संत की खेती

संत की खेती


एक बार की बात है, एक संत गेहूँ माँगने के लिए एक किसान के खेत में गए।

वह किसान नास्तिक था। उसने कहा- "मैं दिन रात का परिश्रम कर आजीविका कमाता हूँ। पहले खेत में हल जोतता हूँ, फिर बीज बोता हूँ, खाद देता हूँ। बार बार पानी से सींचता हूँ, घास फूस निकालता हूँ, पशुओं से रक्षा करता हूँ।

इस प्रकार लगातार मेहनत करने पर जब फसल तैयार होती है, तब अन्न पाता हूँ। और तुम बिना मेहनत किए ही पेट भरना चाहते हो?

संत मुस्कुराए और बोले- बेटा! मैं भी एक किसान हूँ। पर मेरी खेती किसी और ही प्रकार की है।

मैं मनुष्य के हृदय रूपी खेत में, सत्संग रूपी बैलों की सहायता से, विवेक रूपी हल जोतता हूँ और भक्ति रूपी बीज बोता हूँ।

सत्कर्म रूपी खाद डाल कर, प्रभु प्रेम रूपी जल से सींचता हूँ। त्याग की खुर्पी से, अवगुण और अज्ञानता की घास निकालता हूँ, वासनाओं रूपी पशुओं से रक्षा करता हूँ और अन्त में परमात्मा रूपी फसल काटता हूँ।

मैं कहता हूं कि हम सबको भी ऐसी ही खेती करनी चाहिए, कि उन संत की तरह हम भी कह सकें कि "मैं भी किसान ही हूँ।" पागल—-पवन

नारद मुनि जहां भी जाते थे, बस ‘नारायण, नारायण’ कहते रहते थे। नारद को तीनों लोकों में जाने की छूट थी। 


वह आराम से कहीं भी आ-जा सकते थे। 


एक दिन उन्होंने देखा कि एक किसान परमानंद की अवस्था में अपनी जमीन जोत रहा था। नारद को यह जानने की उत्सुकता हुई कि उसके आनंद का राज क्या है? 


जब वह उस किसान से बात करने पहुंचे, तो वह अपनी जमीन को जोतने में इतना डूबा हुआ था, कि उसने नारद पर ध्यान भी नहीं दिया।दोपहर के समय, उसने काम से थोड़ा विराम लिया और खाना खाने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठा। उसने बर्तन को खोला, जिसमें थोड़ा सा भोजन था। 


उसने सिर्फ ‘नारायण, नारायण, नारायण’ कहा और खाने लगा। आप जिस पल जीवन के एक आयाम से दूसरे आयाम में जाते हैं उस समय अगर आप सिर्फ अपनी जागरूकता कायम रख पाएं, तो आपको मुक्ति मिल सकती है।


किसान अपना खाना उनके साथ बांटना चाहता था मगर जाति व्यवस्था के कारण नारद उसके साथ नहीं खा सकते थे।नारद ने पूछा- ‘तुम्हारे इस आनंद की वजह क्या है?’ 


किसान बोला- ‘हर दिन नारायण अपने असली रूप में मेरे सामने आते हैं। मेरे आनंद का बस यही कारण है।’ 


नारद ने उससे पूछा- ‘तुम कौन सी साधना करते हो?’ 


किसान बोला- ‘मुझे कुछ नहीं आता। मैं एक अज्ञानी, अनपढ़ आदमी हूं। बस सुबह उठने के बाद मैं तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं। 


अपना काम शुरू करते समय मैं तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं। अपना काम खत्म करने के बाद मैं फिर तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं।जब मैं खाता हूं, तो तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं और जब सोने जाता हूं, तो भी तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं।’ 


नारद ने गिना कि वह खुद 24 घंटे में कितनी बार ‘नारायण’ बोलते हैं। वह लाखों बार ऐसा करते थे। मगर फिर भी उन्हें नारायण से मिलने के लिए वैकुण्ठ तक जाना पड़ता था, 


जो बहुत ही दूर था। मगर खाने, हल चलाने या बाकी कामों से पहले सिर्फ तीन बार ‘नारायण’ बोलने वाले इस किसान के सामने नारायण वहीं प्रकट हो जाते थे।नारद को लगा कि यह ठीक नहीं है, इसमें जरूर कहीं कोई त्रुटि है। वह तुरंत वैकुण्ठ पहुंच गए,


और उन्होंने भगवान विष्णु से पूछा- ‘मैं हर समय आपका नाम जपता रहता हूं, मगर आप मेरे सामने नहीं प्रकट नहीं होते। 


मुझे आकर आपके दर्शन करने पड़ते हैं। मगर उस किसान के सामने आप रोज प्रकट होते हैं और वह परमानंद में जीवन बिता रहा है!’ 


विष्णु ने नारद की ओर देखा और लक्ष्मी को तेल से लबालब भरा हुआ एक बर्तन लाने को कहा।


उन्होंने नारद से कहा- ‘पहले आपको एक काम करना पड़ेगा। तेल से भरे इस बर्तन को भूलोक ले जाइए। मगर इसमें से एक बूंद भी तेल छलकना नहीं चाहिए।इसे वहां छोड़कर आइए, फिर हम इस प्रश्न का जवाब देंगे।’ नारद तेल से भरा बर्तन ले कर भूलोक गए, उसे वहां छोड़ कर वापस आ गए और बोले, ‘अब मेरे प्रश्न का जवाब दीजिए।’


भगवान विष्णु ने पूछा- ‘जब आप तेल से भरा यह बर्तन लेकर जा रहे थे, तो आपने कितनी बार नारायण बोला?’ 


नारद बोले, ‘उस समय मैं नारायण कैसे बोल सकता था? आपने कहा था कि एक बूंद तेल भी नहीं गिरना चाहिए, इसलिए मुझे पूरा ध्यान उस पर देना पड़ा। 


मगर वापस आते समय मैंने बहुत बार ‘नारायण’ कहा।’भगवान विष्णु बोले- ‘यही आपके प्रश्न का जवाब है। उस किसान का जीवन तेल से भरा बर्तन ढोने जैसा है जो किसी भी पल छलक सकता है। 


उसे अपनी जीविका चलानी पड़ती है, उसे बहुत सारी चीजें करनी पड़ती हैं। मगर उसके बावजूद, वह नारायण बोलता है। 


जब आप इस बर्तन में तेल लेकर जा रहे थे, तो आपने एक बार भी नारायण नहीं कहा। यानी यह आसान तब होता है जब आपके पास करने के लिए कुछ नहीं होता।’


जो मनुष्य अपनी अत्यधिक व्यस्तता के बावजूद भी प्रभु की आराधना के लिए समय देता है , विपत्ति के आलावा अच्छे समय में ईश्वर को नहीं भूलता है वह व्यक्ति ही ईश्वर का सानिध्य पाने का अधिकारी बनता है !


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