"पिशाचिनी ने एक दिन मुझे अपना अलग से कमरा लेने के लिए कहा । यह एक स्वाभाविक बात थी क्योंकि डोम के झोपड़े में वह स्वतंत्रता नहीं मिल सकती थी जो उस पिशाचिनी को अपनी
क्रियाओं के लिए आवश्यक थी । उसके निर्देशानुसार मैं चल पड़ा ......
पर यह जानने से पहले की पिशाचिनी ने मुझे ऐसा करने के लिए क्यों कहा; मैं आप सब को अपने बारे में कुछ बताना चाहता हूँ ।
मेरा नाम महानंद चट्टोपाध्याय है । मेरे पिता देवानंद चट्टोपाध्याय एक प्रख्यात ज्योतिषी थे । मैं उनकी दूसरी पत्नी से उत्पन्न हुआ लाड प्यार में पला हुआ नालायक बच्चा था ।
मेरे पिता ने मुझे ज्योतिष सिखाने की बहुत कोशिश की लेकिन मैंने उस पर कभी ध्यान नहीं दिया अपनी मस्ती में लगा रहा ।
बाल्यावस्था मे पिता की मृत्यु हो गई । अब सारा कामकाज मां ने संभाल लिया । वह मुझे बहुत लाड़ करती थी । इसलिए मुझे कोई काम नहीं करना पड़ता था । सारा काम नौकर चाकर करते रहे । मैं ऐश आराम की जिंदगी बिता रहा था .....
समय आगे बढ़ता गया और इसी प्रकार मैं अपनी युवावस्था तक पहुंच गया .......
पैसा पर्याप्त था और माँ की तरफ से खुली छूट थी । इसलिए चमचों की फौज भी मेरे साथ चला करती थी और सभी प्रकार की अयाशियां मेरे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुकी थी ।
अचानक एक दिन मेरे जीवन में वज्रपात हुआ .....
मेरी मां ! जो मेरी सभी प्रकार से देखभाल करती थी वह अचानक चल बसी । इस घटना के बाद से सारा उत्तरदायित्व मेरे ऊपर आ गया, लेकिन मैं तब भी लापरवाह बना रहा ....
मैंने अपने खास चमचे कादिर को अपनी जिम्मेदारियां सौंप दी .......
वह पूरे जतन से काम करता रहा और हमेशा मुझे यह दिखाने की कोशिश करता रहा कि वह मेरा वफादार है !
मैं भी उसी गलतफहमी में रहा......
लेकिन समय बीतने के साथ उसने सारी संपत्ति अपने नाम करा ली .....
पहले मुझे एक नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती करा दिया । जहां बेहद कड़ा पहरा था और मैं वहां से बाहर नहीं निकल पा रहा था । लगभग 6 महीने तक वहीं पर रहने के बाद एक दिन मैं वहां से भाग निकला । वहां से भाग निकलने के बाद किसी प्रकार गांव तक पहुंचा ।
कादिर मेरी पूरी संपत्ति पर काबिज हो चुका था और मेरी गद्दी पर बैठा हुआ था । यह देखकर मुझे बड़े जोर का सदमा लगा ......
मेरी दाढ़ी बढ़ चुकी थी । कपड़े मैले कुचले थे लेकिन कादिर ने मुझे देखते ही पहचान लिया और अपने चमचों से पिटाई करवा कर मुझे नदी में फिंकवा दिया .....
उनके द्वारा पिटाई करके नदी में बहा दिए जाने के बाद भी मेरी मृत्यु नहीं हुई ......
मैं बहता बहता एक मसान घाट के किनारे जा लगा । वहां के डोम ने मेरी देखभाल की और उस समय में मुझे काफी मदद की ।
थोड़ा स्वस्थ हो जाने के बाद मैंने अपने खानदानी व्यवसाय ज्योतिष को अपनी आय का साधन बनाने की कोशिश की ....
लेकिन .....
क्योंकि मुझे कोई खास जानकारी नहीं थी इसलिए जल्द ही लोग जान गए कि मैं पोंगा पंडित हूं । यह स्थिति मेरे लिए बेहद शर्मनाक थी मुझे अपने आप से घृणा होने लगी । मुझे ऐसा लगने लगा कि मैं अपने पिता का नाम खराब कर रहा हूं । इतने बड़े ज्योतिषाचार्य का बेटा होने के बावजूद मुझे पोंगा पंडित कहा जा रहा है यह सोच सोच कर मैं अत्यंत विचलित होने लगा । ज्योतिष इतनी जल्दी सीख भी नहीं सकता था तो मैं किसी शॉर्टकट की तलाश में था ....
तभी......
मुझे एक तंत्र साधना से संबंधित किताब मिली । जिसमें कर्ण पिशाचिनी नामक एक विद्या की साधना लिखी हुई थी । यह विद्या एक ऐसी विद्या है जो भूतकाल के विषय में सारी जानकारी देने में सक्षम है । यह पढ़कर मुझे लगा कि अगर यह सिद्ध मुझे प्राप्त हो जाए तो मैं बिना खास पढ़ाई लिखाई करे ही ज्योतिष के रूप में अपना स्थान बना लूंगा ।
मैं इस साधना को करने के विषय में विचार कर रहा था तभी अचानक एक अघोरी काला बाबा से मेरा सामना हो गया । उन्होंने 3 महीने तक मुझे विभिन्न प्रकार की अघोर स्थितियों में रखा और अंत में मुझे कर्ण पिशाचिनी साधना प्रदान कर दी ।
यह साधना अत्यंत वीभत्स तरीके से की जानी थी जो मैंने किसी प्रकार संपन्न कर ली । इसमें भी मुझे अपने मित्र डोम का सहयोग मिला ।
लगभग 20 दिन की साधना संपन्न हो जाने के बाद मुझे कर्ण पिशाचिनी की सिद्धि प्राप्त हो गई .....
