बनाने चली गई। अब उमा को शरारत सूझी। उसने खिड़की में से एक डंडा डाला। डंडे से धीरे-धीरे हिला कर घोंसला गिरा दिया। इतने में दाना चुग कर चिड़िया वापस आई, उसने देखा कि घोंसला टूटा पड़ा है। कुछ तिनके बिखर गए हैं, कुछ हवा में उड़ गए हैं। अपनी मेहनत यों बेकार होती देख बया को बड़ा दुख हुआ। वह थोड़ी देर तक चिं-चिं करके रोती रही। फिर सोचा कि रोने से क्या होता है। रोते रहने से तो कोई काम पूरा हो नहीं सकता। इससे अच्छा तो यह है कि मैं दोबारा से ही घोंसला बनाना शुरू करूं। अतः वह फिर अपने काम में जुट गई।
दूसरे दिन बया जब खाना खाने गई तो उमा ने फिर उसका घोंसला गिरा दिया। उसने यह न सोचा कि इसमें उसके कितनी परेशानी और दुख होगा। दो दिन तक यही होता रहा। बया घोंसला बनाती और उसके जरा हटने पर उमा उसे तोड़ डालती। एक दिन जब उमा घोंसला गिरा रही थी, तो उसकी माँ ने उसे देख लिया।
उन्होंने कहा:- "उमा तुम यह क्या कर रही हो? किसी को सताते नहीं है, किसी के काम को बिगड़ते नहीं हैं ? बया चिड़िया है तो क्या तुम्हारे इस काम से उसे बड़ी कठिनाई होती है। तुम्हें उसकी सहायता करनी चाहिए, उसे तंग नहीं करना चाहिए। मनुष्य हो या पशु पक्षी, किसी को परेशान नहीं करते।
पर माँ की बात का उमा पर कोई असर नहीं हुआ। जैसे ही वह कमरे के बाहर जाती तो वह डंडा उठाकर घोंसला गिराने लगती। पर बया थी कि बार-बार घोंसला बनाया जाती थी। वह सोचती थी, कभी तो उसकी मेहनत सफल होगी।
माँ ने देखा उमा गलत काम करती जाती है। वह उसकी बात नहीं मानती। उन्होंने एक उपाय सोचा। माँ ने उमा के सामने उसकी गुड़िया तोड़ डाली। उस गुड़िया को उमा बहुत प्यार करती थी। प्यारी गुड़िया के दो टुकड़े देखकर वह बहुत दुखी हुई। वह फूट-फूट कर रोने लगी।
माँ ने कहा:- मैं तुम्हारी गुड़िया जोड़ दूंगी पर तब जबकि तुम भी बया का घोंसला बनाकर आओगी। अब तक तो उसका पूरा घोंसला बन जाता। तुमने उसकी मेहनत बेकार कर दी।
माँ की बात सुनकर उमा दौड़कर कमरे से निकली। उसने अपने घर के बगीचे से तिनके और टूटी घास बीनी। वह पिछवाड़े से निकल कर जल्दी से पेड़ के पास पहुंची। वह सोच रही थी कि मैं अभी मिनटों में घोंसला बनाकर तैयार किये देती हूँ। वह डाल पर तिनके रखती, घास से उन्हें लपेटती जाति, पर तिनके थे कि डाल पर टिकते ही नहीं थे। वह बार-बार कोशिश करती, पर सब बेकार जाती। अंत में वह खीजकर पेड़ में के नीचे बैठ कर रोने लगी।जिसे वह अपना छोटा सा काम समझ रही थी, वह तो बड़ा कठिन काम निकला। थोड़ी देर बाद उसे लगा कि कोई उसके सिर पर हाथ फिरा रहा है। उमा ने पीछे मुड़कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी।
वे कह रही थी –"कोई काम बिगाड़ना तो सरल है पर बनाना कठिन होता है। यदि कर सकती हो तो दूसरों की सहायता करो। किसी को न सताओ और किसी और न उसका काम बिगाड़ो"। उमा को लगा कि माँ की बात न मानकर उसने कितनी बड़ी भूल की है। अब वह सदैव उनकी हर आज्ञा मानेगी।
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