अलिफ़ लैला उच्च गुणवत्ता मे, Alif Laila UHD
मित्रो एक बार फिर आप सभी का स्वागत है हमारे ब्लॉग मे जिसमे हम आप सभी के लिए हमेशा से ही कुछ नया लाने या करने की कोशिश करते है
तो इसी कड़ी मे हम लाये है अलिफ़ लैला की कहानियाँ उच्च गुणवत्ता मे जैसाकी आप सभी लोग जानते है की कहानियो की श्रींखला मे कुश श्रींखलाए ऐसी है जो पुरानी होने के बावजूद हमेशा नई है, आप कभी भी इन श्रींखलाओ को क्यों ना शुरू करें ये हमेशा नयापन का एहसास देती है
ऐसी ही एक श्रींखला है अलिफ़ लैला जो लोक कथाओं का ऐसा संग्रह है जिसकी लोकप्रियता का मुकाबला पंचतंत्र की कथा मला के आलावा शायद कोई कथा मला नहीं कर सकती
अरबी साहित्य के लेखक प्रोफेसर ए निकल के कथनानुसार यूरोप वासियो के कुरान से भी अधिक जिस अरबी साहित्य को जाना जाता है वो अल्फ लैला या अलिफ़ लैला ही है अरबी मे अल्फ का मतलब है 1000 और लैला का अर्थ है रात इस लिहाज से इसका हिन्दी नाम सहस्त रजनीचरित्र बहुत उपयुक्त अनुवाद है और आप सभी को ये तो बताने की बिलकुल जरुरत नहीं है की इसका अंग्रेजी नाम 1001 नाइट्स है
और लोक कथा पर आधारित बहुचर्चित tv श्रीखला है अलिफ़ लैला
जो की 1993 से 1997 तक दूरदर्शन पर प्रसारित की गई थी तो सोचिए कितनी लाजवाब होंगी ये कहानियाँ जो इतने सालो तक 90s मे सबके दिलो पर राज करती थी फिर चाहे वो हो बच्चे बुजुर्ग या जवान, तो इसी सील सिले को आगे बढ़ाते हुए हम आरम्भ करते है 90s का जनामाना tv show श्रीखला अलिफ़ लैला उच्च गुणवत्ता मे
शीर्षक शहरयार और शाहजहाँ
फारस देश भी भारत और चीन के समान था और कई नरेश उनके अधीन थे वहा का राजा महाप्रतापी और बड़ा तेजस्वी था और न्याय प्रिय होने के कारण प्रजा को प्रिय था बादशाह के दो बेटे थे जिसमे बड़े बेटे का नाम शहरयार और छोटे बेटे का नाम शहजमा था दोने राज कुमार गुणवान, वीर धीर और शील वान थे जब बादशाह का देहांत हुआ तो शहज्यादा शहरयार गद्दी पर बैठा.
शहरयार ने अपने छोटे भाई को जो उसे बहुत मानता था तताँव देश का राज्य सेना और खजाना दिया, शहज़मा अपनी बड़े भाई की आज्ञा मे तत्पर रहा और देश के प्रभन्द के लिए समरकंथ को जो संसार के सभी शहरों मे उत्तम और बड़ा था अपनी राजधानी बना कर आराम से रहने लगा, जब उन दोनों को अलग हुए 10-वर्ष हो गए तो बड़े भाई ने चाहा किसी को भेज कर उसे अपने पास बुलाए उसने अपने मंत्री को उसे बुलाने की आज्ञा दी.