इस दौरान बहुत कुछ घटित हुआ इसके विषय में आप इसके पूर्व की रचना ""पिशाचिनी का घेरा"" में पढ़ सकते हैं ।
पिशाचिनी सिद्धि हो जाने के बाद किसी भी व्यक्ति को देख कर मन में उसके विषय में जानकारी लेने की इच्छा कर लेने मात्र से ही सब कुछ स्पष्ट होने लगता था । अब मैंने पुनः ज्योतिष का कार्य प्रारंभ कर दिया । जिसमें मुझे कर्ण पिशाचिनी की वजह से पर्याप्त आय हो रही थी और मैं काफी प्रसन्न था ।"
“ बचाओ। मेरी साड़ी खुल रही है। ” धृति वैक्यूम क्लीनर से अपना कमरा साफ करने की कोशिश कर रही थी पर ना जाने कैसे उसने अपनी साड़ी ही वैक्यूम क्लीनर में फँसा ली और अब साड़ी खुलने लगी थी।
“ अब क्या कर दिया तुमने ? ” आकर्ष बाथरूम से निकलता है तो धृति को इस हाल में देखकर चौंक जाता है फिर अगले ही पल उसे गुस्सा आ जाता है।
“ मेरी साड़ी … ” कहने को तो धृति और आकर्ष शादी शुदा कपल थे लेकिन वो कुछ भी बोलने में बहुत घबराती थी। बार बार वो खुद को ढकने की कोशिश करती है पर नाकाम रहती है।
“ जब तुम्हें वैक्यूम क्लीनर चलाना नहीं आता है तो चलाने की कोशिश क्यों कर रही हो ? गवार की गवार ही रहोगी। ” आकर्ष स्विच बटन बंद करके धृति की साड़ी निकाल देता है। लेकिन गुस्से में उसकी आँखे लाल हो गयी थी।
“ मुझे तो लगा मुझे मुसीबत में देख कर इन्हें मेरी चिंता हो रही थी। लेकिन शायद ये मुझे पसंद ही नहीं करते। ” धृति जल्दी से साड़ी का पल्लू पकड़ कर बाथरूम की तरफ भगती है। और आकर्ष के कड़वे शब्द उसकी आँखों में आँसू ले आते हैं।
धृति और आकर्ष की शादी दोनों के पिता ने एक ज़मीन के सौदे के बदले में की थी। धृति निहायती गवार लड़की थी उसे शहर के महँगे महँगे लग्ज़री समान का इस्तमाल करना बिल्कुल नहीं आता था। वहीं आकर्ष लंदन से एमबीए करके आया था। उसे गंदगी और धृति की गाँव वाली भाषा बिल्कुल पसंद नहीं थी। पर अपने पिता के धमकाने की वजह से उसे जबरदस्ती धृति से शादी करनी पड़ी।
“ लाइए माँ जी मैं खाना बना देती हूँ। ” धृति घर में खाली बैठे बैठे बोर हो गयी थी , उससे सफाई भी नहीं हो पायी तो उसने सोचा खाना ही बना दे। उसे घर के सारे काम आते थे लेकिन यहाँ वो कुछ कर नहीं पा रही।
“ कोई जरूरत नहीं है , घर में बहुत नौकर है कोई न कोई खाना बना लेगा , तुम चुपचाप से एक कोने में जाकर बैठो। ” आकर्ष ऑफिस के कपड़ो में तैयार होकर नीचे आता है और उसकी माँ कुछ कहती धृति से वो बीच में बोल देता है और बड़ी ही रुखाई से धृति को मना कर देता है।
“ ऐसे क्यों बोल रहा है बेटा , उसे मन है तो बनाने दे न। ये बहुत अच्छा खाना बनाना जानती है। ” आकर्ष की माँ धृति की तरफदारी करते हुए आकर्ष को समझाने की कोशिश करती है। वो चाहती है कि धृति अपने गुणों से आकर्ष का दिल जीत ले।
“ बनाती होगी लेकिन गोबर के गंदे से चूल्हे पर , इससे पूछो क्या इसे माइक्रोवेव यूज़ करना आता है ? पता चले अपने साथ साथ हमारे घर को भी आग लगा दे। ” वैसे तो आकर्ष इस शादी के लिए अपने माता पिता से नाराज़ था लेकिन वो धृति को बेज्जत करने का कोई मौका नहीं छोड़ता था। उसे लगता था शायद ऐसा करने से धृति उसे छोड़कर चली जाएगी और उसे मुक्ति मिल जाएगी।
क्या धृति और आकर्ष की शादीशुदा ज़िंदगी में कोई खुशी आएगी ? क्या आकर्ष धृति को अपनी पत्नी का दर्जा दे पायेगा या उसे तलाक दे देगा ?
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