एक दिन, एक राहगीर एक तपस्वी ऋषि के आश्रम में पहुंचा। ऋषिवर को प्रणाम करने के बाद दोनों के बीच वार्ता आरंभ हुई।
राहगीर: "हे देव! मैं बड़ी उलझन में हूं। समझ नहीं आता कि किसकी पूजा करूं और किसकी नहीं। मेरा मन कभी इधर दौड़ता है, तो कभी उधर। मुझे डर लगता है कि यदि एक को पूजूं तो कहीं दूसरा नाराज़ न हो जाए। क्या किसी एक को चुनना अनिवार्य है?"
ऋषिवर: "वत्स, तुम्हारा प्रश्न बहुत सुन्दर है। यह उलझन जीवन में अनेक लोगों को आती है, और यह स्वाभाविक है।"
राहगीर: "क्या आपके जीवन में भी ऐसी उलझन आई थी?"
ऋषिवर: "हां, बिल्कुल। मैं भी इस द्वंद्व से गुजरा हूं। एक बार, गुरुकुल में मेरे और एक अन्य शिष्य के सामने ऐसी ही स्थिति आई। हमारे गुरुदेव ने हमें 7 दिन का समय दिया और आदेश दिया, '50 फुट गहरा गड्ढा खोदकर जो पानी निकले, उसमें से एक लोटा जल लेकर आओ।' हम दोनों को अलग-अलग दिशाओं में भेज दिया गया।
सात दिन बाद जब हम लौटे, तो मेरे मित्र का लोटा जल से भरा था, जबकि मेरा खाली। गुरुदेव ने मुझसे पूछा, तो मैंने कहा, 'गुरुदेव, मैंने अलग-अलग स्थानों पर 100 फुट गड्ढे खोद डाले, पर पानी नहीं मिला।' गुरुदेव मुस्कुराए और बोले, 'वत्स, तुमने दस स्थानों पर अपनी ऊर्जा व्यर्थ की, इसलिए सफलता नहीं मिली। तुम्हारे मित्र ने एक ही स्थान पर पूरी निष्ठा से प्रयास किया और उसे 50 फुट पर ही पानी मिल गया।'"
गुरुदेव ने समझाया:
**"सारा संसार एक ही परम शक्ति का रचाया हुआ है। सब उसी की माया है। अलग कोई नहीं है। लेकिन अन्तर्मन में एक छवि आवश्यक है। जब आंखें बंद करो तो बस एक ही छवि दिखनी चाहिए।
आदर सबका करो, किसी का अनादर मत करो। लेकिन निष्ठा एक में होनी चाहिए। उदार बनो, संकीर्ण नहीं, क्योंकि उदारता ही जीवन है और संकीर्णता मृत्यु। जैसे अर्जुन को अपने लक्ष्य पर केवल मछली की आंख दिखती थी, वैसे ही तुम्हारा ध्यान एक ही ईष्ट पर केंद्रित होना चाहिए।
राहगीर: "गुरुदेव, मुझे किसे अपने अन्तर्मन में बिठाना चाहिए?"
गुरुदेव: "वत्स, इसके लिए तू स्वतंत्र है। जो तुझे सबसे अधिक प्रिय हो, जो छवि तुम्हें आंखें बंद करने पर सहज ही दिखे, उसे ही अपने अन्तर्मन में स्थान दे। परंतु याद रहे, आदर सबका करना, क्योंकि सब एक ही परम शक्ति की माया है।""
राहगीर: "हे गुरुवर, कोटि-कोटि प्रणाम। अब मुझे अपने जीवन की दिशा मिल गई।"
*सीख:*
*"प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाए।*
*एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाए।"*
एक निष्ठा के साथ अपने ईष्ट की परम आदर के साथ साधना करें, पूजा अर्चना करें, भक्ति करें लेकिन उदारता से सभी का सम्मान करना न भूलें।
----
कहते है की इस कहानी से ओर भी कई बातें सीखने को मिलती है। 👇🏻
1. *एकनिष्ठता की महत्ता* – जिस प्रकार गड्ढे खोदने वाले शिष्य ने एक ही स्थान पर ध्यान केंद्रित किया, वैसे ही हमें अपने ईष्ट, लक्ष्य या मार्ग पर अडिग रहना चाहिए।
2. *आदर सबका, निष्ठा एक की* – हमें सभी धर्मों, मान्यताओं और व्यक्तियों का सम्मान करना चाहिए, लेकिन अपनी श्रद्धा और भक्ति एक ही स्थान पर केंद्रित रखनी चाहिए।
3. *संकीर्णता नहीं, उदारता अपनाएँ* – सभी को आदर देना और खुले दिल से सबकी अच्छाइयों को अपनाना ही जीवन का सही मार्ग है।
4. *एकाग्रता से ही सफलता मिलती है* – अर्जुन की तरह लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने से ही सफलता प्राप्त होती है।
5. *अंतर्मन की शांति आवश्यक है* – जिस भी ईष्ट से हमें मन की शांति और प्रेरणा मिलती हो, हमें उसी को अपने हृदय में स्थान देना चाहिए।
6. *द्वंद्व में समय न गँवाएँ* – कई विकल्पों में उलझने से हमें कुछ भी हासिल नहीं होता, बल्कि हमें एक दिशा में निरंतर प्रयास करना चाहिए।
7. *सभी एक ही परमशक्ति का अंश हैं* – भले ही पूज्य व्यक्तित्व अलग-अलग हों, लेकिन सबका मूल एक ही है, इसलिए सभी का सम्मान करें।
*निष्कर्ष:*
*"एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाए।"*
अर्थात, यदि हम एक ही लक्ष्य या ईष्ट पर ध्यान केंद्रित करें, तो हमें सफलता अवश्य मिलेगी, लेकिन यदि हम अनेक दिशाओं में भटकेंगे, तो कुछ भी प्राप्त नहीं होगा।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें