जहां चाह वहां राह

जहां चाह वहां राह

एक छोटे से गांव नयासर में एक गरीब औरत अपने परिवार के साथ रहती थी,उस गरीब औरत के एक बेटा था। वह बड़े घरों में काम करके अपना गुजारा करती थी। वह अपने बच्चे के लिए कभी खिलौना नही ला सकी।


एक दिन उसे काम के बदले अनाज मिला। वह अनाज को हाट में बेचने जा रही थी। जाते समय उसने बेटे से पूछा- "बोल बेटे !! तेरे लिए हाट से क्या लेकर आऊं?"


बेटे ने झट जवाब दिया- *ढोल !! मेरे लिए एक ढोल ले आना मां।'*


*मां जानती थी कि उसके पास कभी इतने पैसे नहीं होंगे कि वह बेटे के लिए ढोल खरीद सके। वह हाट गई, वहां अनाज बेचा और उन पैसों से कुछ बेसन और नमक ख़रीदा।*


*उसे दुःख था कि वह बेटे के लिए कुछ नहीं ला पाई वापिस आते हुए रास्ते में उसे लकड़ी का एक प्यारा-सा टुकड़ा दिखा उसने उसे उठा लिया और आकर बेटे को दे दिया। बेटे की कुछ समझ में नहीं आया कि उसका वह क्या करे।*


*दिन के समय वह खेलने के लिए गया, तो उस टुकड़े को अपने साथ ले गया।*


एक बुढ़िया अम्मा चूल्हे में उपले(गोबर से बने हुए) जलाने की कोशिश कर रही थीं, पर सीले उपलों ने आग नहीं पकड़ी। चारों तरफ़ धुआं ही धुआं हो गया। धुए से अम्मा की आंखों में पानी आ गया। लड़का रुका और पूछा- *'अम्मा !! रो क्यों रही हैं?"* 


बूढ़ी अम्मा ने कहा- *'चूल्हा नहीं जल रहा है। चूल्हा नहीं जलेगा, तो रोटी कैसे बनेगी?"*


लड़के ने कहा- *'मेरे पास लकड़ी का टुकड़ा है, चाहो तो उससे आग जला लो।*


अम्मा बहुत खुश हुई। उन्होंने चूल्हा जलाया, रोटियां बनाई और एक रोटी लड़के को दी.


रोटी लेकर वह चल पड़ा चलते-चलते उसे एक कुम्हारिन मिली उसका बच्चा मिट्टी में लोटते हुए ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था लड़का रुका और पूछा कि *वह रो क्यों रहा है.*


कुम्हारिन ने कहा कि *वह भूखा है और घर में खाने को कुछ नहीं है।* 


लड़के ने अपनी रोटी बच्चे को दे दी बच्चा चुप हो गया और जल्दी जल्दी रोटी खाने लगा कुम्हारिन ने उसका बहुत आभार माना और एक घड़ा दिया। 


वह आगे बढ़ा चलते-चलते वह नदी पर पहुंचा वहां उसने धोबी और धोबिन को झगड़ते हुए देखा। लड़के ने रुककर इसका कारण पूछा। धोबी ने कहा- *'चिल्लाऊं नहीं तो क्या करूं? इसने शराब के नशे में घड़ा फोड़ दिया अब मैं कपड़े किस में उबालूं?'* 


लड़के ने कहा, *'झगड़ा मत करो. मेरा घड़ा ले लो ।*


इतना बड़ा घड़ा पाकर धोबी खुश हो गया बदले में उसने लड़के को एक कोट दिया.


कोट लेकर लड़का चल पड़ा चलते-चलते वह एक पुल पर पहुंचा। वहां उसने आदमी को ठंड से ठिठुरते हुए देखा बेचारे के शरीर पर कुर्ता तक नहीं था। लड़के ने उसे पूछा कि *उसका कुर्ता कहां गया.* 


आदमी ने बताया, *"मैं इस घोड़े पर बैठकर शहर जा रहा था, रास्ते में डाकुओं ने सब छीन लिया और तो और कुर्ता तक उतरवा लिया।'"*


लड़के ने कहा- *'चिंता मत करो। लो, यह कोट पहन लो।* 


आदमी ने कोट लेते हुए कहा, *'तुम बहुत भले हो, मैं तुम्हें यह घोड़ा भेंट करता हूं।"*


लड़के ने घोड़ा ले लिया थोड़ा आगे जाकर उसने एक बरात को देखा लेकिन दूल्हा, बराती, गाने-बजाने वाले सब मुंह लटकाए हुए पेड़ के नीचे बैठे थे लड़के ने पूछा कि *वे उदास क्यों हैं.*


दूल्हे के पिता ने कहा, *'हमें लड़की वालों के यहां जाना है, पर दूल्हे के लिए घोड़ा नहीं है जो घोड़ा लेने गया वह अभी तक लौटा नहीं दूल्हा पैदल तो चलने से रहा। पहले ही बहुत देर हो गई है कहीं विवाह का मुहूर्त न निकल जाए।'*


लड़के ने उन्हें अपना घोड़ा दे दिया सबकी बांछे खिल गई दूल्हे ने लड़के से पूछा, *'तुमने बड़ी मदद की हम तुम्हारे लिए क्या कर सकते हैं?"*


लड़के ने कहा, *-आप अगर कुछ देना चाहते हैं, तो यह ढोल दिला दें'*


दूल्हे ने ढोल बजाने वाले से उसे ढोल दिला दिया।


लड़का भागा-भागा घर पहुंचा और ढोल बजाते हुए मां को पूरी कहानी सुनाने लगा कि उसकी दी हुईं लकड़ी से उसने ढोल कैसे प्राप्त किया लड़का ढोल को पाकर बहुत खुश हो गया और माँ भगवान का धन्यवाद करने लगी !!


तात्पर्य - निस्वार्थ त्याग और सत्कर्म घूम फिर कर हमारे ही सामने आते है,उनका लाभ हमें ही मिलता है इसलिए अच्छे कर्म करते रहें,भगवान हमारा हमेशा भला ही करेंगे !!


एक कहानी सुंदर सी:

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