Akbar Birbal, अकबर बीरबल
आज के ज़माने मे व्यक्ति इतना मसलूक(व्यस्त) है कि ख़ुशी गम हसना मुस्कराना मानो भूल ही गया हो टीवी, थिएटर आदि पर बोर करने वाले कार्यक्रम और फिल्मो से वह ऊब चूका है. वह चाहता है कुश नया मनोरंजन मिले जो कुश पारम्परिक और अच्छा हो. तो इसी उलझन को दूर करते हुए हम लाए है आप के लिए ये आर्टिकल
Akbar Birbal, अकबर बीरबल
हम लोग जब भी समझदारी सूजबुज और हाजिर जवाबी कि बात करते है तो हमारे दिमाग़ मे कुश नाम आते है जीनमे से एक है बीरबल, वही अकबर और बीरबल कि नोक झोक कौन नहीं जानता ऐसा माना भी जाता है कि बीरबल अकबर के बेशकीमती रत्नो मे से एक था, अकबर बीरबल के ऐसे कई किस्से और कहानियाँ है अकबर बीरबल के किस्से हमेशा से शिक्षा प्रद और प्रेणादायक रहे है बीरबल ने अपनी सूजबुज और चतुराई से कई बार दरबार मे आए पेचीदा(उलझे हुए) मामलो को सुलजाया है उसके साथ ही बादशाह अकबर के द्वारा दी गई चुनौतीयों को हस्ते हुए संभाला और उनका हल दिया, बले ही ये किस्से कहानियाँ पुरानी हो लेकिन आज भी इनका महत्व कायम है अगर आप भी चाहते है कि किसी भी कठिन से कठिन समस्या का निधान केसे करें या अपने शुबचिंतको को बताना चाहते है या अपने बच्चों को सीखना चाहते है तो अकबर बीरबल के किस्सों से बढ़िया कुश नहीं. हमारे कहानियो और किस्सों के इस आर्टिकल मे जो बच्चों के साथ साथ बड़ो को भी सही दिशा प्रदान करेगा चलिए प्रारम्भ करें बिना किसी विलम्ब के.
1) जोरू का भाई - बादशाह अकबर के साले साहब हर बार बीरबल से मात खाने के बाद भी दिवान बनने के सपने देखते रहते थे और इसके लिए वो अपनी बहन से कहते और बहन अपने मिया यानि बादशाह से. अब जोरू का भाई होने के कारण बादशाह को हर बार उसका नया इम्तेहान लेना पड़ता था. इस बार भी जब जोरू के भाई ने स्वयं को दिवान बनाने के लिए कहाँ तो बादशाह ने उसे एक कोयले का टुकड़ा देते हुए कहाँ 'इस कोयले के टुकड़े को अगर तुम तीन दिन के अंदर दस हजार रूपए मे बेच दोगे तो मे तुम्हे दिवान नियुक्त कर दुगा.
यह सुन कर साले साहब मायूस होकर कोयले के टुकड़े को देखने लगे. फिर वोले हुजूर, यह तो नाइंसाफ़ी है, आप बीरबल को अपने से जुदा नहीं करना चाहते, इसीलिए मुझे ऐसा काम सौपा जो संभव नहीं है. इस कोयले के टुकड़े को भला कौन दस हजार मे खरीदेगा. 'ठीक है, यह कोयले का टुकड़ा मुझे वापस कर दो, बादशाह ने कहाँ, साले सहाब ने कोयले का टुकता बादशाह को लोटा दिया. कुश देर बाद दरबार मे बीरबल भी आया. बादशाह ने वो कोयले का टुकड़ा बीरबल को देकर उससे कहाँ तुम्हे इसे बेच कर तीन दिन मे दस हजार कमाना है. बीरबल ने कोयले का टुकड़ा ले लिया और तीन दिन मे बेचने का वादा किया
बीरबल ने उस कोयले को पीस लिया, फिर उसे छोटी सी हिरे कि डिब्बी मे रखा, उस डिब्बी को उस से बड़ी सोने कि डिब्बी मे रखा और उसे उससे बड़ी चांदी कि डिब्बी मे. इस तरह उसने अलग अलग सात डिब्बीयो मे रखा.
उसके बाद उसने पठान का बेस धारण किया और बड़े बाजार मे जा कर मुनादी करवाई कि बगदाद से एक सुरमे वाला आया है जिसके पास ऐसा जादुई सुरमा है जिसे आँखो मे डालने से मरे हुए माँ बाप, पूर्वज आदि दिखाई देने लगते है. यह सुन कर कई लोगो मे जिज्ञासा हुई कि वे अपने मृत परिजनों को देखे. लोग बीरबल के पास आने लगे उसने सुरमा आँख मे डालने कि कीमत 500 रूपये रख्खी, जो भी आँखो मे सुरमा डलवाने आता बीरबल उससे कह देता यदि तुम्हारे मन मे चोर है तो वो तुम्हे नहीं दिखाई देंगे.
सभी लोग वहा बारी बारी आते सुरमा लगवाते और जब उन्हें उनके माँ बाप नहीं दीखते थे, सरेआम उनकी बेज्जती ना हो इसीलिए वे कह देते थे उन्हें उनके माँ बाप दिखे थे. इसी तरह बीरबल ने बीस लोगो कि आँखो मे सुरमा लगाया और दस हजार रूपए एकत्र कर लिए. उसका काम ख़तम हो गया तो वो दरबार मे लोट आया और बादशाह को दस हजार रूपये सोप दिए.
बादशाह अकबर जानते थे कि बीरबल ने सचमुच कोयले को बेच कर ही यह दस हजार रूपए एकत्र किये है क्यों कि उन्होंने अपने जासूस उसके पीछे लगाए थे. बादशाह अकबर ने अपने साले कि तरफ देखते हुए कहाँ 'देख इसे कहते है अलग, यदि कुश करने कि इच्छा हो तो कुश भी नमोमकीन नहीं है.
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