मंत्री यह आज्ञा पा कर बड़े धूम धाम से विदा हुआ, जब वो समरकंद शहर के पास पंहुचा तो शहजमा यह समाचार सुन कर उसकी अगवानी को सेना लेकर अपनी राजधानी से रवाना हुआ और शहर के बाहर पहुंचकर मंत्री से मिला वह उसे देख कर बहुत प्रसन हुआ शहज़मा अपने भाई शहयार का कुशल शिन पुशने लगा, मंत्री ने शहज़मा को दंडवत कर उसके भाई का हाल सुनाया वह मंत्री बादशाह शहरयार का परम आज्ञा करी था और उससे प्रेम करता था शाहजमा ने उससे कहाँ भाई मेरे अग्रज ने मुझे तुम्हे लेने को भेजा इस बात से मुझे अत्यंत हर्ष हुआ उनकी आज्ञा मेरे शिरोधार्य है अगर ऊपर वाले ने चाहा तो 10-दिन मे यात्रा की तयारी करके प्रशासन मे अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर तुम्हारे साथ चलुगा, तुम्हारे और तुम्हारी सेना के लिए खाने पिने का सभी प्रभन्ध यही हो जाएगा अतः तुम इसी इस्थान पर ठहरो
फिर उसी इस्थान पर खाने पिने की व्यवस्था करदी गई और वो वहा रहे इस अवसर पर बादशाह ने यात्रा की तैयारियां की और अपनी जगह अपने विश्वास पात्र मंत्री को नियुक्त किया एक दिन वो अपनी बेगम से जो उसे अति प्रिय थी उससे विदा ली और अपने सेवको और मुसाहिबो को लेकर समरकंद से चला और अपने खेमे मे पहुंच कर मंत्री के साथ बात चित करने लगा आधी रात होने पर उसकी इच्छा हुई की एक बार बैगम से और मिल आऊ, वो सबसे छुप कर महल मे अकेला गुसा, बैगम को उसके आने का संदेह तक ना था वो अपने तुच्छ और कुरुक सेवक के साथ सो रही थी शहज़मा सोच कर आया था की बैगम उसे देख कर अति प्रसन्न होंगी परन्तु उसे दूसरे मर्द के साथ सोते देखकर एक षण के लिए उसे काठ मार गया थोड़ा संभलने पर वो सोचने लगा कही मुझे दृष्टि ब्रम्ह तो नहीं हुआ लेकिन भली भाती देखने पर भी जब वही बात पाई तो सोचने लगा यह केसा अनर्थ है की मे अभी समरकंध नगर की रक्षा-परिधि के बाहर भी नहीं निकला और ऐसा कर्म होने लगा वह क्रोधा अग्नि मे जलने लगा और उनसे तलवार निकाल कर ऐसे चलाई की दोनों के सर काटकर पलग के निचे आ गए इसके बाद दोनों शवों को पीछे गढ़े मे फेक कर वह अपने खेमे मे वापस आ गया.
उसने किसी से रात की बात ना बताई दूसरे दिन प्रातः ही सेना चल पढ़ी उसके साथ के सभी लोग तो हसीं ख़ुशी रास्ता काट रहेथे किन्तु शाहजमा अपने बेगम के पाप कर्मो को याद करके दुखी रहता था और दिनों दिन उसका मुँह पीला पड़ता था उसकी सारी यात्रा इसी कष्ट मे बीती जब वह अपनी भाई की राजधानी के समीप पंहुचा तो शहरयार ने अपने सारे दरबारियों को लेकर शाहजमा के स्वागत के लिए आया जब दोनों एक दूसरे के पास पहुंचे तो दोनों अपने अपने घोड़े से उतर कर गले मिले और कुश देर तक एक दूसरे की कुशलशेम पुश कर बड़े समाहरोह पूर्वक रवाना हुए शहरयार ने शहजमा को उस महल मे ठहराया जो उसके लिए पहले से सजाया गया था.
फिर शहरयार ने भाई से स्नान करने को कहाँ तत पशात शहज़मा ने स्नान करके नए कपडे पहने और दोनों भाई महल के मंच पर भेठ कर देर रात तक वार्तालाब करते रहे सारे दरबारी दोनों बादशाओ के सामने अपने अपने उपयुक्त स्थान पर खड़े रहे भोजनों-परांत भी दोनों बादशाह देर तक बाते करते रहे जब रात बहुत बीत गई तो शहरयार अपने भाई को आतींत्य ग्रह मे शोड कर अपने महल को चला गया, शहज़मा फिर शोकाकुल होकर अपने पलग पर आंसू बहता हुआ लौटता रहा भाई के सामने वह अपना दुःख शुपाए रहा लेकिन अकेला होते ही उसपर वही दुःख सवार हो गया और उसकी पीड़ा ऐसी बढ़ गई जैसे उसकी जान लेकर ही शोड़ेगी वह एक षण के लिए भी अपनी बैगम का दुष्कर्म भुला नहीं पाता था, वह अक्सर हाय हाय कर उठता और हमेशा ठंडी सांसे भरा करता उसे रातो की नींद नहीं आती थी इसी दुःख और चिंता मे उसका शरीर धीरे धीरे कमजोर होने लगा
हमारे साथ बने रहे
(to be continued...)
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